देश में कोचिंग संस्थानों में छात्रों की बढ़ती संख्या और स्कूल-कॉलेजों में कम होती उपस्थिति से शिक्षा विभाग चिंतित है। कई कोचिंग संस्थान मनमाने तरीके से संचालित हो रहे हैं और छात्रों पर स्कूल-कॉलेज न जाकर सीधे अपने यहां आने पर जोर देते हैं। अक्सर छात्र स्कूल-कॉलेजों में एडमिशन लेकर कक्षाओं से गायब रहते हैं। छात्र मेडिकल, इंजीनियरिंग और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए महंगे कोचिंग पर ज्यादा भरोसा करते हैं। यह हाल पूरे देश का है। जिन शहरों में बड़े कोचिंग संस्थान हैं, वहां के स्कूलों और कॉलेजों का हाल तो और बुरा है।
टाइमिंग के लिए जारी किए नए निर्देश
हाल ही में बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने इस पर लगाम कसने के लिए छात्रों के अटेंडेंस को सख्ती से लागू कराने का फैसला किया है। विभाग ने सरकारी स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति तय करने के लिए जिलाधिकारियों को इस पर अमल करने को कहा है। इसमें सुबह नौ बजे से शाम चार बजे के बीच कोचिंग संस्थानों के संचालन को भी बंद रखे जाने का निर्देश दिया गया है। बिहार शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव केके पाठक ने इसको लेकर निर्देश जारी किया है।
कोचिंग का हब कोटा में पढ़ रहे बड़ी संख्या में छात्र
दूसरी तरफ कोचिंग का हब कहा जाने वाला कोटा और कई दूसरे शहरों में कोचिंग करने वाले छात्र या तो पढ़ाई पूरी करने के बाद स्थायी रूप से कोचिंग में प्रवेश लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे हैं या फिर प्राइवेट स्कूलों से पढ़ाई करते हुए कोचिंग के लिए अवकाश लेकर पढ़ाई कर रहे हैं। सबसे ज्यादा दिक्कत सरकारी स्कूलों में है। वहां बच्चे एडमिशन के बाद सीधे परीक्षा देने के लिए ही पहुंचते हैं।
कुछ दिन पहले देश का बड़ा चिकित्सा संस्थान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) ने भी इस पर चिंता जताई थी। निदेशक एम श्रीनिवास द्वारा जारी एक आदेश में कहा गया है, “यह पाया गया है कि लेक्चर कक्षाओं में छात्रों की उपस्थिति कम है। वे पीजी प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए कोचिंग कक्षाओं में अधिक रुचि रखते हैं।”
इसमें कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों में ऑनलाइन तरीकों और सिमुलेशन-आधारित प्रशिक्षण की बड़ी भागीदारी के साथ शिक्षण और सीखने की पद्धति में काफी बदलाव आया है। पत्र में कहा गया है, “दीर्घकालिक क्षमता निर्माण को लक्ष्य करते हुए शिक्षण, नैदानिक प्रशिक्षण और मूल्यांकन के हमारे वर्तमान पैटर्न को संशोधित करने और राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन के लिए एक मान्य मॉडल विकसित करने की आवश्यकता है।”
दरअसल ऐसा पाया गया कि मेडिकल लेक्चर क्लासेस में छात्रों की उपस्थिति बहुत कम रहती है। छात्र पीजी प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए कोचिंग संस्थाओं में ज्यादा रुचि लेते हैं। इससे लेक्चर क्लासेस खाली रहते हैं।