हम तीन दोस्त हैं…. मैं यानी कि सुधांशु, शुभम और अपूर्व….जब कॉलेज खत्म हुआ था, बस एक कसम खाई थी…चाहें कहीं भी हों…साल में एक बार जरूर साथ कहीं घूमने जाएंगे… लोग रीयूनियन के लिए पार्टी करते हैं…. क्लब जाते हैं…हमारा अंदाज अलग था….WE ALYWAYS WANTED ADVENTURE…. गोवा गए…लद्दाख पहुंच गए and FINALLY सिक्किम की ट्रिप भी कर ही ली…बोलने की जरूरत नहीं…THE MOST ADVENTUROUS ONE…THE MOST DANGEROUS ONE….AND बहुत कुछ सिखाने वाली

अपनी सिक्किम की कहानी बताने से पहले एक बात सभी के सामने ACCEPT करना चाहता हूं….हमे पहले से पता था कि सिक्किम में WEATHER खराब चल रहा है…हमारी ट्रिप एक अक्टूबर से 8 अक्टूबर तक की थी…सारे दिन बारिश का PREDICTION था….BUT हमारे PAST EXPERIENCE ऐसे रहे कि…WE WERE CONFIDENT…कुछ नहीं होगा….लद्दाख में बारिश हुई थी…गोवा में हुई थी…SO कोई BIG DEAL नहीं लगी

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जब हम सिक्किम जाने के लिए बहुत EXCITED थे (फोटो- दिल्ली एयरपोर्ट की)

खैर हम एक अक्टूबर को SPICEJET की फ्लाइट से सिक्किम पहुंच गए थे…जैसा हर सिक्किम ट्रिप पर होता है…पहले दो दिन GANGTOK के लिए RESERVED थे….ट्रिप क्योंकि हमारी थी तो HISTORY ने खुद को रिपीट किया…शाम को जैसे ही MG ROAD पर घूमने का प्लान बनाया…जोरदार बारिश ने हमारा NEXT LEVEL WELCOME किया… पहले ही दिन अपने कपड़े भिगो लिए जो ट्रिप खत्म होने तक भी सूखे नहीं…फिर NEXT DAY बाबा हरभजन मंदिर और SEVEN SISTER वाले WATERFALL को देखने गए…ये दो तारीख थी… इस डेट पर इतना EMPHASIZE इसलिए कर रहा हूं, BECAUSE THIS WAS THE LAST PLACE WE VISITED IN SIKKIM

सिक्किम की आखिरी जगह जहां पर घूमने जा पाए, तस्वीर 2 अक्टूबर की

3RD OCT को हम LACHEN के लिए निकल लिए थे…7 घंटे के करीब की जर्नी थी….लगातार बारिश होती रही…हम भी मस्त गाड़ी में BLUETOOTH कनेक्ट कर गाने सुन रहे थे…AROUND 7.30 IN EVENING हम लाचेन पहुंच गए…अगले दिन दो जगह जाना था… एक काला पत्थर और दूसरा गुरुडोंगमर लेक….EXCITED बहुत ज्यादा थे…ड्राइवर ने कहा था- भईया तगड़ी बारिश हुई है…ऊपर तो आपको SNOWFALL मिलने वाली है…लेकिन हम लोगों की किस्मत इतनी शानदार थी…हम लोग एक जगह नहीं जा पाए…उसी रात चार घंटे बाद करीब साढ़े 11 बजे बड़ी तेज पलंग हिला….अपू्र्व तो सो रहा था…. मैं और शुभम बातें कर रहे थे….मैंने उसे बोला भी…भाई लगता है भूकंप आया है…उसने मेरी बात मजाक में उड़ा दी…कुछ मिनट बाद फिर तेज आवाज आई, पलंग हिला…BUT WE IGNORED…हम तीनों मस्त सो गए…एक घंटे बाद हमारे रूम का दरवाजा तेजी से नॉक किया गया

ये होटल का CARETAKER था…उसने हमे बोला- भया जल्दी नीचे चलिए कुछ गड़बड़ हो गई है….WE WERE CLUELESS…हमारे मन में पहला THOUGHT ये आया कि क्या हमारी गाड़ी में कुछ ऐसा निकल गया…कहीं ड्राइवर को तो कुछ नहीं हो गया….हम लोग भाग कर नीचे गए तो लोकल लोगों ने कहा कि….शायद Landslide हआ है….उस समय किसी को भी अंदाजा नहीं था कि असलियत में क्या हुआ…..

