चंडीगढ़ पुलिस द्वारा शराब के नशे में गाड़ी चलाने और खंभे से टकराने के आरोप में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किए जाने के 6 साल बाद, चंडीगढ़ की जिला अदालत ने उसे बरी कर दिया। कोर्ट ने इसके पीछे तर्क दिया कि आरोपी से शराब की गंध आने का मतलब यह नहीं है कि वह शराब के नशे में था।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, 9 जून, 2019 कोचंडीगढ़ के सेक्टर 22/23 के लाइट प्वाइंट पर, अक्षय ने नशे की हालत में अपने वाहन (रजिस्ट्रेशन नंबर PB01A4282) से पुलिस को टक्कर मार दी थी। इसके बाद उसे पकड़ लिया गया और उसकी मेडिकल जांच की गई, जिसमें पता चला कि वह शराब के नशे में था। इसके बाद मामला दर्ज किया गया।

आरोपी की कार ने पुलिस को मारी टक्कर

आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया और उसके वाहन को पुलिस कब्जे में ले लिया गया। आरोपी अक्षय पर मोटर वाहन अधिनियम की धारा 185 के तहत मामला दर्ज किया गया। अदालत में सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष के गवाह, इंस्पेक्टर (सेवानिवृत्त) राजिंदर सिंह ने गवाही दी कि वह कांस्टेबल प्रदीप और कांस्टेबल विपिन के साथ सरकारी वाहन संख्या CH01GA-6814 में गश्त कर रहे थे।

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जब वे सेक्टर 22/23 लाइट प्वाइंट के पास पहुंचे तो सेक्टर-22 मार्केट की तरफ से एक कार तेजी और लापरवाही से आ रही थी। कार सेक्टर-22/23 लाइट प्वाइंट स्थित डिवाइडिंग पोल से टकरा गई। जब उससे पूछताछ की गई तो उसने अपना नाम अक्षय बताया और उसके मुंह से शराब की बदबू आ रही थी। उन्होंने कहा कि अक्षय ने शराब पी थी लेकिन जांच के समय वह उसके प्रभाव में नहीं था।

‘आरोपी के शरीर से शराब की गंध आने का मतलब यह नहीं है कि वह शराब के नशे में था’

मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) सचिन यादव ने कहा, “केवल डॉक्टर की सामान्य राय के आधार पर किसी आरोपी को मोटर वाहन अधिनियम की धारा 185 के तहत उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। मोटर वाहन अधिनियम की धारा 185 के तहत आरोपी के खिलाफ कलंदरा दर्ज करने से पहले ब्रीथ एनलाइजर टेस्ट या ब्लड टेस्ट अनिवार्य है जो वर्तमान मामले में नहीं किया गया है। केवल इसलिए कि आरोपी के शरीर से शराब की गंध आ रही थी, इसका मतलब यह नहीं है कि वह शराब के नशे में था।

अदालत ने कहा कि आरोपी को केवल डॉक्टर की सामान्य राय के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जिसकी किसी वैज्ञानिक परीक्षण से पुष्टि नहीं होती। यह मानते हुए कि अभियोजन पक्ष के पास सबूतों का अभाव है, अदालत ने आरोपी को बरी कर दिया। पढ़ें- सरेंडर करने की अवधि बढ़ाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस MLA की दलील; जानें मामला