केवल इस्लाम के बारे में छात्रों को शिक्षा प्रदान करने वाले मदरसों की मान्यता रद्द करने के महाराष्ट्र सरकार के निर्णय पर नाराजगी के बीच शिवसेना ने आज कहा कि इस पहल को राज्य में धार्मिक शिक्षा पर आघात के मकसद के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
इस बारे में राज्य सरकार के निर्णय का विरोध करने वालों पर करारा प्रहार करते हुए शिवसेना ने कहा कि विरोध इस आशंका से किया जा रहा है कि अगर मुसलमानों ने स्वतंत्र रूप से सोचना आरंभ किया तब वोट बैंक की राजनीति पर आधारित दलों का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा।
शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में कहा गया है, ‘‘सरकार ने अंग्रेजी, विज्ञान और गणित जैसे विषय नहीं पढ़ाने वाले मदरसों को अनौपचारिक स्कूल के रूप में मानने का फैसला किया है। इस पहल को दुर्भावना से प्रेरित या धार्मिक शिक्षा पर आघात के मकसद के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। दूसरी ओर, इसे मुस्लिम बच्चों को मुख्यधारा में लाने के रूप में देखा जाना चाहिए।’’
शिवसेना ने जानना चाहा कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को मुख्यधारा में लाने में क्या बुराई है? इस पहल में साम्प्रदायिकता को फैलाने का प्रश्न कहां उठता है? संपादकीय में कहा गया है, ‘‘मुसलमान इस्लाम, इस्लामिक शिक्षा और कट्टरपंथ के बीच फंस गया है। इसलिए, जहां दुनिया हर गुजरते दिन के साथ आगे बढ़ रही है, मुसलमान अज्ञानता और निरक्षता के बीच फंस गया है।’’
इसमें कहा गया है, ‘‘अगर मुसलमान स्वतंत्र रूप से सोचने लगे तब इस्लाम के ठेकेदारों और कांग्रेस जैसे दलों का क्या होगा जो वोट बैंक की राजनीति पर आश्रित हैं। इसलिए वे सरकार के निर्णय का विरोध कर रहे हैं।’’
शिवसेना ने कहा कि सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि न केवल मदरसा बल्कि अन्य आस्थाओं में विश्वास रखने वाले धार्मिक संस्थाओं को भी अनौपचारिक स्कूल की श्रेणी में रखा जायेगा। और सरकार की पहल को मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बदले के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।