Manipur Violence: मणिपुर के इंफाल वेस्ट जिले के कोत्रुक गांव पर बम गिरने के दो हफ्ते बाद भी हवा में बारूद और राख की महक बनी हुई थी। कुछ घरों की टिन की छतों पर बड़े-बड़े छेद हो गए थे। इतना ही नहीं एक घर की दीवार पर गोलियों के निशान भी थे। वहीं कई घर राख के ढेर में तब्दील हो चुके थे। इंफाल वेस्ट जिले के इस छोटे से गांव में एक सितंबर को जमकर बर्बादी हुई है।

पिछले 16 महीनों में राज्य में शांति और हिंसा के काफी दौर देखे गए हैं, लेकिन कोत्रुक जैसे गावों में संघर्ष हमेशा जिंदा रहा है और गोलियों की आवाजें आम बात हो गई हैं। लोगों ने अनुमान लगाया कि अब तक गोलीबारी की गांव में कम से कम 30 ऐसी घटनाएं हुई हैं। कोत्रुक इंफाल वेस्ट के मैतई बहुल घाटी का आखिरी गांव है। गांव के एक तरफ तो जंगल है। यह कांगपोकपी की पहाड़ियों में ऊपर की तरफ ढलान पर है।

सीमांत क्षेत्र में हिंसा का ज्यादा असर पड़ा

घाटी और पहाड़ी जिलों के बीच के बार्डर पर बसे इस तरह के गांवों को सीमांत क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। हिंसा में इन पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है। एक-दूसरे से लड़ने वाले दो समुदायों के बीच बसे इन गांवों में कुछ-कुछ टाइम पर गोलीबारी, बमबारी और हत्याएं होती रही हैं। कोत्रुक के इस गांव में सभी का ध्यान उस समय गया जब यहां पर 1 सितंबर को कई घंटों तक फायरिंग हुई और कई घरों को जला भी दिया गया।

म्यांमार से मणिपुर में दाखिल हुए 900 कुकी उग्रवादी, सिक्योरिटी एजेंसियों ने जारी किया अलर्ट

हिंसा में दो लोगों की जान चली गई। इस दिन गांव पर बम गिराने के ड्रोन के कथित इस्तेमाल ने भी हिंसा में एक नया ही मोड़ ले लिया। तकनीक के इस्तेमाल को लेकर भी सवाल खड़े होने लगे। कई महीनों की शांति होने के बाद में 1 सितंबर को मणिपुर में फिर से हिंसा में बढ़ोतरी हो गई। पिछले कुछ महीनों में ऐसी कोई भी घटना नहीं हुई थी। फिर भी थांगजाम नुंगशिटोम्बी ने कहा कि उस दौरान भी उन्हें चैन की सांस नहीं मिली थी।

लोग रिलीफ कैंप में बिता रहे जीवन

दोनों ओर के बाकी गावों की तरह बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग समेत सभी गांव से बाहर चले गए हैं और इंफाल वेस्ट जिले में लगभग चार किलोमीटर अंदर फुमलोउ में मौजूद रिलीफ कैंप में रह रहे हैं। हालांकि, नुंगशिटोम्बी कोउट्रुक में अपने घर पर ही रुकी हुई थी। रात में निगरानी भी कर रही थी और हथियार बंद लोगों के लिए खाना भी पका रही थी। गांव के रहने वाले सभी लोग पिछले 16 महीनों से संघर्ष में भागीदार रहे हैं।

हालांकि, 1 सिंतबर के बाद नुंगशिटोम्बी फुमलोउ प्राइमरी स्कूल में बने राहत शिविर में रह रही हैं। उनका घर भी उस दिन जला दिए गए थे। उन्होंने कहा कि आखिरी बार दोनों पक्षों के बीच में गोलीबारी काफी समय पहले हुई थी। लेकिन उन छह महीनों के दौरान भी मैं कभी भी ढील नहीं दे पाई। समय-समय पर हवा में गोलीबारी होती रहती थी। गोलियों और बंदूकों की आवाजें आना आम बात है।

नुंगशिटोंबी को संघर्ष शुरू होने के बाद रिलीफ कैंप में ले जाया गया था। वह कहती है कि तब से वे शायद ही कभी एक कमरे में सोए हों। फुमलोऊ स्कूल में बनाए गए रिलीफ कैंप में 48 लोग और कई बच्चे रहते हैं। कोत्रुक के 200 से ज्यादा लोग एक खुले हॉल में बने कैंप में रहते है। इस को हर तरफ तिरपाल से घेर दिया गया था। दोनों शिविरों के लोग स्कूल में एक साथ खाना खाते हैं।

किसने की पूर्व सैनिक की हत्या? मणिपुर में जारी बवाल के बीच मिला खून से लथपथ शव

संघर्ष का खेती पर भी पड़ा असर

गांवों में लोगों की आम जिंदगी की तरह संघर्ष ने खेती पर भी काफी असर डाला है। पिछले साल स्थानीय लोगों ने पूरी सिक्योरिटी से घिरे होने के बाद में ही धानों की कटाई और बुआई की थी। लेकिन बढ़ते संघर्ष की वजह से इस बार शंका है कि किसान इस साल अपनी फसलें काट पाएंगे। नुंगशिटोम्बी ने कहा कि अगर हम पहले किसी काम पर 10 दिन की मेहनत करते थे, तो पिछले साल हम उसी काम पर सिर्फ दो दिन ही लगा पाए। इसलिए पैदावार में भी गिरावट हुई।

इस साल कटाई का मौसम अगले महीने अक्टूबर में शुरू होगा, लेकिन मुझे नहीं पता कि हम कितनी जगह तक अपनी पहुंच बना पाएंगे। निंगथौजम लॉरेंस ने कहा कि वह और उसके जैसे काफी सारे लोग हथियारों का इस्तेमाल करना नहीं जानते हैं। उनकी ड्यूटी केवल बंकरों पर नजर रखने की है। वह पिछले साल मई से ही गांव में ड्यूटी पर है। उन्होंने बताया कि उनके माता-पिता और बहन इंफाल में रिश्तेदारों के साथ रह रहे हैं। वह अकेले ही कोत्रुक गांव में रह रहे हैं।

(सुकृता बरुआ की रिपोर्ट)