सीवान की सीमा में दाखिल होते ही लोगों के चेहरे पर डर साफ दिखता है। एक अखबार के ब्यूरो चीफ राजदेव रंजन की हत्या के बाद अगले दिन शनिवार को सीवान की जिंदगी फिर से पटरी पर आ चुुकी थी। विपक्षी पार्टी बीजेपी ने किसी तरह से सीवान बंद का ऐलान नहीं किया थाा क्योंकि उससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता। चाय और पान की दुकानों पर लोग एक वरिष्ठ पत्रकार की हत्या के बारे में बात करते नहीं दिखते। राजदेव महादेव मिशन कंपाउंड में रहते थे, जो कि डीएम और एसपी ऑफिस से बमुश्किल एक किलोमीटर की दूरी पर है।
राजदेव का मूल निवास स्थान सीवान के बाहरी क्षेत्र में स्थित हक्कामगांव में है। इस गांव में ज्यादातर यादव रहते हैं जो अपने नाम में चौधरी लगाते हैं। राजदेव के पिता राधे चौधरी की आंख के आंसू सूख गए हैं। वो एक किनारे बैठकर टीवी वालों को देखते हैं। मीडिया वाले उनकी पत्नी संखेशिया देवी और बहू आशा रंजन की बाइट लेना चाहते हैं। परिवार इसका विरोध करता है और एक या दो मीडिया टीम को ही अंदर आने की इजाजत देता है।
राजदेव के बड़े भाई कालीचरण घड़ीसाज हैं। वे कहते हैं, “मीडिया सीबीआई जांच के लिए दबाव बनाकर ही हमारी मदद कर सकता है। हमें बिहार की पुलिस और लालू-नीतीश सरकार पर भरोसा नहीं है। सभी को पता है कि राजदेव को किसने मारा है लेकिन कोई उसका नाम (शहाबुद्दीन) नहीं लेता।” कुछ गांववाले दबी जुबान में बात करते हैं कि हत्या में शहाबुद्दीन का हाथ है। राजदेव के पिता राधे चौधरी कहते हैं, “अब क्या होगा? बना खेल बिगड़ गया। हम गरीब और छोटे लोग हैं। कोई मेरे बेटे को इसलिए क्यों मारेगा कि वो खबर लिखता था?”
राजदेव की पत्नी आशा रंजन रविवार को होश में आईं। उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि उनके पति को आरजेडी नेता उपेन्द्र सिंह से फोन कॉल्स आती थीं। उपेन्द्र को पुलिस ने इस मामले में हिरासत में लिया था मगर अभी तक उनका नाम मामले में दर्ज नहीं है। आशा कहती हैं, “उपेन्द्र उन्हें ईंटों का लालच देते क्योंकि वो ईंट भटठे के मालिक हैं। शहाबुद्दीन के खिलाफ बहुत ज्यादा ना लिखने को लेकर कई बार दबी-छिपी धमकियां मिला करती थीं।”
जुलाई 2014 के बाद तीन हत्याओं ने शहाबुद्दीन का खौफ फिर से पैदा कर दिया है। पहली हत्या 34 साल के राजीव रोशन की हुई जो 2004 के तेजाब मामले में पीड़ित सतीश और गिरीश का भाई था। उसे मोटरसाइकिल से घर लौटते वक्त मारा गया। इस हत्या में शहाबुद्दीन और उसके बेटे ओसामा के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। दिसंबर 2015 में, शहाबुद्दीन को तेजाब मामले में उम्रकैद की सजा हुई। राजीव के पिता चंदा बाबू कहते हैं कि शहाबुद्दीन ने उनकी सम्पत्ति पर नजरें गड़ा रखी थीं जिसका विरोध करने पर उन्हें अपने तीनों बेटे गंवाने पड़े।
नवंबर 2014 में सीवान फिर थर्रा उठा। जब सीवान से भाजपा सांसद ओम प्रकाश के मीडिया सलाहकार श्रीकांत भारती की हत्या हुई। इस मामले में शहाबुद्दीन का नाम नहीं जुड़ा लेकिन उपेन्द्र सिंह को मामले में साजिशकर्ता बनाया गया। मामले में उत्तर प्रदेश के चवन्नी सिंह नाम के शार्प शूटर को जेल भेजाा गया है।
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राजदेव की हत्या समेत पिछली तीनों हत्याओं को, पेशेवर हत्यारों ने जाम दिया। शहाबुद्दीन और ओम प्रकाश के बीच लम्बी राजनैतिक रंजिश रही है। 2009 में ओम प्रकाश शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब को हराकर सीवान के सांसद बने थे। ओम प्रकाश ने 2009 में जीत से राजनैतिक पंडितों को चौंकाया तो 2014 में फिर उन्होंने हिना को हार का स्वाद चखाया।
सीवान पुलिस के एक अफसर के मुताबिक, “किसी भी मामले से मोहम्मद शहाबुद्दीन और उसके समर्थकों का सीधा जुड़ाव नहीं हैं। अगर ठीक ढंग से जांच पूरी की जाए तो अपराध की ये जड़ बाहुबली शहाबुद्दीन तक पहुंचेगी। एनडीए के शासनकाल के उलट, अब शहाबुद्दीन सप्ताह में दो बार लोगों से मिल सकते हैं। वह अपने समर्थकों से फोन पर बात कर सकते हैं क्योंकि सीवान जेल में जैमर नहीं लगे हैं।”
शहाबुद्दीन भले ही जेल में हो, लेकिन उसका आतंक अब भी मौजूद हैं। सिर्फ एक अंतर यह है कि उसके गुर्गे सड़कों पर उस तरह खुलेआम नहीं घूमते, जैसे 2005 से पहले घूमा करते थे। सीवान के एक पत्रकार ने पहचान छिपाए रखने की शर्त पर बताया, “2005 से पहले लोग शाम होने के बाद सीवान में बाहर नहीं निकलते थे। नीतीश के कानून ने दुकानों को 8 बजे तक खुलवाया, जो अब तक जारी है लेकिन राजीव रोशन की हत्या के बाद, शहाबुद्दीन का खौफ सीवान को डरा रहा है।”