सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के 2002 के दंगों में तबाह हुई अमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी में संग्रहालय के निमित्त धन का कथित रूप से गबन करने से संबंधित मामले में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति को गिरफ्तारी से प्राप्त अंतरिम संरक्षण की अवधि मंगलवार को 31 जनवरी तक बढ़ा दी। न्यायमूर्ति एआर दवे की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि अंतरिम राहत 31 जनवरी तक जारी रहेगी।
इस बीच अदालत ने सीतलवाड़ की एक नई याचिका पर सीबीआइ को नोटिस जारी किया है। यह याचिका विदेशी चंदा विनियमन कानून के कथित उल्लंघन से संबंधित एक अन्य मामले में दायर की गई है। इसमें आरोप लगाया गया है कि हाई कोर्ट की यह टिप्पणी त्रुटिपूर्ण है कि पहली नजर में इस दंपत्ति द्वारा विदेशी चंदा विनियमन कानून का उल्लंघन हुआ है। हाई कोर्ट ने तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति जावेद आनंद को अग्रिम जमानत दी थी।
हाई कोर्ट ने अग्रिम जमानत देते हुए कहा था कि पहली नजर में यह अदालत पाती है कि विदेशी चंदा विनियमन कानून के तहत उल्लंघन हुआ है। परंतु राष्ट्र की सुरक्षा और जनहित को खतरा कहां है? आपको अदालत को यह दर्शाना होगा। पीठ ने गुजरात पुलिस, सीबीआइ और सीतलवाड़ की याचिकाओं को 21 जनवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया है। गुजरात पुलिस ने एक मामला अमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी में संग्रहालय बनाने के लिए एकत्र धन के कथित दुरुपयोग के सिलसिले में इस दंपति के खिलाफ मामला दर्ज किया है। शीर्ष अदालत ने इसी मामले में इस दंपति को संरक्षण प्रदान किया है।
एक अन्य मामला सीबीआइ ने दर्ज किया है। इसमें आरोप लगाया गया है कि सीतलवाड़ द्वारा संचालित सबरंग कंम्युनिकेशंस एंड पब्लिशिंग ने विदेशी चंदा विनियमन कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए फोर्ड फाउंडेशन से विदेशी अनुदान प्राप्त किया। इस मामले में बंबई हाई कोर्ट ने इस दंपति को अग्रिम जमानत प्रदान की थी। सीबीआइ, गुजरात पुलिस और सीतलवाड़ ने इन दो मामलों में शीर्ष अदालत में अलग अलग याचिकाएं दायर कर रखी हैं।
इससे पहले अदालत ने कहा था कि हाई कोर्ट द्वारा विदेशी चंदा विनियमन कानून के उल्लंघन के मामले में इस दंपति को अग्रिम जमानत देते समय लगाई गई शर्तों का पालन करने में विफल रहने पर उनकी जमानत रद्द हो सकती है। विदेशी चंदा विनियमन कानून से संबंधित मामले में सीबीआइ ने अग्रिम जमानत के हाई कोर्ट के 11 अगस्त के आदेश को कई आधारों पर चुनौती दी है। सीबीआइ चाहती है कि इस दंपति की अग्रिम जमानत रद्द की जाए। दूसरी ओर इस दंपति ने सारे आरोपों से इनकार करते हुए कहा है कि दंगा पीड़ितों के मामले उठाए जाने की वजह से उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।
