Subhash Baghel Burial Case: सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में बेहद सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि यह बहुत दुख की बात है कि किसी को अपने पिता को दफनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आना पड़ा। अदालत ने यह टिप्पणी उस मामले में सुनवाई करते हुए की जिसमें छत्तीसगढ़ के एक शख्स ने अपने पिता के शव को दफनाने को लेकर चल रहे विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
क्या है यह पूरा मामला?
छत्तीसगढ़ के सुभाष बघेल का शव पिछले 12 दिनों से शवदाह गृह में रखा हुआ है। सुभाष बघेल बस्तर के रहने वाले थे और गांव में कुछ लोगों ने उनके शव को दफनाने का इसलिए विरोध किया था क्योंकि सुभाष बघेल ने ईसाई धर्म अपना लिया था। सुभाष बघेल मूल रूप से हिंदू आदिवासी समुदाय से थे।
सुभाष के बेटे रमेश बघेल ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में उन्होंने कहा है कि वह अपने पिता को उनके पूर्वजों के बगल में ही दफनाना चाहते हैं।
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जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने मामले में सुनवाई की। जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “किसी व्यक्ति को वहां क्यों नहीं दफनाने दिया जा सकता जहां उसके परिजन चाहते हैं? शव शवगृह में है? हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि एक व्यक्ति को अपने पिता को दफनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आना पड़ रहा है। हाई कोर्ट, पंचायत भी इस मसले को हल नहीं कर पाए। हाई कोर्ट का कहना है कि इससे कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा होगी। हम इससे दुखी हैं।”
सॉलिसिटर जनरल ने क्या कहा?
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर इस मामले में फैसला सिर्फ भावनाओं के आधार पर किया जाना है तो कुछ नहीं कहा जा सकता वरना इस पर बहस की जा सकती है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि दफनाने का विरोध करने की असली वजह यह थी कि सुभाष बघेल के आदिवासी परिवार ने ईसाई धर्म अपना लिया था।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यह एक “आंदोलन” की शुरुआत है और इससे आदिवासी हिंदुओं और आदिवासी ईसाइयों के बीच अशांति पैदा हो सकती है। उन्होंने अदालत से कहा, “वहां उन आदिवासियों के लिए भी कब्रिस्तान हैं जो ईसाई नहीं हैं। हालांकि वे ईसाई नहीं हैं, लेकिन वे मृतकों को यहां दफनाते हैं। इससे सिर्फ 20 किलोमीटर दूर एक ईसाई कब्रिस्तान है। यह कब्रिस्तान हिंदू आदिवासियों के लिए है।”
जब न्यायमूर्ति नागरत्ना ने पूछा कि क्या प्राइवेट जमीन पर किसी को दफनाया जा सकता है, तो तुषार मेहता ने कहा कि एक बार जब आप प्राइवेट जमीन पर किसी को दफनाते हैं या दाह संस्कार करते हैं, तो जमीन का स्वरूप बदल जाता है, यह एक पवित्र जगह बन जाती है और इससे स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं भी होती हैं। मेहता ने कहा कि इसकी इजाजत नहीं है।
याचिकाकर्ता के वकील गोंजाल्विस ने कहा कि सुभाष बघेल के पिता और उनके परिवार के अन्य लोगों को उसी जमीन पर दफनाया गया था। इस पर तुषार मेहता ने कहा कि उनका धर्म परिवर्तन नहीं हुआ था। इसके जवाब में गोंजाल्विस ने कहा, “आप कब्रिस्तान की तस्वीर देखें। मेरे पिता, चाची सभी की कब्रों पर क्रॉस का निशान है। उस कब्रिस्तान में हमारी एक विशेष जगह है।”
…आप धर्म बदलेंगे तो गांव से बाहर जाएंगे
जब तुषार मेहता ने दोहराया कि यह एक ‘आंदोलन’ की शुरुआत है तो गोंजाल्विस ने कहा, “हां, यह ईसाइयों को बाहर निकालने के आंदोलन की शुरुआत है।” अदालत ने पूछा कि यदि परिवार के अन्य सदस्यों को वहां दफन किया गया था तो गांव वाले सुभाष बघेल को दफनाए जाने का विरोध क्यों कर रहे हैं।
इस पर गोंजाल्विस ने जवाब दिया, “अब वे मिसाल कायम करना चाहते हैं कि अगर आप धर्म बदलेंगे तो आपको गांव से बाहर जाना पड़ेगा। यह बहुत खतरनाक बात है।” जब जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि शव को अब शवगृह में नहीं रखा जा सकता तो तुषार मेहता ने बेंच से आग्रह किया कि मामले पर जल्दबाजी में फ़ैसला न किया जाए। इस मामले में अगली सुनवाई बुधवार को होगी।
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