हम दो घंटे के करीब नीचे सड़क पर ही रहे….फोन से नेटवर्क-इंटरनेट जा चुका था…. पूरे इलाके में अंधेरा था….तभी मेरा Friend बोला- चल सो जाते हैं…सुबह Lachung के लिए निकलना है….आप इस बात को समझ रहे हैं- तीन को जो भी कुछ हुआ…हमे उसकी कोई जानकारी नहीं थी..हम तो मस्त जाकर सो गए…सुबह उठे तो बताया गया कि हम Lachung नहीं जा सकते…जिन सड़कों से होकर जाना था….वो सब पानी में बह गई

ये Information ही हमारे लिए Digest करना मुश्किल हो रहा था….तभी बताया गया कि जिन 27 ब्रिज को हम क्रास कर Lachen पहुंचे थे….वो सब बर्बाद हो गए….It was a glacier burst….कोई बादल नहीं फटा था….Glacier फटा था….पुलिस से पता चला कि ऊपर 27 के करीब सेना की चौकियां थीं….वो सब बह गईं…कितने मरे Exactly नहीं पता But वो बहुत भयानक था….पहली बार हम दोस्तों ने एक दूसरे को बोला- भाई लोग गंदा फंस गए….ऊपर से पानी आ रहा था….नीचे सारी सड़कें टूट चुकी थीं….And we were stuck in between

अब चार अक्टूबर तक एक चीज अच्छी हुई….जो भी कुछ बवाल हो रहा था…..हम उसमें Directly involve नहीं थे….हमे तो बस लोकल लेगों से Information मिल रही थी….But जैसा मैंने Starting में बताया….हमारी किस्मत बहुत शानदार थी…तो ये कसर भी दूर हो गई

पांच अक्टूबर को शाम को साढ़े सात बजे हम लोग होटल रूम में अपने डिनर का वेट कर रहे थे…..तभी होटल के केयरटेकर ने बहुत तेज हमारा Door knock किया… हमे लगा डिनर के लिए बुला रहा है….लेकिन वो बोला- भइया लेक फट गई…जल्दी भागिए

कुछ समझ नहीं आया….मुझे तो जूते पहनने का मौका भी नहीं मिला…एक जूता अपूर्व का उठा लिया…एक अपना ले लिया और भाग लिए…शुभम ने हरबड़ी में दो जैकेट उठा लीं…नंगे पैर बारिश के बीच भागते रहे….कुछ समझ नहीं आ रहा था कहां जाए…बहुत पैनिक वाली situation हो गई थी….एक लाचेन की लोकल lady थीं…उन्होंने कहा कि ऊपर पहाड़ों पर उनका कोई 400-500 साल पुराना घर है….जब 2011 में सिक्किम में भूकंप आया था…सबकुछ तबाह हो गया था…बस ये बच गया…हम सब ऊपर भागे…कुछ नहीं पता था कहां जा रहे हैं….बस भागते रहे….15-20 मिनट बाद लकड़ी का एक घर दिखा…बोला गया कि रात में यहीं पर रुकेंगे…

परेशान सभी थे, बस चेहरे पर एक उम्मीद (फोटो हमारे दोस्त इशान ने ली)

मैं कोशिश करता हूं आपको वो scenario समझाने की….वो ना एक छोटा सा लकड़ी का घर था….मतलब ऐसा लग रहा था कि हवा चलेगी और ये गिर जाएगा….but हमे बस अपनी जान बचानी थी….DECIDE ये हुआ कि सभी LADIES को अंदर रूम में शिफ्ट करेंगे और हम सभी बाहर खड़े रहेंगे….वो मंजर आज भी अंदर तक डरा जाता है….पानी की बहुत तेज आवाज आ रही थी…सब कह रहे थे कि पानी कभी भी यहां आ जाएगा….हर कोई PRAYER करने लगा…मैं बस जय वीर हनुमान बोलता रहा….मैं अपनी लाइफ का ऐसा END कभी नहीं चाहता था…डर बहुत लग रहा था…ठंड बढ़ती जा रही थी…हम तीनों ही दोस्तों ने मोजे भी नहीं पहन रखे थे….काफी कपकपी छूट रही थी….उस डर में पूरे 10 घंटे बीत गए और सुबह हो गई

होटल का OWNER बोला- भइया वापस चलते हैं….देखा जाएगा जो भी होगा…हम सब एक डर और सस्पेंस के बीच वापस चले गए….उस दिन के बाद से मैंने और मेरे दोस्तों ने अपने पैरों से जूते कभी नहीं उतारे…सोते वक्त भी जींस पहने रहते थे…पर्स जेब में होता था और एक जरूरी चीजों वाला बैग हमेशा साथ रखा….हम एक्शन मोड में थे…कभी भी भागने को कहते हम पूरी तरह रेडी थे….मुझे PERSONALLY रात में काफी डर लगने लगा था…लाइट होती नहीं थी…होटल वाले ने एक छोटी सी मोमबत्ती दे दी थी…उसी से गुजारा करना होता था…

