घर-घर में गंगाजल का होने से लेकर हर अवसर पर उसका उपयोग देखा होगा। इस जल की गुणवत्ता के बारे में जैसे सबको मालूम है कि चाहे जितना पुराना हो जाए, इसमें कीड़े नहीं पड़ते। कोई इस महान नदी का धार्मिक महत्त्व माने या न माने, लेकिन यह हर एक को आकर्षित करती है।
यही वजह है कि मशहूर शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के बारे में कहा जाता है कि प्रतिदिन गंगा स्नान करते थे। फिर क्या वजह है कि इस नदी की साफ-सफाई के प्रति हम इतने लापरवाह हैं। हाल ही में उत्तराखंड में जो दिखा, वह तकलीफदेह था। गंगा के किनारे कितने बड़े-बड़े कूड़े के ढेर आखिर हमारे और बेशुमार सैलानियों के ही तो लगाए होते हैं।
कूड़ा हम फैलाएं और साफ कोई और करे, यही भावना तो है कि हम अपने फैलाए कूड़े के बारे में जरा से भी चिंतित नहीं होते। जो खाया उसका रैपर यानी खाली प्लास्टिक की थैली सड़क पर फेंक दिया। अब करता रहेगा कोई और साफ। गंदगी की निंदा तो हम सब करते हैं, लेकिन उसे दूर करने में क्या योगदान देते हैं?
दशकों से गंगा के प्रदूषित होने और उसकी सफाई की योजना पर अरबों रुपए खर्च हो चुके हैं। अलग से मंत्रालय भी हैं। वहां से बताया जाता रहता है कि गंगा साफ हो रही है, मगर जमीन पर देखा जाए तो शायद ही कहीं ऐसा नजर आता है। यहां तक कि दूरदराज के यमुनोत्री जैसे इलाकों में भी यात्री इतना कूड़ा छोड़कर आते हैं कि उसका निपटारा मुश्किल से हो पाता है। इस अनोखी नदी के किनारे जो शहर बसे हुए हैं, वे भी बिना किसी जिम्मेदारी के अपना सारा कूड़-कचरा इस नदी में प्रवाहित करते रहते हैं। जिसे पूजते हैं, उसे ही गंदा करने पर जरा-सा भी दुख नहीं होता। क्यों भला?
जिस नदी से करोड़ों लोगों की प्यास बुझती हो, सिंचाई के साधन उपलब्ध होते हैं, हर पवित्र कार्य में उसके जल की जरूरत होती हो, उसी को गंदा करना जरा बुरा नहीं लगता। पिछले दिनों उत्तराखंड में एक बहुत बड़े होटल समूह के ‘रिसार्ट’ में चारों ओर आम और लीची के ढेर सारे पेड़ दिखे। नीचे गिरी लीचियां और आम इतने थे कि बटोरते रहा जाए, मगर खत्म न हों।
बेशुमार चिड़ियों के कलरव से गूंजता परिसर। सामने बहती गंगा और उसके पार ऊंचे-ऊंचे हरियाली से आच्छादित पहाड़। जल की तेज धारा में राफ्टिंग वालों की भीड़, जो खूब शोर मचाते चलते थे। उन्हें देख डर लगता था, क्योंकि किसी ने कहा था कि इसमें से बहुत से बिना तैराकी जाने भी राफ्टिंग पर चले जाते हैं और कई बार जान गंवा देते हैं।
वैसे भी नदी की धारा में जितनी तेजी होती है, उसमें कोई तैरने वाला भी मुश्किल में पड़ जा सकता है। ऐसे में जिन्हें तैरना नहीं आता है, उन्हें सावधान रहना चाहिए। लेकिन ऐसी घटनाएं आम हैं जब चेतावनी के बावजूद कुछ लोग शौक से इस तरह के खतरनाक शौक को पूरा करने राफ्टिंग करने चले जाते हैं और नदी की तेज धार में अक्सर बह कर किसी के डूब जाने की त्रासद खबरें सुनने को मिलती हैं।
खैर, शाम के छह बजे गंगा आरती का समय होता है। उसके लिए नीचे सीढ़ियां उतरकर नदी के पास जाना पड़ता है। होटल परिसर के अंदर ही एक बड़ा नाला बना था। उसमें पानी बहुत तेजी से बह रहा था। पूछने पर बताया गया कि यह होटल के अंदर का अपना झरना है। मगर झरने का पानी इतना मटमैला और गंदा क्यों था, इसका जवाब नहीं मिल सका। बात इधर-उधर गोल कर दी गई।
पहले से ऐसी खबरें आती रहती हैं कि गंगा किनारे जो होटल हैं, वे अपनी सारी गंदगी इस नदी में प्रवाहित कर देते हैं। जहां आरती के लिए नदी में पांव डाले लोग छोटी-छोटी शिलाओं पर बैठे थे, उससे कुछ ही दूर नाला था। लोग गंगा जल के छींटे अपने ऊपर मार रहे थे, आचमन कर रहे थे, मगर ध्यान में लगातार वह नाला आ रहा था। सोचा जा सकता है कि जब इतने महंगे होटल का नाला नदी में इस तरह से गिर रहा था, जिसे झरना बताया गया, तो दूसरे होटलों का क्या हाल होगा। आखिर इस लापरवाही को कौन रोकेगा? जब गंगा के उद्गम स्थान से कुछ ही दूर ऐसा हो रहा है, तो मैदानी इलाकों के बारे में क्या कहा जाए।
लोगों की आस्था का सवाल अगर दूर भी खिसका दिया जाए तो भी साफ जल को प्रदूषित करने का हक किसी को क्यों हो। मगर व्यापार को सिर्फ अपने मुनाफे से मतलब होता है। वरना ऐसा तो नहीं ही है कि अपने यहां के प्रदूषित जल को साफ करके सिंचाई और अन्य कामों में नहीं लिया जा सकता। अफसोस है कि लोगों को ऐसा बार-बार बताना या फिर इस पर लिखना पड़ता है, तरह-तरह की चिंताएं प्रकट की जाती हैं, साफ पानी की कमी की बातें होती हैं, मगर हमारा ध्यान नहीं जाता।