भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और नासा की संयुक्त पहल के तहत एक्सिओम-4 अंतरिक्ष मिशन पर गए वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने कई प्रयोग किए हैं। शुभांशु द्वारा किए गए प्रयोगों में सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण के तहत मांसपेशियों की हानि, अंतरिक्ष में पाचन और अंतरिक्ष यात्रियों की मानसिक भलाई आदि शामिल है। उन्होंने 26 जून को तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के साथ इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) में कदम रखा।

एक्सिओम स्पेस ने एक बयान में कहा, “शुक्ला का कॉल साइन ने मायोजेनेसिस अध्ययन के लिए लाइफ साइंसेज ग्लोबॉक्स (एलएसजी) में ऑपरेशन किए, जिससे पता चल सकता है कि माइक्रोग्रैविटी मांसपेशियों का कैसे नुकसान करती है।” उन्होंने कहा, “इन जानकारियों का उपयोग पृथ्वी पर मांसपेशियों के नुकसान की स्थितियों के लिए बेहतर उपचार में भी किया जा सकता है, जिनमें उम्र बढ़ने और गतिहीनता से जुड़ी समस्याएं भी शामिल हैं।” शुक्ला द्वारा युवा भारतीय विद्यार्थियों ध्यान में रखते हुए एक वीडियो भी बनाया गया है। जिसमें चर्चा की गई कि पाचन तंत्र जगह और स्थान के अनुसार किस प्रकार कार्य करता है।

मानसिक स्वास्थ्य के लिए अध्ययन

अंतरिक्ष यात्रियों के मानसिक स्वास्थ्य के अध्ययन के लिए जहाज पर मौजूद क्रू ने पूरी गतिविधियों का डाक्यूमेंटेशन किया। इस वजह से अंतरिक्ष में स्वास्थ्य को समझने के लिए रिसर्च में योगदान मिला। एक्सिओम स्पेस द्वारा कहा गया है, “यह परियोजना मेंटल डिसऑर्डर से बचने के उपाय और उपचार के लिए डिस्टेंस टेक्नोलॉजी विकसित करके पृथ्वी पर दूसरों को लाभ पहुंचा सकती है। खासकर ये उन लोगों के लिए है जो अलग-थलग या चुनौतीपूर्ण वातावरण में रहते हैं। जहां मानसिक स्वास्थ्य के देखभाल तक पहुंच सीमित है।”

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चालक दल ने एक विशेष हेडसेट का उपयोग करके मस्तिष्क-कंप्यूटर इंटरफेस तकनीक को आगे बढ़ाने के लिए डिजाइन किए गए एक प्रयोग में भी भाग लिया, जो रक्त प्रवाह को ट्रैक करके अप्रत्यक्ष रूप से तंत्रिका गतिविधि की निगरानी करता है। यह फोटो ग्रैव परियोजना का एक हिस्सा है, जिसका उद्देश्य मस्तिष्क के संकेतों को डिकोड करना है। जिससे मनुष्यों के लिए केवल अपने विचारों का उपयोग करके कंप्यूटर सिस्टम को नियंत्रित करने का मार्ग प्रशस्त होता है।

एक्सिओम स्पेस ने कहा, “भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए इस तरह का इंटरफेस अंतरिक्ष यात्रियों के अंतरिक्ष यान प्रणालियों के साथ बातचीत करने के तरीके को सुव्यवस्थित कर सकता है। खासकर उच्च-तनाव या हाथों से मुक्त परिदृश्यों में। पृथ्वी पर वापस, वही तकनीक न्यूरो रिहैबिलिटेशन और सहायक उपकरणों को आगे बढ़ा सकती है, जो गतिशीलता या संचार चुनौतियों वाले लोगों के लिए नई उम्मीद पेश करती है।”