केंद्र की मोदी सरकार ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10% आरक्षण देने का फैसला बेहद ही जल्द और गोपनीय ढंग से लिया। यहां तक कि इस बात की जानकारी इससे संबंधित मंत्रालय को भी नहीं थी। कैबिनेट से हरी झंडी मिलने के एक दिन बाद सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री कृष्ण पाल सिंह गुर्जर ने लोकसभा में सामान्य वर्ग के गरीब तबके को आरक्षण देने की बात से इनकार किया। उन्होंने तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के एक सांसद के पूछे गए सवाल के लिखित जवाब में अपनी बात कही।

टीआरएस के सांसद ने पूछा था कि क्या सरकार अपर कास्ट के आर्थिक रूप से कमजोर तबके को शैक्षणिक क्षेत्र और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने जा रही है। इसके जवाब में मंत्री ने कहा कि उनके संज्ञान में ऐसी कोई भी बात नहीं है। गौरतलब है कि उनका जवाब 8 जनवरी को सार्वजनिक किया गया। जबकि, उसके ठीक पहले कैबिनेट ने अपर कास्ट के कमजोर तबके को आरक्षण देने का प्रस्ताव पारित किया था और उसी दिन सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने अगड़ी जातियों में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए आरक्षण सुनिश्चित करने के लिए 124वां संविधान संशोधन बिल लोकसभा में पेश किया। हालांकि, राज्यमंत्री के जवाब के बारे में कहा गया कि लिखित उत्तर कुछ दिन पहले तैयार करके रख लिया गया होगा।

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अगड़ी जातियों के गरीब लोगों को आरक्षण देने के लिए संविधान में संशोधन संबंधी विधेयक लोकसभा और उसके बाद राज्यसभा से बिना किसी रुकावट के पास हो गया। सबसे बड़ी बात की जिस रूप में इस बिल को सरकार ने पेश किया था उसी रूप में पारित हो गया। क्योंकि, जितने भी संशोधन के प्रस्ताव पेश किए गए वे सभी गिर गए। संसद के दोनों सदनों से यह बिल पास तो हो गया, लेकिन इस दौरान नेताओं ने इसकी टाइमिंग पर सवाल खड़े किए।