इस साल गर्मियों में भारत के सबसे बड़े ट्रक निर्माता टाटा मोटर्स ने डिपर नाम का एक कंडोम बनाया। इसका मकसद ट्रक ड्राइवरों में सुरक्षित सेक्स को बढ़ावा देना था। ट्रक ड्राइवरों को एचआईवी-एड्स होने की आशंका ज्यादा होती है। टाटा ने ये कंडोम टीसीआई फाउंडेशन के संग मिलकर बनाया है। इस कंडोम को कितनी सफलता मिलेगी ये वक्त बताएगा लेकिन इस कंडों का डिपर रखने के पीछे एक मनोरंजन कहानी है।

ट्रक ड्राइवरों के लिए डिपर नाम का कंडोम बनाने का ख्याल सबसे पहले भारत सरकार के नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (नाको) को आया था। नाको यौनकर्मियों के लिए भी “वो” नाम से कंडोम बनाना चाहता था। लेकिन वो अपनी योजना में सफल नहीं हो सका। साल 2005 में जब एचआईवी मरीजों की संख्या काफी बढ़ने लगी तो नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (नाको) ने दो समूहों को महसूस हुआ कि जिन दो समूहों को एड्स होने की सर्वाधिक आंशका होती है उन्हें असुरक्षित सेक्स और कंडोम के इस्तेमाल के बारे में जागरूक बनाए बिना इससे पीड़ितों की संख्या में कमी लाना संभव नहीं है। ये समूह हैं- ट्रक ड्राइवर और पेशेवर यौनकर्मी।

भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी उस समय नाको के प्रमुख थे। कुरैशी याद करते हैं, “ये तय किया गया कि इन दोनों समूहों को कंडोम के इस्तेमाल के लिए प्रेरित किया जाए। नाको पहले ही जनता को मुफ्त में कंडोम बांटता रहा है। आपको निरोध की याद होगी? लेकिन हमें लगा कि इन दोनों समूहों को लिए हमें एक नया ब्रांड लेकर आएं। एक बैठक में संभावित नामों पर चर्चा के दौरान सुझाव आया कि ट्रक ड्राइवरों के लिए डिपर नाम सही रहेगा। आपने देखा होगा कि आपने सभी व्यावसायिक वाहनों पर “यूज डिपर एट नाइट” लिखा देखा होगा। जो मूलतः मद्धिम लाइट के लिए लिखा रहता है।”

कुरैशी ने बताया, “हमें लगा कि इस नाम के साथ हमें चालीस लाख ट्रकों के माध्यम से इसका मुफ्त में विज्ञापन हो जाएगा। हमारा मकसद ड्राइवरों को शिक्षित करना था….कि जिस तरह रात में सुरक्षित गाड़ी चलाने के लिए डिपर का प्रयोग किया जाता है, उसी तरह डिपर कंडोम के प्रयोग से वो खुद को और अपनी बीवियों को इस घातक बीमारी से सुरक्षित रख सकते हैं।” इस नए कंडोम के प्रचार के लिए जुमला गढ़ा गया, “दिन हो या रात, डिपर रहे साथ।” डिपर के अलावा संस्था ने “हार्न प्लीज” और “ओके टाटा” नामों पर भी विचार किया था। इन नामों के पीछे भी वही वजह थी, इनका लगभग हर ट्रक के पीछे लिखा होना।

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यौनकर्मियों के लिए बनाए गए विशेष कंडोम का नाम “वो” रखा गया। ये नाम चर्चित हिंदी फिल्म, “पति, पत्नी और वो” से लिया गया है। लेकिन ये “वो” फिल्म की तरह खलनायक नहीं बल्कि दोस्त है, जो पति-पत्नी को एड्स से बचाता है। कुरैशी बताते हैं, “ये नाम रखने के पीछे एक वजह ये भी थी कि लोगों को कंडोम मांगने में झिझक होती है, इसलि इसे “वो’ नाम दिया गया।” नाको ने जीवन बीमा निगम और नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया से इस कैंपेन के लिए समझौता किया है। सरकार के हिंदुस्तान लैटेक्स लिमिटेड (एचएलएल) इसका उत्पादन भी शुरू कर दिया। लेकिन मामला शुरू होते ही खटाई में पड़ गया। एक निजी निर्माता को इन दोनों नामों की भनक लग गई। उसने पहले ही दोनों नामों को पंजीकृत करा लिया और उनका पेटेंट ले लिया। कुरैशी बताते हैं, “वो कंपनी दोनों ब्रांड नामों के बदले हमसे पैसा लेना चाहती थी। हम पैसा नहीं दे सकते थे इसलिए हमने वो योजना रद्द कर दी।”

टाटा द्वारा “डिपर” को लॉन्च करने पर कुरैशी कहते हैं, “मैं बहुत खुश हूं कि टाटा मोटर्स ने कंडोम का नाम डिपर रखकर एक स्मार्ट काम किया है। जिस काम में हम एक धूर्त कंपनी द्वारा पैदा किए गए कानूनी पचड़ों की वजह से विफल रहे वो सफल हो गए।”