इलाहाबाद हाईकोर्ट में ASI के सर्वे की प्रासंगिकता को लेकर चल रही सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष के वकील ने दमदार तर्क रखे। उनका कहना था कि ज्ञानवापी के भीतर बहुत सारे ऐसे साक्ष्य हैं जिनको देखकर इस नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि मस्जिद से पहले यहां कोई हिंदू मंदिर था।
हिंदू पक्ष की तरफ से पेश एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने कहा कि 21 जुलाई को बनारस की लोकल कोर्ट की तरफ से जारी आदेश में कोई खामी नहीं है। कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर के सर्वे का आदेश देकर कुछ गलत नहीं किया। उनका कहना था कि मस्जिद परिसर के भीतर शिवलिंग मौजूद है। जगह जगह पर संस्कृत श्लोक दिखते हैं। उत्तरी तरफ बने स्तंभों पर काफी कुछ विवादास्पद है। तभी इन खंभों को पेंट करके सच्चाई को छिपाने की कोशिश की गई है।
जैन का कहना था कि सर्वे के लिए जो आयोग बनाया गया है वो बेहतरीन कदम है। कमीशन मौके पर जाकर जांच करेगा तो और भी बहुत सारे साक्ष्य मिलेंगे जिनसे साफ हो जाएगा कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को तोड़कर किया गया था। एडवोकेट ने कहा कि कमीशन किसी भी तरह से मुस्लिम पक्ष के अधिकारों पर कुठाराघात नहीं करने जा रहा है। अगर उन्हें कभी भी कुछ गलत लगता है तो वो अपनी आपत्ति दर्ज करा सकते हैं।
यचिकाकर्ता के पास नहीं था मंदिर होने का कोई सबूत- बोले मुस्लिम पक्ष के वकील
उधर मस्जिद कमेटी की तरफ से पेश एडवोकेट एसएफए नकवी ने कहा कि उन्हें डर है कि सर्वे की रिपोर्ट को आधार बनाकर मस्जिद को ध्वस्त किया जा सकता है। उनका कहना था कि ज्ञानवापी विवाद से जुड़े मामले में अभी तक चार्ज फ्रेम तक नहीं हो सके हैं। लेकिन सर्वे का आदेश जारी कर दिया गया। उनका कहना था कि विवादास्पद जगह पर ASI के लोग कुदाल लेकर मौजूद दिखे। उनका कहना था कि सर्वे की मांग करने वाली याचिका जिन लोगों की तरफ से दायर की गई उनके पास ऐसा कोई सबूत नहीं है जो ये बता सके कि यहां मस्जिद से पहले मंदिर था। फिर कोर्ट का इस्तेमाल किया जा रहा है। अदालत का ऐसे इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
यूपी सरकार की तरफ से पेश एडवोकेट जनरल का कहना था कि बनारस की कोर्ट के आदेश में कोई खामी नहीं है। उनका कहना था कि ये सारा कुछ सच का पता लगाने के लिए ही तो किया जा रहा है। उन्होंने कोर्ट को आश्वस्त किया कि फैसला कुछ भी हो लॉ एंड आर्डर पर असर नहीं पडे़गा।