कर्नाटक हाईकोर्ट ने आत्महत्या से जुड़े एक मामले में टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि सामान्य तरीके से आत्महत्या करने के लिए कह देना उकसाना नहीं मान सकते। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता को आत्महत्या को लेकर उकसाने मामले में राहत देते हुए केस को भी समाप्त कर दिया। इस मामले में याचिकाकर्ता ने कहा था कि उसने अपनी बात सिर्फ अपने दुख को व्यक्त करने के लिए कहा था न की उसका उद्देश्य किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना था।
मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के जज एम नागप्रस्ना ने कहा कि याचिकाकर्ता केवल इसलिए दोषी हो जाए कि उसने अपनी पत्नी और उसके अवैध संबंध को लेकर पादरी के प्रति नाराजगी जाहिर की थी। दरअसल पादरी और याचिकाकर्ता की पत्नी के साथ कुछ संबंध थे जिसको लेकर उसने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा था,’जाओ और खुद को लटका लो।’
आत्महत्या करने की कई वजह हो सकती है
कोर्ट ने ये भी कहा कि इसका मतलब ये नहीं कि नाराजगी में कही गई बात के लिए किसी को IPC की धारा 306 यानी सुसाइट के लिए उकसाना मान लिया जाए। ‘आत्महत्या करने की कई वजह हो सकती है। जिसमें से एक वजह तो ये भी हो सकती है कि चर्च के फादर (पादरी) होने के बावजूद याचिकाकर्ता की पत्नी के साथ उसके अवैध संबंध थे।’
पुलिस ने आत्महत्या को लेकर चार्जशीट में कही थी ये बात
वहीं इस पूरे केस की बात करें तो चर्च के पादरी की आत्महत्या को लेकर उकसाने के मामले में याचिकाकर्ता पर आरोप था। पादरी ने 11 अक्टूबर 2019 को आत्महत्या की थी। इस मामले में पादरी की ओर से केस लड़ रहे लोगों ने आरोप लगाया था कि याचिकाकर्ता की तरफ से मिली धमकी के बाद पादरी ने ये कदम उठाया था। वहीं इस मामले में पुलिस की चार्जशीट दाखिल की थी जिसमें बताया गया था कि याचिकाकर्ता ने फादर को इस बात की धमकी दी थी कि वो उसकी पत्नी और फादर के बीच अवैध संबंधों को उजागर कर देगा।