सोमवार (17 अप्रैल) को विशेष अदालत ने दिल्ली पुलिस की एक महिला जांच अधिकारी के खिलाफ 10 वर्षीय बच्ची के यौन उत्पीड़न के आरोप का मामला दर्ज करने के आदेश दिया। अदालत ने अपने फैसले में कहा, पीड़िता पर “पेनेट्रेटिव यौन हमले का आरोप साफ है” ताकि “झूठा सबूत बनाया जा सके।” पीड़िता की मां ने अदालत से कहा था कि पुलिस आधिकारी ने उसका जबरदस्ती “दोबारा मेडिकल जांच” करवायी और कथित तौर पर उसके “कपड़े उतरवाकर उसके गुप्तांगों में अंगुली डाली।” पीड़िता का आरोप है कि जांच अधिकारी ने उसके बलात्कार के आरोप स्कूल-टीचर को बचाने और उसके पिता को फंसाने के लिए किया। पीड़िता ने पिछले साल स्कूल-टीचर के खिलाफ बलात्कार का आरोप दर्ज कराया था।
एडिशनल सेल जज विनोद यादव मंगोलपुरी थाने की थाना प्रभारी को महिला सब-इंस्पेक्टर के खिलाफ पोस्को एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। अदालत में जमा दस्तावेज के अनुसार पीड़िता उत्तरी दिल्ली के एक नगरपालिका स्कूल में पढ़ती थी। पिछले साल अगस्त में उसने स्कूल के 35 वर्षीय टीचर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया। पुलिस दस्तावेज के अनुसार कुछ दिनों बाद आरोपी टीचर की शिकायत के बाद लड़की के पिता के खिलाफ यौन उत्पीड़न की एफआईआर दर्ज कर ली गयी। अदालत ने इस मामले में पिता को जमानत देते हुए दोनों मामलों की जांच डिस्ट्रिक्ट इन्वेस्टिगेशन यूनिट को सौंपी।
मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए बयान में पीड़िता बच्ची ने कहा कि उसके पिता ने उसके साथ “कोई गलत हरकत” नहीं की है और उसके स्कूल टीचर ने उसका यौन शोषण किया। अदालत ने टीचर को जमानत देने से इनकार कर दिया और कहा कि “टीचर को बचाने के लिए जांच अधिकारी झूठे सबूत गढ़ रही हैं।” शनिवार (15 अप्रैल) को पीड़िता की तरफ से उसकी माँ ने अदालत में महिला जांच अधिकारी के खिलाफ बलात्कार की एफआईआर दर्ज करने की अर्जी दी। अर्जी में कहा गया कि डॉक्टर ने ये सब महिला सब-इंस्पेक्टर के कहने पर किया। अर्जी के अनुसार जब पीड़िता ने इसका विरोध किया तो उसे थप्पड़ मारा गया और उससे सादे कागज पर दस्तखत करवाए गए।
अदालत ने महिला जांच-अधिकारी को “बेरुखे और पूर्व निर्धारित तरीके से” जांच करने के लिए फटकार भी लगायी। अदालत ने कहा कि मामले की केस डायरी में जांच के बारे में उचित ब्योरे नहीं दर्ज हैं। चार मार्च से 24 मार्च तक केस डायरी में मामले में कोई प्रगति नहीं दर्ज की गयी है। डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस (डीसीपी) एएसजे यादव ने माना कि महिला जांच अधिकारी ने प्रथम दृष्टया कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन किया है। उसने दोबारा मेडिकल जांच कराने के लिए बाल कल्याण समिति से अनुमति नहीं ली थी न ही उसके बाद बच्ची का पूरक बयान दर्ज कराया।

