लोकसभा स्पीकर ओम बिरला संसद के पहले सत्र में यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि सभी नए लोकसभा सदस्यों को बोलने का मौका मिले। इसके साथ ही वह इस बात को लेकर भी सजग हैं कि इस स्थिति में पुराने सदस्य बोलने का मौका मिलने से वंचित न रह जाएं।

इसके लिए स्पीकर सदन के शून्य काल को बढ़ाने से नहीं झिझक रहे हैं। पिछले बृहस्पतिवार सदन की कार्यवाही लगातार करीब 5 घंटे तक चली। इस दौरान रिकॉर्ड 162 सदस्यों ने इसमें हिस्सा लिया। इसका अर्थ है कि सदन की रोज की कार्यावाही देर रात तक चल रही है।

काफी समय तक सभापति की कुर्सी पर पीठासीन अधिकारी के पैनल के सदस्य के बैठने के अलावा सदन के स्थगित होने के अंतिम घंटों की कमान स्पीकर ओम बिरला खुद संभाल रहे हैं। सदन में 20 जुलाई को अपना एक महीना पूरा करने वाले बिरला ने इस दौरान सदन की कार्यावाही में कई अहम बदलाव किए हैं।

उन्होंने शून्य काल के एक घंटा के अवधि की परंपरा को खत्म किया। स्पीकर ओम बिरला की खास बात यह है कि वह अपनी हर बात को हिंदी में रखते हैं। लोकसभा में ‘आइस’ और ‘नोस’ के स्थान पर सदस्य अब ‘हां’ और ‘ना’ का प्रयोग करते हैं। इससे पहले शून्य काल की अवधि बढ़ाने के बाद 26 जून को शून्य काल में रिकॉर्ड 84 सदस्यों ने हिस्सा लिया।

यह पहली बार हुआ है कि स्पीकर ने शून्य काल के दौरान किसी नोटिस को स्वीकार नहीं किया है। संसद में शून्य काल की अवधि प्रश्नकाल से पहले निर्धारित होती है। इस दौरान सांसद अपने क्षेत्र के अत्यंत महत्व के मामलों को संक्षिप्त में सदन के समक्ष रखते हैं। इसके लिए उन्हें 10 दिन पहले नोटिस देने की बाध्यता नहीं होती है।

स्पीकर ओम बिरला ने विपक्ष को बहस के अंत में मंत्री के जवाब के बाद सफाई देने का मौका देने जैसी नई परंपरा की शुरुआत की है। यह स्पीकर की कार्यशैली से ही संभव हुआ है कि सदन में चुन कर आए नए सदस्यों में से पहले ही सत्र में करीब 90 फीसदी सांसदों को बोलने का मौका मिला है। इतना ही प्रश्नकाल के दौरान औसतन 3 से 4 सवाल की जगह 8 से 9 सवाल पूछे जा रहे हैं। संसद के मौजूदा सत्र में अब तक नौ बिलों को मंजूरी मिल चुकी है।