शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में चीनी रक्षामंत्री से मुलाकात के बाद रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के अचानक तेहरान में रुकने और कई अन्य कदम उठाकर भारत ने चीन एवं पाकिस्तान को बड़ा कूटनीतिक संदेश दिया है। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद पर विभिन्न माध्यमों से बातचीत के बीच सबकी निगाहें एससीओ की बैठक, वहां की द्विपक्षीय वार्ताओं पर टिकी रहीं। पैंगोंग त्सो और चुशूल इलाकों में भारतीय सेना ने रणनीतिक महत्व की कुछ चोटियों पर कब्जा जमा लिया है, उसके बाद से चीन की बेचैनी सामने आई है, जो एससीओ की बैठक में साफ दिखी। चीन के रक्षामंत्री वेई फेंग मॉस्को में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात के लिए बेचैन दिखे। उन्होंने मुलाकात के दौरान तीन बार अनुरोध किया। वे उस होटल पहुंच गए, जहां राजनाथ बातचीत के लिए तैयार हो रहे थे।

यूं दबाव बनाया भारत ने
राजनाथ की मास्को यात्रा के दौरान चीन पर कूटनीतिक दबाव बनाने में भारत सफल रहा। बगैर तय कार्यक्रम के राजनाथ सिंह ने मॉस्को में तजाकिस्तान, कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के रक्षामंत्रियों से मुलाकात की। भौगोलिक रूप से इन देशों का रणनीतिक महत्व है। तीनों देशों के रक्षामंत्रियों से मुलाकात के दौरान राजनाथ ने रक्षा सहयोग और अन्य रणनीतिक मुद्दों पर चर्चा की। एससीओ बैठक के बाद राजनाथ सिंह मॉस्को से सीधे तेहरान के लिए रवाना हो गए।

राजनाथ सिंह को शनिवार को ही भारत के लिए रवाना होना था। दरअसल, फारस की खाड़ी में ईरान, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से जुड़ी कई घटनाओं के कारण क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है, इसलिए भारत के रक्षामंत्री की ईरान यात्रा अहम मानी जा रही है। पाकिस्तानी फौज को साजो-सामान मुहैया कराया है। यह देख राजनाथ की ईरान यात्रा के जरिए भारत ने पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाया।

रूस से मिला आश्वासन
राजनाथ सिंह की मुलाकात रूस के रक्षा मंत्री सर्गेई से हुई। दोनों नेताओं के बीच एक ऐसा फैसला भी हुआ जो पाकिस्तान के लिए खतरे की घंटी है। दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों के बीच हुई बैठक करीब एक घंटे से अधिक तक चली। भारत की मांग पर रूस ने वादा किया कि वो पाकिस्तान के साथ नो आर्म्स सप्लाई की अपनी नीति जारी रखेगा।

पाकिस्तान को किसी तरह के बड़े हथियार सप्लाई नहीं किए जाएंगे। इसके अलावा भारत के सुरक्षा से जुड़े मामलों पर रूस ने पूरे साथ का भरोसा दिया है। कई मोर्चों पर रूस ने भारत का खुलकर समर्थन किया, चाहे वो हथियार पहुंचाना हो या फिर वैश्विक मंच पर भारत के हक में आवाज उठाना हो। राजनाथ सिंह का बीते कुछ वक्त में ये दूसरा रूस दौरा है। पिछली बार भी वह चीन के साथ तनाव के बीच रूस पहुंचे थे, जहां कई बड़े हथियारों के समझौते हुए थे।

भारत चीन विवाद में रूस
बीते तीन महीनों में यह दूसरा मौका है, जब भारत के रक्षा मंत्री रूस पहुंचे। इससे पहले जून में भी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तीन दिवसीय रूस यात्रा पर थे और चीनी सैन्य अतिक्रमण के मुद्दे पर रूस से आश्वासन लेकर लौटे थे। दरअसल, यहां भारत-रूस द्विपक्षीय सहयोग के साथ ही एशिया-प्रशांत क्षेत्र के समीकरण भी काम कर रहे हैं। अमेरिका इस क्षेत्र में अपना दबदबा बनाए रखना चाहता है। दूसरी तरफ चीन उसे चुनौती दे रहा है।

