पर्यावरण मंत्रालय ने NHPC के उस प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया है, जिसमें उसने सुबनसिरी लोअर हाइडेल प्रोजेक्ट (Subansiri Lower hydel project) के लिए पैसा जुटाने के मकसद से जंगल की जमीन पर बनी अपनी संपत्तियों को गिरवी रखने की अनुमति मांगी थी। यह प्रोजेक्ट अरुणाचल प्रदेश और असम की सीमा पर स्थित है और इसकी लागत पहले के मुकाबले 300 प्रतिशत से भी अधिक बढ़ चुकी है।
सरकारी रिकॉर्ड बताते हैं कि NHPC ने लोअर सुबनसिरी हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के कैपिटल खर्च को पूरा करने के लिए बैंकों और दूसरी फाइनेंशियल संस्थाओं से फंड जुटाने के उद्देश्य से जंगल की जमीन पर मौजूद एसेट्स को गिरवी रखने के लिए ‘नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट’ यानी NOC मांगी थी। इसके बाद अरुणाचल प्रदेश सरकार ने पूरे मामले पर पर्यावरण मंत्रालय से साफ स्थिति बताने को कहा।
द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा देखे गए एक पत्र के मुताबिक, पर्यावरण मंत्रालय ने NHPC के उस प्रस्ताव की जांच की, जिसमें डायवर्ट की गई जंगल की जमीन पर मौजूद एसेट्स को गिरवी रखने की बात कही गई थी। मंत्रालय ने साफ कहा कि यह प्रस्ताव वन संरक्षण अधिनियम के तहत मान्य नहीं है। इस कानून को अब वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 1980 कहा जाता है।
पर्यावरण मंत्रालय ने 10 अक्टूबर को अरुणाचल प्रदेश सरकार को भेजे अपने पत्र में बताया कि जंगल की जमीन को जिस मुख्य मकसद से गैर-वानिकी उपयोग के लिए मंजूरी दी जाती है, उसके अलावा गिरवी रखने जैसा काम एक सेकेंडरी यानी अलग उद्देश्य माना जाता है, और इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।
मंत्रालय ने यह भी जोर दिया कि ऐसी डायवर्ट की गई जंगल की जमीन का मालिकाना हक और उसका टाइटल अभी भी वन विभाग के पास ही रहता है। इसके साथ ही मंत्रालय ने 2004 में दी गई मंजूरी की शर्त नंबर 13 का हवाला दिया, जिसमें साफ कहा गया था कि जंगल की जमीन का इस्तेमाल केवल उसी मकसद के लिए किया जाएगा, जिसके लिए उसे मंजूरी दी गई है, न कि किसी और उद्देश्य के लिए।
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मंत्रालय ने आगे कहा कि जमीन या उस पर बनी संपत्तियों को फाइनेंशियल फायदे के लिए गिरवी रखना भी एक अलग उद्देश्य माना जाएगा, और इसलिए यह उस मंजूरी की सीमा से बाहर है जो इस प्रोजेक्ट को दी गई थी।
इस फैसले का सुबनसिरी लोअर प्रोजेक्ट पर क्या असर होगा और क्या NHPC ने किसी दूसरे राज्य से भी इसी तरह की NOC मांगी थी – इस सवाल पर NHPC के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर (सुबनसिरी) राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है। NHPC के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर भूपेंद्र गुप्ता और अरुणाचल प्रदेश वन विभाग को भेजे गए ईमेल का भी कोई जवाब नहीं मिला।
इस साल मार्च में NHPC के बोर्ड ने वित्त वर्ष 2025-26 के दौरान 6,300 करोड़ रुपये तक का कर्ज लेने की योजना को मंजूरी दी थी। इसमें कॉर्पोरेट बॉन्ड, टर्म लोन या बाहरी कमर्शियल उधार शामिल थे, जो सुरक्षित, रिडीमेबल, टैक्सेबल, नॉन-कम्यूलेटिव और नॉन-कन्वर्टिबल होंगे। इसके बाद 29 अगस्त को इस उधार योजना में संशोधन करते हुए 10,000 करोड़ रुपये तक पैसा जुटाने की मंजूरी दी गई।
2000 मेगावाट क्षमता वाले सुबनसिरी लोअर हाइड्रो प्रोजेक्ट की कुल आठ यूनिट हैं। इनमें से पहली चार यूनिट के इस महीने चालू होने की उम्मीद है, हालांकि अभी तक प्रोजेक्ट की कमर्शियल ऑपरेशन डेट (COD) तय नहीं हुई है।
पिछले हफ्ते जारी एक प्रेस बयान में NHPC ने बताया कि बाकी बची चार यूनिट को 2026-27 के दौरान एक-एक करके ग्रिड से जोड़ा जाएगा। कंपनी ने यह भी कहा कि प्रोजेक्ट की लागत 2002 की कीमतों के हिसाब से 6,285 करोड़ रुपये थी, जो अब बढ़कर मौजूदा कीमतों में करीब 26,000 करोड़ रुपये हो गई है। इसकी वजह निर्माण में देरी, महंगाई से जुड़ा खर्च और निर्माण के दौरान ब्याज (IDC) बताया गया है।
2 दिसंबर को NHPC ने बताया कि प्रोजेक्ट की आठ में से एक 250 मेगावाट की यूनिट को सफलतापूर्वक नेशनल पावर ग्रिड से सिंक्रोनाइज़ कर लिया गया है। कमीशनिंग की प्रक्रिया दो यूनिट के साथ शुरू हुई थी, जिनमें से एक 24 अक्टूबर और दूसरी 6 नवंबर को मैकेनिकल रन पर गई थी। इसके अलावा दो और यूनिट का वेट कमीशनिंग के दौरान परीक्षण चल रहा है।
सुबनसिरी लोअर हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट को साल 2005 में मंज़ूरी मिली थी। अरुणाचल प्रदेश और असम की सीमा पर गेरुकामुख में बना यह प्रोजेक्ट 2011 से 2019 के बीच लंबे समय तक अटका रहा। असम में हुए स्थानीय विरोध, बांध की सुरक्षा और निचले इलाकों पर पड़ने वाले पर्यावरणीय असर को लेकर उठे सवालों और अदालतों में चली कानूनी लड़ाइयों की वजह से इसका काम रुका रहा।
