तमि‍लनाडु में मूर्ति तोड़े जाने के बाद इरोड वेंकट रामास्‍वामी पेरियार एक बार फिर से चर्चा में हैं। पेरियार को ‘तमिल गौरव’ के नाम पर बनी पार्टियों का आधार माना जाता है। उनके सिद्धांतों का विरोध कर तमिलनाडु में राजनीतिक पैठ बनाना बहुत मुश्किल है। इसके बावजूद दक्षिणी राज्‍य में पांव जमाने की कोशिश में जुटी भाजपा के कार्यकर्ताओं ने कोयंबटूर में उनकी प्रतिमा तोड़ डाली। पेरियार को दलितों का नेता भी माना जाता है और तमिलनाडु में इस समुदाय की आबादी बहुत ज्‍यादा है। ब्राह्मणवाद के मुखर विरोधी पेरियार द्रविड़ और हिंदी विरोधी अभियान के भी प्रणेता थे। द्रविड़ आंदोलन के कारण ही तमिलनाडु में द्रमुक, अन्‍नाद्रमुक और एमडीएमके जैसे दलों का उदय हुआ। कांग्रेस को हाशिए पर धकेल कर आज ये दल राज्‍य में ज्‍यादा प्रभावशाली हैं। पेरियार के आह्वान पर ही हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को व्‍यापक पैमाने पर खंडित और जलाया गया था। वह दकियानूसी के भी प्रबल विरोधी थे।

‘ब्राह्मणवाद’ के कारण कांग्रेस से तोड़ा था नाता: कन्‍नड़ व्‍यवसायी के घर 1879 में पैदा हुए पेरियार शुरुआत में घरेलू व्‍यवसाय को संभाला था। राजनीतिक रुझान बढ़ने पर वह कांग्रेस में शामिल हो गए थे। लेकिन, बाद में उन्‍हें महसूस हुआ कि कांग्रेस में ब्राह्मण समुदाय का बोलबाला है, जिसके कारण उन्‍होंने पार्टी की सदस्‍यता त्‍याग दी थी। कुछ वर्षों उपरांत उन्‍होंने ‘द्रविदर कझघम’ नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली थी। इसके जरिये उन्‍होंने तमिल गौरव को बढ़ावा दिया था। इसी के आधार पर तमिलनाडु में कई पार्टियों का गठन किया गया। पेरियार का दर्शन और काम ब्राह्मणवाद के खिलाफ रहा। वह मानते थे कि ब्राह्मण समुदाय धार्मिक सिद्धांतों और कर्मकांडों के बलबूते अन्‍य जातियों पर अपना दबदबा बनाए हुए है।

हिंदू धर्म के थे मुखर आलोचक: पेरियार हिंदू धर्म के प्रखर आलोचकों में से एक थे। वह इसे अंधविश्‍वासी मानते थे और तर्क-वितर्क को बढ़ावा देते थे। पेरियार तमिल के प्रख्‍यात संत तिरुवल्‍लुवर के एकल और निराकार ईश्‍वर के विचार को मानते थे। उनका कहना था कि ब्राह्मणों के अत्‍याचार से बचने के लिए निम्‍न तबके के लोग इस्‍लाम या ईसाई धर्म अपनाते हैं। पेरियार ने कहा था इस्‍लाम और ईसाई धर्म में हिंदू से बेहतर समाज का निर्माण किया गया है।