तीसरी तरफ रूस है, जो सीरिया और यूक्रेन में अपनी भूमिका को लेकर यूरोप और अमेरिका के निशाने पर है। चौथा मोर्चा अरब देशों का है जिनमें कुछ ईरान के साथ हैं तो कुछ सऊदी अरब के पक्ष में। इन समीकरणों के कारण चीन-भारत तनाव में अमेरिका खुल कर भारत के साथ खड़ा है। चीन की पाकिस्तान से बन रही है। तीन महीने से पूर्वी लद्दाख सीमा पर जो कुछ चल रहा है उसमें रूस का रवैया रहा है कि ये दो देशों के बीच का आपसी मसला है। लेकिन रूस परोक्ष तौर पर अपनी भूमिका निभा रहा है।

कहां खड़े हैं भारत और रूस
भारत और रूस हमेशा से दोस्त रहे हैं। भारत सैन्य उत्पादों की सबसे ज्यादा खरीद रूस से करता है। दूसरी ओर, रूस और चीन के बीच की दोस्ती कोई स्वाभाविक और पारंपरिक नहीं है। दोनों देशों के बीच 1968 में दमेंस्की द्वीप को लेकर सैन्य संघर्ष भी हो चुका है। दोनों देशों ने चार हजार किलोमीटर से ज्यादा का सीमा विवाद साल 2000 में सुलझा लिया। जिस दमेंस्की द्वीप को लेकर 1968 में चीन और रूस भिड़े, वो सीमा समझौते के तहत चीन के पास है। जानकारों की राय में रूस में अच्छे तरीके यह समझ बनी है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जबकि चीन सर्वसत्तावादी या कहें तानाशाही रवैए वाला देश है। इसलिए रूस भारत के साथ अपने संबंध ज्यादा अहम मानता है।

क्या कहते हैं जानकार
विवाद उन इलाकों को लेकर है, जहां दुनिया में सबसे ऊंचाई हवाई पट्टी है और विश्व के बड़े हिस्से को जलापूर्ति करने वाले ग्लेशियर हैं। उन इलाकों को युद्धक्षेत्र बनाने के बड़े खतरे हैं। यह बात भारत और चीन ही नहीं, विश्व बिरादरी भी समझ रही है। हालात गंभीर हैं ।
– लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डीएस हुडा, सेना की उत्तरी कमान के पूर्व प्रमुख

भारत को समझना होगा कि सैन्य अतिक्रमण हटाने की बातचीत में चीन प्रक्रिया को धीमी कर रहा है। चीन को जाड़े का इंतजार है, जब तापमान शून्य से 50 डिग्री तक नीचे पहुंच जाता है। ऐसे में सरकार ने भारतीय सेना को वहां कार्रवाई की छूट दी है, ताकि चीन पर सैन्य दबाव भी बने। युद्ध न भारत चाहता है और न चीन।
– प्रवीण सॉहने, रक्षा विश्लेषक

राजनीतिक पहल
वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत-चीन के बीच 3500 किलोमीटर का सीमा विवाद है। बीते 45 साल में कई समझौतों- कुछ लिखित और कुछ अलिखित करार हुए। लेकिन विवाद जारी रहे। बीते कुछ महीने से सीमा पर तनाव है। हिंसक झड़प के बाद सैन्य कमांडर और कूटनीतिक स्तर पर वाताएं जारी हैं, लेकिन दोनों देश अब मानने लगे हैं कि राजनीतिक पहल के बगैर हल निकालना मुश्किल हो सकता है। एससीओ की बैठक में राजनाथ सिंह और वेई फेंग के बीच वार्ता से माना जा रहा है कि राजनीतिक वार्ता की शुरुआत तो हुई है। विशेषज्ञ मानते हैं कि हल राजनीतिक पहल से ही निकलेगा, जिस पर दुनिया की निगाहें टिकी हैं।