सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को चर्च के दो धड़ों में विवाद को लेकर अपने फैसले में दखल देने के लिए केरल हाईकोर्ट पर भड़क गया। जस्टिस अरुण मिश्रा और एमआर शाह की खंडपीठ हाईकोर्ट के एक जज के 8 मार्च के अंतरिम फैसले को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में मलनकारा ऑर्थोडॉक्स सीरियन चर्च के दो गुटों ऑर्थोडॉक्स और जैकोबाइट को एर्नाकुलम जिले के चर्च में धार्मिक सेवाएं जारी रखने की अनुमति दी थी। शीर्ष अदालत में सुनवाई के दौरान जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि हाईकोर्ट को हमारे निर्णय में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। यह न्यायिक अनुशानहीनता की पराकाष्ठा है। अपने जज को कहें कि केरल भारत का ही हिस्सा है।

शीर्ष अदालत अपने 2 जुलाई 2017 के निर्णय का उल्लेख कर रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में मलनकारा ऑर्थोडॉक्स सीरियन चर्च के तहत ऑर्थोडॉक्स गुट के प्रशासनिक अधिकार बरकरार रखे थे। इसके बाद हाईकोर्ट ने यथा स्थिति बहाल करने का आदेश दिया।

इस आदेश के असर यह पड़ा कि दोनों गुटों को चर्च में सेवाएं देने का रास्ता साफ हो गया। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल खड़े किए। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह बेहत आपत्तिजनक है। इस मामले में कौन जज है? उनका नाम बताया जाए। इस बात का पता सभी को चलना चाहिए।

अदालत की इस बात पर बचाव पक्ष की तरफ से पैरवी कर रहे वकील ने हाईकोर्ट के आदेश में से नाम पढ़ा। अदालत ऑर्थोडॉक्स गुट की तरफ से हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यहां ऑर्थोडॉक्स की तरफ से पैरवी करने वाले एडवोकेट सदारुल अनम ने सुप्रीम कोर्ट के 3 जुलाई 2017 के निर्णय का हवाला दिया जिसमें दोनों धड़ों के बीच विवाद पर फैसला दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने मलनकारा चर्च के 1934 संविधान के तहत चर्च के प्रशासनिक अधिकार ऑर्थोडॉक्स गुट के पास रहने की बात कही थी। अदालत ने इस मामले में हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए इस याचिका का निपटारा कर दिया। अदालत ने कहा कि 2017 में दिया गया निर्णय प्रतिनिधि तरीके से दिया गया था और इस पर पूरी तरह से चर्चा हो चुकी है।