एक दिन उस डर में बीत भी गया…लेकिन फिर अगले दिन हमारा ड्राइवर आया और उसने पैदल ही निकलने की बात कर दी…उस समय लाचेन में हम जैसे कई TOURIST तो फंसे ही थे….कई सारे ड्राइवर भी थे….उन सभी ड्राइवर्स ने DECIDE किया कि वो पैदल ही निकल जाएंगे…हमारे ड्राइवर ने तो ये कह दिया- भइया आप लोगों को तो आर्मी वाले बचा लेंगे…हमारा क्या होगा…हम भी कुछ नहीं बोल पाए और सारे ड्राइवर चले गए

उस दिन के बाद से हमारी एक अलग जंग शुरू हो गई…. खुद को बचाना तो था ही…उससे ज्यादा जरूरी ये था कि… परिवार को बता सकें कि हम जिंदा है…लोकल लोगों ने ही एक दिन बताया कि आर्मी वाले SATTELITE फोन करवा रहे हैं…वो जगह हमारे होटल से बहुत दूर थी… शुभम और मैं पैदल गए थे और हमे 35-40 मिनट लग गए चाटेंन वाले आर्मी प्वाइंट तक पहुंचने में…. आपको विश्वास नहीं होगा वो लाइन कितनी लंबी थी…. हम लोग 7 घंटे तक खड़े रहे…बीच-बीच में SATTELITE फोन के सिग्नल टूटते थे… हमे लगा आज बारी आएगी भी या नहीं…लेकिन मैंने उस दिन अपने पापा को फोन मिला लिया…. 15 सेकेंड की बात हुई और मैसेज चला गया- मैं जिंदा हूं

अब जिंदा हूं परिवार को बता तो दिया… लेकिन असल में जिंदा रहने के लिए खाने की जरूरत थी…हम लोग ना मैगी-मोमो खाकर पक चुक थे…वहां लाचेन में सबकुछ डबल-ट्रिपल रेट पर मिलता था…एक चाय तीस रुपये की…एक चिप्स पचास रुपये का…पैसे जेब में ज्यादा थे नहीं… लेकिन ये जो लोकल लोग थे ना…बहुत दिलदार…उन्होंने खुद से ही सभी टूरिस्ट के लिए लंगर शुरू कर दिया….कहने को दाल का पानी और मोटा चावल दिया जाता था… लेकिन पेट में कुछ जा रहा था… ये सोचकर हम खुश थे…वहां बस एक दिक्कत थी…चार बजे लंच होता था और फिर शाम 6 बजे वो डिनर के लिए बुला लेते…इस वजह से बाद में हमने वहां भी खाना छोड़ दिया… ये वो टाइम आ गया जब हम तीनों पूरे-पूरे दिन भूखे रहने लगे… सही मायनों में एक रोटी के लिए तरस जाते थे

सिक्किम में हमे भूखा ना सोने देने वाला लंगर (फोटो हमारे दोस्त इशान ने ली)

इस बीच आर्मी ने अपना रेस्क्यू भी शुरू कर दिया था…रूल सिंपल था- पहले विदेशियों को भेजेंगे…फिर बुजुर्गों को… फिर परिवार वालों को और आखिर में हम जैसे सिंगल लौंडे….ये रेस्क्यू भी अलग ही STRUGGLE था…WEATHER इतना UNPREDICTABLE रहता था कि रोज की बारिश… जब सोचा आज रेस्क्यू होगा तभी आर्मी की तरफ से उसे कैंसिल कर दिया जाता…ऐसे करते एक हफ्ता और बीत गया…हमारी आठ अक्टूबर की फ्लाइट थी…वो तो कहीं बहुत पीछे छूट गई….इसके ऊपर जिन सड़कों पर चलकर हम जाया करते थे… वहां क्रैक बढ़ते जा रहे थे…कई जगह बिजली के खंबे गिर गए थे…हर तरफ NEGATIVITY थी…हम तो UNO और डमश्लास खेलकर टाइम पास कर रहे थे….

जब चीनुक हेलीकॉप्टर से हुआ हमारा रेस्क्यू, जोर-जोर से लगे भारत माता की जय वाले नारे (वीडियो हमारे दोस्त नीलेश ने दिया)

फिर 13 अक्टूबर को हमारा रेस्क्यू हो गया….हमारी भी फिल्म की हैपी एंडिंग हुई….POSITIVE चीज ये रही कि घर के पहले बंदे थे जो चीनुक हेलीकॉप्टर में बैठकर आए…तो कुछ इस तरह आर्मी की जय जय कार करते हुए… भारत माता की जय के नारे लगाते हुए मेरी सिक्किम ट्रिप का समापन हो गया और मैं खुशी-खुशी घर आ गया