भारत-अमेरिकी कानूनी संबंधों से जुड़े इवेंट में सुप्रीम कोर्ट के जज ने जो कहा वो सरकार को आइना दिखाने वाला था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने बीजेपी सरकार को नसीहत देते हुए कहा कि असहमति की आवाजें कुचलने के लिए आतंक-विरोधी कानून का गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। ये लोकतंत्र के अनुरूप नहीं है।
अर्नब गोस्वामी मामले का जिक्र करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालतों को यह देखना चाहिए कि वो नागरिकों के अधिकारों की रक्षा प्राथमिकता के तौर पर करें। एक दिन के लिए भी स्वतंत्रता का नुकसान बहुत ज्यादा है। उन्होंने कहा कि अदालतों को अपने फैसलों में सिस्टमिक मसलों के प्रति हमेशा सचेत रहना चाहिए। जस्टिस चंद्रचूड़ का यह बयान ऐसे समय में आया है जब एल्गार परिषद के स्टेन स्वामी की हिरासत में मौत पर लोग गुस्सा है। उन्हें सरकार से असहमति जताने पर यूएपीए में नामजद किया गया था।
ऐसे और भी कई मामले हैं जहां एंटी टेरर ला का दुरुपयोग किया गया। इनमें असम के नेता अखिल गोगोई भी शामिल हैं। उन्हें सीएए का विरोध करने पर जेल में डाल दिया गया। कश्मीर में एक व्यक्ति 11 साल तक खुद को बेकसूर साबित करने की लड़ाई लड़ता रहा। टेरर चार्ज में गिरफ्तार शख्स आखिर में निर्दोष निकला।
जस्टिस ने कहा कि भारत सबसे पुराना और सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते सांस्कृतिक मोर्चे पर भिन्न-भिन्न आदर्शों का प्रतिनिधित्व करता है। हमारा संविधान भी मानव अधिकारों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता दिखाता है। भारत और अमेरिका, दुनिया के अलग- अलग कोने में हैं, लेकिन फिर भी एक गहरे सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध साझा करते हैं।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि भारतीय न्यायशास्त्र पर अमेरिका के प्रभाव को कम करके नहीं आंका जा सकता है। उन्होंने कहा कि जैसा कि बिल ऑफ राइट्स प्रदान करता है कि कोई भी व्यक्ति कानून की उचित प्रक्रिया के बिना जीवन, स्वतंत्रता या संपत्ति से वंचित नहीं होगा। भारत और अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट अपनी शक्ति के मामले में सबसे शक्तिशाली अदालतों के रूप में जाने जाते हैं।