भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के सहयोगी बैंकों में काम करने वाले तकरीबन 70 हजार कर्मचारी इस वक्त बैंक से खफा हैं। कारण- एसबीआई ने उनसे नोटबंदी के वक्त दिया गया ओवरटाइम का पैसा वापस मांग लिया है। 500 और 1000 के पुराने नोट चलन से बाहर होने के बाद बैंक ने अपने कर्मचारियों को ड्यूटी से इतर नोट बदलने के काम में लगाया था।
बैंक ने तब इस काम के लिए उन कर्मचारियों को ओवरटाइम कंपनसेशन देने का वादा किया था। स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर और स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर के कुल 70 हजार अधिकारियों व कर्मचारियों को मुआवजे के रूप में जो रकम दी गई थी, उसे वापस मांगा गया है। पांचों सहयोगी बैंकों का विलय एसबीआई में 1 अप्रैल 2017 को हो गया था।
एसबीआई ने इसके लिए सभी जोनल मुख्यालयों में संदेश भिजवाया है, जिसमें कहा गया है कि सिर्फ बैंक के कर्मचारी को ही अतिरिक्त काम का पैसा मिलेगा, जबकि सहयोगी बैंकों के कर्मचारियों को ओवरटाइम की रकम लौटानी पड़ेगी। ऐसे में बैंक ने साफ किया है कि यह रकम सिर्फ उन्हीं के लिए थी, जो एसबीआई की शाखाओं में ही काम कर रहे हैं। एसबीआई ने इस बाबत विभिन्न जोनों में मुआवजे की रकम को वापस जुटाने के लिए अधिकारियों को निर्देश जारी कर दिए हैं।
एसबीआई ने एक चिट्ठी में आगे सहयोगी बैंकों से यह रकम मांगने के मसले पर दलील दी कि चूंकि नोटबंदी के समय सहयोगी बैंकों का विलय प्रमुख बैंक में नहीं हुआ था, लिहाजा उनके कर्मचारियों को अतिरिक्त काम के बदले भुगतान करने की जिम्मेदारी बैंक की नहीं है।
वहीं, एसबीआई की ओर से इस कदम पर बैंक यूनियन नाखुश नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि बैंक की ओर से रिकवरी का आदेश पूरी तरह से अन्याय है, क्योंकि विलय का मतलब किसी कंपनी के लिए संपत्ति के साथ जिम्मेदारी को भी संभालना होता है।