पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों से देश में गैर-भाजपा व गैर-कांग्रेस विकल्प खड़ा करने की मुहिम को झटका लगा है। चुनाव के पहले राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प तैयार करने की कोशिश में जुटे क्षत्रपों- तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार एवं टीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव की महात्त्वाकांक्षाओं को करारा झटका लगा है।

बंगाल में भाजपा को करारी मात देने के बाद गैर भाजपा विपक्षी मोर्चे की अगुआई का ख्वाब देख रही ममता बनर्जी ने सत्ता के प्रमुख रणक्षेत्र उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के लिए चुनाव प्रचार किया। यूपी में कई दिनों तक डेरा डाला। उन्होंने बंगाल का विकास माडल सामने रखते हुए यूपी वालों से अखिलेश को वोट देने की अपील की। अगर नतीजे अखिलेश यादव के पक्ष में आते तो ममता बनर्जी के भाजपा विरोधी गैर-कांग्रेसी धड़ा संभालने की ख्वाहिश को मजबूत मिलती। अब सपा के साथ ही ममता की उम्मीदों को भी झटका लगा है।

बंगाल जीत के बाद ममता बनर्जी ने खुद को राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प के तौर पर उभारना शुरू किया था और सक्रियता बढ़ाई थी। अब आप आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल का बढ़ा कद उनकी राह का रोड़ा है। विधानसभा चुनाव के पहले ममता बनर्जी ने जब दिल्ली दौरा किया तो उन्होंने कांग्रेस का पल्ला झटकने की मंशा स्पष्ट कर दी। साथ ही, अरविंद केजरीवाल से भी दूरी बनाए रखने का संकेत दिया था। दिल्ली में वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलीं, फिर कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ बयान दिया और वैकल्पिक विपक्ष की बात की।

इससे पहले केजरीवाल और उनका मंत्रिमंडल जब कई दिनों तक उपराज्यपाल आवास में धरने पर बैठा तो ममता बनर्जी, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी और केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, केजरीवाल के आवास पर पहुंचे थे। इसके बाद जब कुछ सामान्य हुआ तो केजरीवाल को विपक्षी दलों के बीच विशेष स्थान नहीं मिल सका।

अब बदली परिस्थितियों में गैर कांग्रेस, गैर-भाजपा गठबंधन के चेहरे के तौर पर केजरीवाल की चुनौती सामने है। गौरतलब है कि अतीत में शरद पवार की पहल पर राष्ट्र मंच तैयार किया गया था, जिसे यशवंत सिन्हा ने 30 जनवरी 2018 को भाजपा सरकार के खिलाफ गठित किया था। इस बैठक में शरद पवार संयोजक चुने गए थे और ममता बनर्जी को आगे किया गया था, लेकिन केजरीवाल को बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई थी। अब बदली स्थितियों में ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, शरद पवार, दक्षिण भारत से चंद्रबाबू नायडू, चंद्रशेखर राव, उद्धव ठाकरे की गतिविधियों से विपक्षी राजनीति की दिशा तय होगी।

केसीआर के नेता चंद्रशेखर राव खुलकर कह चुके हैं कि देश में तीसरा मोर्चा खड़ा किया जाए। ऐसा मोर्चा जो 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकता हो। केसीआर की सोच है कि तीसरा मोर्चा, गैर-भाजपाई और गैर-कांग्रेसी दलों गठबंधन होगा। इसमें तृणमूल कांग्रेस, राजद, सपा, आप, शिवसेना और एनसीपी जैसी पार्टियां बड़ी भूमिका में रहेंगी। अब पंजाब के चुनाव परिणामों ने आम आदमी पार्टी का दखल बढ़ा दिया है।

इन विपक्षी दलों के कांग्रेस से छिटकने का संकेत राज्यसभा के 12 सांसदों का निलंबन के मुद्दे पर दिख गया। जब सभापति एम वेंकैया नायडू ने सांसदों का निलंबन वापस लेने की मांग खारिज कर दी तो कांग्रेस सहित ज्यादातर विपक्षी दलों ने सदन से वाकआउट किया, लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया। संसद सत्र के पहले कांग्रेस ने विपक्ष की बैठक बुलाई तो तृणमूल ने दूरी बना ली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने विपक्षी नेताओं से अपील की कि सारे मतभेदों को भूल कर देश हित में संसद के भीतर एकजुट होकर खड़े हों, लेकिन यह अपील अनसुनी रह

2024 के पहले शक्तिपरीक्षण

विधानसभा चुनाव नतीजों का दूरगामी असर 2024 के आम चुनाव की तैयारियों पर दिखेगा ही। फौरी तौर पर राष्ट्रपति चुनाव और राज्यसभा चुनाव के समीकरण तय होंगे।
राष्ट्रपति चुनाव : मौजूदा राष्ट्रपति का कार्यकाल 24 जुलाई को पूरा हो रहा है। इसके पहले नए राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। यूपी चुनाव में यूपी के कुल वोटों का वेटेज 1.40 लाख से अधिक है। यह संख्या राष्ट्रपति के लिए कुल वोटों का करीब 13 फीसद है।

राज्यसभा चुनाव : राज्यसभा की 245 सीटों में फिलहाल आठ सीटें खाली हैं। भाजपा के पास इस समय 97 सीटें हैं और उनके सहयोगियों को मिला कर ये आंकड़ा 114 पहुंच जाता है। इस साल अप्रैल से लेकर अगस्त तक राज्यसभा की 70 सीटों के लिए चुनाव होना है, जिसमें असम, हिमाचल प्रदेश, केरल के साथ साथ यूपी, उत्तराखंड और पंजाब भी शामिल हैं। यूपी की 11 सीटें, उत्तराखंड की एक सीट और पंजाब की दो सीटों के लिए चुनाव इसी साल जुलाई में होना है। इन तीनों राज्यों में चुनाव के नतीजे सीधे राज्यसभा के समीकरण को प्रभावित करने वाले हैं।