देश के लिए 23 मार्च की तारीख बहुत खास होती है, क्योंकि इस दिन शहीदी दिवस होता है। आज के ही दिन भारत माता के तीन वीर सपूत देश की आजादी के खातिर फांसी चढ़ गए थे। लेकिन जब फांसी की तारीख 24 मार्च मुक़र्रर की गई थी तो क्यों 11 घंटे पहले ही इन्हें फांसी दे दी गई थी। इसी के चलते ब्रिटिश हुकूमत ने तीनों क्रांतिकारियों भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी की तैयारी दो दिन पहले से ही शुरू कर दी थी।

22 मार्च की रात तक अंग्रेजी हुकूमत ने सारी तैयारियां पूरी कर ली थी। इसके पीछे का मकसद ऐसा था कि तीनों क्रांतिकारियों को फांसी दिए जाने के तय दिन कोई हंगामा न हो जाए। अंग्रेजी हुकूमत देश भर में उठ रहे विरोध के स्वर और प्रदर्शन से डरी हुई थी। हालांकि, सजा पर अमल किये जाने वाली यह रातें पूरे देश के लिए उनींदीं रातें थी। जबकि दूसरी तरफ भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को किसी तरह की चिंता नहीं थी।

बता दें कि, साल 1928 में एक अंग्रेज पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले में ही तीनों क्रांतिकारियों भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई थी। उस दौर में लार्ड इरविन ने इस हत्या के मुकदमें के लिए एक विशेष ट्रिब्यूनल का गठन किया था। जिसके बाद तीनों को 23 मार्च 1931 को लाहौर के सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई थी।

भगत सिंह को केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने के मामले में फांसी की सजा सुनाई गई थी लेकिन उसकी तारीख 24 मार्च तय की गई थी। पूरे देश में इन वीर सपूतों की फांसी की सजा ने भारी विरोध पैदा कर दिया था। यह दिन अंग्रेजी हुकूमत के लिए डर से भरा हुआ था। ब्रिटिश सरकार को आशंका थी कि तय वक्त पर सजा देने के समय किसी तरह का विद्रोह पैदा न हो जाए इसलिए 23 मार्च को फांसी दे दी गई थी।

फांसी के आखिरी दिनों में भगत सिंह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। जिसे एक दिन पहले ही उनके वकील ने लाकर दी थी। फांसी के पहले जेल अधिकारियों ने सभी कैदियों को अपनी-अपनी कोठरी में जाने का निर्देश दिया गया था। जब कैदियों ने इसका कारण पूछा तो कहा गया कि यह आदेश ऊपर से आया है। इसके बाद 23 मार्च 1931 को शाम 7 बजकर 33 मिनट पर गुपचुप तरीके से भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दे दी गई।