सूडान में 15 अप्रैल से सेना और अर्धसैनिक बलों के बीच जारी संघर्ष में चार सौ से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। राजधानी खार्तूम सहित सूडान के कई शहर तबाह हो चुके हैं।सूडान में सेना प्रमुख जनरल अब्दुल फतह अल बुरहान और अर्धसैनिक बल रैपिड सपोर्ट फोर्सेस (आरएसएफ) के प्रमुख जनरल मोहम्मद हमदान दगालो के बीच वर्चस्व की जंग चल रही है। दगालो को हेमेदती के नाम से भी जाना जाता है।
अल जजीरा की एक रिपोर्ट के अनुसार, जारी हिंसा की चपेट में और कई मुख्य शहर जल्दी ही आ सकते हैं। हिंसक झड़प सूडान की राजधानी खार्तूम से शुरू हुई थी लेकिन अब इस जंग ने ओमडुरमैन और दारफुर समेत कई शहरों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। हिंसा एक युद्ध का रूप ले रही है।
वाशिंगटन स्थित ‘सेंटर फार स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज’ की रपट है कि हिंसा सूडान की सीमाओं के पार बढ़ सकती है। सूडान में अक्तूबर 2021 में नागरिकों और सेना की संयुक्त सरकार का तख्तापलट हुआ था। इसके बाद से ही सेना और अर्धसैनिक बल आमने-सामने हैं। अल बुरहान और हेमेदती ने एक समय एक साथ काम किया और मिलकर देश में तख्तापलट किया था लेकिन अब दबदबे के लिए दोनों के बीच की लड़ाई ने सूडान को बदहाल कर दिया है।
वर्ष 2003 में जब पश्चिमी सूडान में गृह युद्ध हुआ तो दारफुर बागियों के खिलाफ कार्रवाई में इन दोनों ने मुख्य भूमिका निभाई थी। हेमेदती कई अरब मिलिशिया (जिन्हें सामूहिक रूप से जंजावीड़ के नाम से जाना जाता था) में से एक के कमांडर हुआ करते थे। सरकार दारफुर में गैर अरब विद्रोहियों को कुचलने के लिए जंजावीड़ का इस्तेमाल करती थी।
दूसरी ओर, बुरहान एक पेशेवर सैनिक थे, जो बेहद महत्त्वाकांक्षी साबित हुए। दारफुर को 21वीं सदी का पहला नरसंहार कहा जाता है। हेमेदती आरएसएफ के कमांडर बने, जिसे जंजावीड़ की ही एक शाखा कहा जा सकता है। हेमेदती ने यमन में सऊदी नीत गठबंधन की ओर से लड़ने के लिए सैनिकों की आपूर्ति करनी शुरू की, उसके बाद से उनकी ताकत बहुत बढ़ गई।
करीब एक दशक तक सैन्य शासन करने वाले ओमर अल बशीर सेना के साथ संतुलन बनाने के लिए हेमेदती और आरएसएफ पर बहुत भरोसा करते थे। लेकिन अप्रैल 2019 में जब महीनों तक विरोध प्रदर्शन हुआ तो बशीर का तख्तापलट करने के लिए दोनों जनरल एक हो गए। तब दोनों ने प्रदर्शनकारियों से एक नागरिक सरकार के गठन का समझौता किया। इसकी निगरानी का जिम्मा एक संप्रभु समित पर था जिसमें नागरिक और सैन्य नेता शामिल थे। इसके अध्यक्ष जनरल बुरहान और उपाध्यक्ष हेमेदती बने।
यह सरकार अक्टूबर 2021 तक दो साल चली। इसके बाद सेना ने हमला करके सत्ता हथिया ली।इस दौरान भी सरकार के शीर्ष नेता जनरल बुरहान बने और हेमेदती उनके उप प्रमुख। इस संप्रभु समिति में नागरिक सदस्य के रूप में सादिक तोवर काफी थे। उनका दोनों जनरलों से अक्सर मिलना होता था। उन्होंने एक इंटरव्यू में दावा किया कि 2021 तक दोनों के बीच असहमति नहीं दिखी।
बाद में यह स्पष्ट होने लगा कि जनरल बुरहानी की योजना ओमर अल बशीर की पुरानी सरकार को सत्ता में लाने की थी। हेमेदती जिस दारफुर से आते हैं, सूडानी सम्पन्न वर्ग अक्सर उनके और उनके सैनिकों के बारे में अपमानजनक शब्दावली का इस्तेमाल करते हैं। माना जाता रहा है कि वे सरकार नहीं चला सकते। हेमेदती पिछले दो – तीन साल से खुद को एक राष्ट्रीय नेता और हाशिए पर रहने वाले लोगों के प्रतिनिधि के रूप में स्थापित करने की कोशिश में जुटे हुए थे। साथ ही, हाल के वर्षों में उन्होंने कारोबार का एक पूरा साम्राज्य खड़ा कर लिया है, जिसमें सोना खनन और अन्य क्षेत्र भी शामिल हैं।
सूडान में सोना, यूरेनियम, क्रोमाइट, जिप्सम, अभ्रक, संगमरमर और लौह अयस्क है और जलविद्युत संयंत्रों के माध्यम से बिजली पैदा करने की बहुत बड़ी संभावना है। सेना कई संसाधन संपन्न क्षेत्रों को नियंत्रित करती है। वह सोना खनन पर भी नियंत्रण चाहती है, जो हेमेदती के कब्जे में है।
बुरहानी चाहते हैं कि हेमेदती की अगुवाई वाला आरएसएफ अब सेना का हिस्सा बने, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं हैं और परिषद की बैठक में 10 वर्षों तक के लिए यह फैसला टाल दिया गया। सेना इसे दो साल के भीतर करवाना चाहती है। इसी मुद्दे पर दोनों के बीच टकराव बढ़ा है।लड़ाकों और हथियारों पर किसका अधिक नियंत्रण होगा यह भी मुद्दे हैं।
दशकों के गृहयुद्ध के बाद 2011 में दक्षिण सूडान के अलग होने तक सूडान, क्षेत्रफल के लिहाज से अफ्रीका का सबसे बड़ा देश था। अफ्रीका के उत्तर-पूर्व में स्थित इस देश की सीमाएं सात देशों से लगती है। इसके उत्तर में मिस्र है, जबकि पूर्व में इरिट्रिया और इथियोपिया है। देश के अंतरराष्ट्रीय कारोबार के लिहाज से काफी अहम लाल सागर इसके उत्तर-पूर्व में स्थित है। दक्षिण में दक्षिण सूडान स्थित है, जबकि चाड और लीबिया इसके पश्चिम में मौजूद हैं।