अनंतकृष्णनन जी

भारत के मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ के सामने तीन तलाक पर चल रही सुनवाई के दौरान शुक्रवार (12 मई) को पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि एक बार में तीन तलाक देने न केवल इस्लामी शरीयत के खिलाफ है और ये मुस्लिम महिलाओं को जिंदा दफनाने जैसा है। खान ने सर्वोच्च अदालत से कहा, “तीन तलाक से वो मुसलमान औरतों को जिंदा दफन कर देना चाहते हैं।” तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार (11 मई) को सुनवाई शुरू हुई थी। शुक्रवार को लगातार दूसरे दिन इस मामले पर सुनवाई हुई।

आरिफ मोहम्मद खान ने 1986 में शाह बानो मसले पर विरोध जताने के लिए तत्कालीन राजीव गांधी सरकार से इस्तीफा दे दिया था। खान ने तीन तलाक की तुलना सऊदी अरब में इस्लाम आने से पहले प्रचलित लड़कियों को जिंदा दफनाने के परंपरा से की। खान ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि तीन तलाक उसी परंपरा का आधुनिक रूप है। अदालत ने पूछा कि क्या तीन तलाक इस्लाम का आधारभूत अंग है? इस पर खान ने कहा, “ये दूर-दूर तक आधारभूत या पवित्र नहीं है। ये कुरान की शिक्षाओं के खिलाफ है।” आरिफ मोहम्मद खान ने आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की आलोचना करते हुए कहा, “इसने इस्लामी कानून को हास्यास्पद स्तर तक पहुंचा दिया है।”

सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक और निकाह हलाला से जुड़ी साच याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। इनमें से पांच याचिकाएं मुस्लिम महिलाओं ने दायर की हैं। कोर्ट ने सुनवाई के पहले दिन ही साफ कर दिया कि इस सुनवाई में अदालत इस्लाम में प्रचलित बहुविवाह पर विचार नहीं करेगी।आरिफ मोहम्मद खान ने अदालत से इस मामले में अदालत में पेश होने की इजाजत मांगी थी। खान ने विभिन्न इस्लामी शरियतों की भी आलोचना की। खान ने शीर्ष अदालत से कहा, “ये इस्लाम की जरूरत के हिसाब से नहीं बनीं बल्कि सल्तनतों के हिसाब से बनी हैं….पैगंबर की मृत्यु के बाद उनके द्वारा स्थापित राज्य लेने वालों ने सल्तनतें बनाईं।”

मामले की सुनवाई कर रही संविधान पीठ में चीफ जस्टिस खेहर के अलावा जस्टिस कूरियन जोसेफ, यूयू ललित, आरएफ नारीमन और अब्दुल नजीर शामिल हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी एक महिला याचिका और फोरम फॉर अवेयरनेस ऑफ नेशनल सिक्योरिटी नामक स्वयंसेवी संस्था की तरफ से पेश हुए। जेठमलानी ने सुनवाई के दौरान कहा, “ये प्रचलन पैगंबर की शिक्षाओं के उलट है” और ये भारतीय संविधान का उल्लंघन करती है। जेठमलानी ने अदालत से कहा कि राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के तहत ये सरकार की जिम्मेदारी है कि वो समान नागरिक संहिता लागू करे। जेठमलानी ने अदालत से कहा, “कम से कम पति और पत्नि के विवाह के समान कानून से शुरुआत तो करें।”

इस मामले में एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) नियुक्त किए गए पूर्व कानून मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने अदालत से कहा, तीन तलाक को “न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता, न ही इसे न्यायिक वैधता दी जा सकती है।” मुख्य न्यायाधीश खेहर ने ये जानना चाहा कि क्या तीन तलाक भारत के बाहर अन्य देशों में प्रचलित है और क्या कोई गैर-इस्लामी देश है जिसने इसे खत्म किया हो। इस पर अधिवक्ताओं ने अदालत को बताया कि कई इस्लामी देशों ने ये प्रथा खत्म कर दी है और गैर-इस्लामी देश श्रीलंका तीन तलाक पर रोक लगा चुका है।