Shia vs Sunni Violence in Pakistan: पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान इन दिनों आतंकी धमाकों, शिया और सुन्नी समुदाय के बीच हो रही सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं से जूझ रहा है। 1947 में हिंदुस्तान से टूटकर बने इस मुल्क में शिया और सुन्नी समुदायों के बीच हुई खूनी लड़ाई ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर यह लड़ाई कब थमेगी? शिया और सुन्नी समुदायों के बीच कई जगहों पर लंबे वक्त से लड़ाई चल रही है लेकिन पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत का कुर्रम जिला पिछले कई दशकों से दोनों समुदायों की लड़ाई की वजह से खून-खराबे का शिकार है।

पाकिस्तान में शिया समुदाय अल्पसंख्यक है और वहां से न सिर्फ शिया बल्कि अहमदिया और हिंदू, ईसाई सहित अन्य अल्पसंख्यक समुदायों पर भी अत्याचार की खबरें सामने आती रहती हैं।

कुर्रम में ताजा लड़ाई पिछले शनिवार की रात को तब शुरू हुई जब सुन्नी बंदूकधारियों ने शिया मुस्लिमों के वाहनों पर अंधाधुंध गोलीबारी कर दी। इसमें कम से कम 80 लोगों की मौत हो गई है। मरने वालों में ज्यादातर शिया हैं। पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक, बीते कुछ सालों में शिया और सुन्नी समुदायों के बीच हुए संघर्ष में यह सबसे खतरनाक वाकया है।

कुर्रम में 45 प्रतिशत आबादी शिया समुदाय की

2023 की जनगणना के मुताबिक कुर्रम जिले में कुल आबादी 7.85 लाख है। इसमें 99% पश्तून हैं। पश्तून आबादी में तुरी, बंगश, ज़ैमुश्त, मंगल, मुक़बल, मसुज़ाई और परचमकानी जनजातियां हैं। तुरी और कुछ बंगश शिया हैं जबकि बाकी सब सुन्नी हैं। पाकिस्तान से मिले आंकड़ों के मुताबिक, कुर्रम जिले में 45 प्रतिशत आबादी शिया समुदाय की है जबकि पूरे पाकिस्तान में इस समुदाय की आबादी लगभग 15% है। अपर कुर्रम में शिया ज्यादा हैं जबकि लोअर और सेंट्रल कुर्रम में सुन्नी समुदाय के लोगों की संख्या ज्यादा है।

अपर कुर्रम में पढ़ाई-लिखाई और आर्थिक विकास बाकी इलाकों के मुकाबले कहीं अच्छा है। अब सवाल यह आता है कि कुर्रम में शिया और सुन्नी समुदायों के बीच आखिर तनाव की वजह क्या है, क्यों उनके बीच खूनी लड़ाइयां होती हैं? जब अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए तो कुर्रम को पाकिस्तान ने फेडरली एडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरियाज (FATA) का हिस्सा बना दिया और बाद में इसे खैबर पख्तूनख्वा में मिला दिया गया।

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अब थोड़ा इस बात को समझते हैं कि आखिर कुर्रम में शिया और सुन्नी समुदायों के बीच खूनी हिंसक झड़पों की वजह क्या हैं। इसके पीछे तीन बड़ी वजह सामने आती हैं।

1- ईरान और सऊदी अरब की लड़ाई

1979 में ईरान में जब इस्लामी क्रांति हुई तो वहां शिया समुदाय का शासन आया। इसके बाद इस्लामिक दुनिया में सऊदी अरब और ईरान के बीच लड़ाई शुरू हो गई। कुर्रम में ईरान का समर्थन शिया समुदाय के साथ था जबकि सऊदी अरब सुन्नी समूहों के साथ खड़ा हो गया।

2- आतंकियों के लिए लॉन्चिंग पैड बन गया कुर्रम

दूसरी वजह यह है कि 1979 से 89 के बीच जब एक दशक तक सोवियत-अफगान युद्ध चला था तो अमेरिका ने जिन मुजाहिदीन का समर्थन किया था, उनके लिए कुर्रम एक लॉन्चिंग पैड बन गया। इसके अलावा सुन्नी समुदाय के भी कई लोग भागकर यहां आ गए। जब यह लड़ाई आगे बढ़ी तो कुर्रम में कई लड़ाका समूह बन गए।

पिछले तीन दशक में पाकिस्तानी तालिबान जिसे टीटीपी कहा जाता है और इस्लामिक स्टेट सहित कई आतंकवादी समूहों ने कुर्रम से ही अपनी आतंकी गतिविधियों को चलाया है। टीटीपी और इस्लामिक स्टेट पूरी तरह शिया विरोधी हैं।

3- मिलिट्री शासक जिया उल हक का कार्यकाल

कुर्रम में दोनों समुदायों के बीच होने वाली हिंसक झड़पों की तीसरी वजह 1977 से 1988 के बीच पाकिस्तान में मिलिट्री शासक रहे जनरल जिया उल हक का कार्यकाल है। जिया उल हक के शासन के दौरान सुन्नी इस्लाम को मानने वाले लोग पाकिस्तान में ताकतवर थे और उस दौरान पूरे पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक तनाव फैल गया था। कुर्रम के इलाके में शिया तुरी संप्रदाय को कमजोर करने के लिए जिया उल हक ने सुन्नी अफगान शरणार्थियों का इस्तेमाल किया।

इन सब वजहों से कुर्रम में धीरे-धीरे सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं होती रहीं।

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2000 से ज्यादा लोगों की मौत

पाकिस्तान सरकार से मिले आंकड़ों के मुताबिक, 2007 से 2011 के बीच कुर्रम में 2000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई और इसमें शिया और सुन्नी दोनों समुदाय के लोग शामिल थे। इसके अलावा 5000 से ज्यादा लोग घायल हुए, हजारों लोग बेघर हुए। इस साल जुलाई में एक जमीन को लेकर हुए झगड़े के बाद दोनों समुदायों के लोग फिर सामने आए थे और इसमें 50 लोगों की हत्या कर दी गई थी।

हालांकि अब यह कहा जा रहा है कि दोनों समुदायों के बीच कई दिनों तक चली लड़ाई के बाद अब युद्ध विराम का ऐलान किया गया है लेकिन जिस तरह की लड़ाई कुर्रम में पिछले कई दशक से चल रही है, उससे नहीं लगता कि यहां कभी हिंसा समाप्त होगी। इसके अलावा पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में लगातार आतंकी बम धमाके भी हो रहे हैं और इसमें पाकिस्तान की सेना के कई जवान सहित बड़ी संख्या में आम लोग मारे गए हैं।

अहमदियों पर भी अत्याचार

न सिर्फ शिया बल्कि पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के लोगों का भी जीना मुश्किल है। अहमदिया समुदाय के लोग सुन्नी कट्टरपंथियों के ज़ुल्म का शिकार होते रहे हैं और कई बार उन्हें ईशनिंदा के नाम पर मौत के घाट उतारा जा चुका है। 1974 में अहमदियों के द्वारा खुद को मुसलमान कहने पर रोक लगा दी गई थी। 1974 में तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फ़िकार अली भुट्टो ने एक क़ानून बनाया था और इसके जरिये अहमदियों को ग़ैर-मुसलमान घोषित कर दिया गया था।