तीन तलाक पर नरेंद्र मोदी सरकार के द्वारा लाए गए अध्यादेश के विरोध में केरल के मुस्लिम संगठन ने सु्प्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। समाचार एजेंसी एएनआई की खबर के मुता​बिक केरल के सुन्नी समुदाय के मुस्लिम संगठन जमीयत उल उलमा ने सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर लाए गए अध्यादेश को मुस्लिमों के पर्सनल लॉ में दखल और उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला फैसला बताया है। बता दें कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने एक बार में तीन तलाक के चलन पर प्रतिबंध लगाने वाले अध्यादेश पर 19 सितंबर की रात में हस्ताक्षर करके इसे मंजूरी दे दी थी। जबकि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसे 19 सितंबर की सुबह एक साथ तीन तलाक को प्रतिबंधित करने और इसे दंडनीय अपराध बनाने वाले अध्यादेश को अपनी मंजूरी दी थी।

इससे पहले केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि उच्चतम न्यायालय की ओर से तीन तलाक की कुप्रथा पर पाबंदी लगाए जाने के बाद भी यह जारी है, जिसके कारण अध्यादेश लागू करने की ‘आवश्यकता’ महसूस हुई। प्रस्तावित अध्यादेश के तहत एक साथ तीन तलाक देना अवैध एवं निष्प्रभावी होगा और इसमें दोषी पाए जाने पर पति को तीन साल जेल की सजा का प्रावधान है। प्रस्तावित कानून के दुरुपयोग की आशंकाएं दूर करते हुए सरकार ने इसमें कुछ सुरक्षा उपाय भी शामिल किए हैं, जैसे मुकदमे से पहले आरोपी के लिए जमानत का प्रावधान किया गया है।

तीन तलाक अध्यादेश के संशोधनों को कैबिनेट ने 29 अगस्त को मंजूरी दी थी। प्रसाद ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था, ‘‘अध्यादेश लाने की अत्यधिक अनिवार्यता थी क्योंकि पिछले साल उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद भी यह कुप्रथा धड़ल्ले से जारी है।’’ प्रस्तावित कानून में अपराध को ‘‘गैर-जमानती’’ बनाया गया है, लेकिन आरोपी मुकदमे से पहले भी मजिस्ट्रेट की अदालत में जमानत की गुहार लगा सकता है। गैर-जमानती अपराध में आरोपी को पुलिस थाने से जमानत नहीं दी जाती। इसके लिए अदालत का रुख करना होता है।” प्रसाद ने कहा कि मजिस्ट्रेट आरोपी की पत्नी का पक्ष सुनने के बाद जमानत मंजूर कर सकते हैं। बहरहाल, सूत्रों ने बताया कि मजिस्ट्रेट को सुनिश्चित करना होगा कि जमानत तभी दी जाए जब पति विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक पत्नी को मुआवजा देने पर सहमत हो जाए। मुआवजे की राशि मजिस्ट्रेट को तय करनी होगी।

पुलिस तीन तलाक के मामलों में प्राथमिकी तभी दर्ज करेगी जब पीड़िता, उसके सगे-संबंधी या उसकी शादी की वजह से रिश्तेदार बन चुके लोग पुलिस का रुख करें। प्रस्तावित कानून के मुताबिक पड़ोसी एवं अन्य शिकायत दाखिल नहीं कर सकते। प्रसाद ने कहा कि ऐसे अपराध के मामलों में किसी मजिस्ट्रेट के समक्ष समझौता भी हो सकता है, बशर्ते प्रभावित महिला इसके लिए रजामंद हो। एक बार में तीन तलाक अब ‘‘समाधेय’’ होगा। समाधेय अपराध के तहत दोनों पक्षों के पास मामला वापस लेने की स्वतंत्रता होती है। प्रस्तावित कानून केवल एक बार में तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत पर लागू होगा और यह पीड़िता को अपने लिए एवं अपने नाबालिग बच्चे के लिए ‘‘गुजारा भत्ता’’ मांगने के लिए मजिस्ट्रेट के पास जाने की शक्ति देता है। कोई महिला मजिस्ट्रेट से अपने नाबालिग बच्चे के संरक्षण का अधिकार भी मांग सकती है जिस पर अंतिम फैसला वही लेंगे।

एक बार में तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाने वाले अध्‍यादेश पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) की कानूनी समिति ने विचार करने का ऐलान किया था। उन्होंने कहा था कि अगले कुछ दिनों में बैठक करके इस बारे में आगे की तैयारी पर चर्चा होगी। इकॉनमिक टाइम्‍स की रिपोर्ट के अनुसार, बोर्ड के कुछ सदस्‍य अध्‍यादेश में ‘आपराधिक धारा’ के खिलाफ अदालत जाने के पक्ष में हैं। AIMPLB के एक सदस्‍य कासिम रसूल इलियास ने मीडिया से कहा, ”जिस तरह से इसे अपराध बनाया गया है, उससे अदालत जाने की जरूरत पैदा हो गई है। हम जल्‍द ही तय करेंगे कि यह कैसे करना है।” कासिम ने कहा, ”अध्‍यादेश की संभावना थी क्‍योंकि हमें लगा था कि सरकार राज्‍यसभा से विधेयक पास होने का इंतजार नहीं करना चाहती। यह सिर्फ मुद्दे से ध्‍यान भटकाने के लिए किया गया है।”