तीन दशक पहले 1992 में हुए अजमेर गैंगरेप और ब्लैकमेल केस के छह आरोपियों को स्पेशल पॉक्सो कोर्ट ने दोषी ठहराया है। इन आरोपियों ने 100 से ज्यादा छात्राओं से गैंगरेप किया था। इनके खिलाफ कुछ देर में सजा का ऐलान किया जाएगा। दिल को झकझोर देने वाली यह घटना 1992 में हुई थी। इसमें कुल 19 आरोपी थे, जिनमें से अब तक 9 को सजा सुनाई जा चुकी है। मुख्य आरोपी फारूक चिश्ती अजमेर युवा कांग्रेस का अध्यक्ष था। दूसरा आरोपी नफीस चिश्ती अजमेर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का उपाध्यक्ष था और तीसरा अनवर चिश्ती अजमेर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का संयुक्त सचिव था। एक अन्य आरोपी ने 1994 में आत्महत्या कर ली थी। इसके अलावा एक अब भी फरार है।

घटना का खुलासा होने पर पूरे देश में हड़कंप मचा दिया था

जिन आरोपियों को मंगलवार को कोर्ट ने दोषी माना है उनके नाम नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ टार्जन, सलीम चिश्ती, सोहिल गणी, सैयद जमीर हुसैन और इकबाल भाटी हैं। जिन छात्राओं के साथ दुष्कर्म हुआ था वे सभी 11 से 20 वर्ष के बीच की थीं और अधिकतर हिंदू थीं। ये सभी छात्राएं अजमेर के एक नामी स्कूल में पढ़ाई कर रही थीं। इस घटना का खुलासा होने पर पूरे देश में हड़कंप मचा दिया था।

दुष्कर्म के दोषियों में से अधिकतर दूसरे धर्म के लोग थे। मुकदमे में दोषी ठहराए गए आठ आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, लेकिन उनमें से चार को 2001 में राजस्थान हाईकोर्ट ने बरी कर दिया। 2007 में अजमेर की एक फास्ट ट्रैक कोर्ट ने फारूक चिश्ती को दोषी ठहराया, लेकिन 2013 में, हाईकोर्ट ने उसे रिहा कर दिया था।

इस घटना में अधिकतर पीड़ित छात्राएं बड़े घरों की थीं। आरोपी इन छात्राओं को बहला-फुसलाकर पहले अपहरण करते थे, फिर इनकी नग्न तस्वीरें खींचकर उनको ब्लैकमेल और गैंगरेप किये। इस घटना का खुलासा एक अखबार के स्थानीय रिपोर्टर ने की। रिपोर्टर ने घटना की स्टोरी को अपने अखबार में प्रकाशित की तो पूरे देश में हड़कंप मच गया था। मई 1992 में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरो सिंह शेखावत ने सीबीसीआईडी को घटना की जांच का आदेश दिया।