किसी भी केस की जांच के दौरान दो वरिष्ठ अधिवक्ताओं को तलब करने और उनसे कानून राय लेने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया। इस मामले की सुनवाई में कोर्ट ने कई अहम पहलुओं पर टिप्पणी भी की। इस दौरान ही सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की तरफ से कहा गया कि वकीलों को कभी भी पेशेवर राय देने के लिए नहीं बुलाया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई वकील अपराध करता है, तो उस पर कार्रवाई के कोई अपवाद लागू नहीं होने चाहिए।

सुनवाई के दौरान बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने जैकब मैथ्यू केस में 2005 के फैसले का जिक्र किया। उस फैसले में चिकित्सा लापरवाही के मामलों में डॉक्टरों के खिलाफ FIR दर्ज करने से संबंधित प्रावधान था और FIR दर्ज करने से पहले डॉक्टरों की एक विशेष समिति द्वारा एक प्रारंभिक जांच अनिवार्य की गई थी। विकास सिंह ने कहा कि इसी तरह यह निर्धारित किया जा सकता है कि वकीलों को मजिस्ट्रेट अदालत की मंजूरी के बाद ही तलब किया जा सकता है।

आज की बड़ी खबरें

तुषार मेहता की बात पर क्या बोले सीजेआई गवई?

वहीं अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कहा कि यह लंबी छूट देने के समान होगा। इसकी शायद ज़रूरत भी न हो। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वकीलों को एक्शन के लिए अपवाद न होने की जो बात कही, उस पर सीजेआई बीआर गवई ने भी सहमति जताई। उन्होंने कहा, “आप एक वकील की बात कर रहे थे जो शव को ठिकाने लगाने या सबूत गढ़ने की सलाह दे रहा था। यह आईपीसी की धारा 201 (सबूत मिटाना) के अंतर्गत आएगा।”

वकीलों को सम्मन जारी करने के लिए अदालत की मंजूरी के सुझाव पर तुषार मेहता ने कहा, “लोगों के एक वर्ग के लिए प्रदान की जा रही कुछ अलग व्यवस्था अनुच्छेद 14 का सामना नहीं कर सकती है।” हालांकि मुख्य न्यायाधीश ने बताया कि जैकब मैथ्यू मामले में दिया गया फैसला भी एक अलग सेक्शन बनाता है और उन्होंने सॉलिसिटर जनरल से पूछा, “क्या आपने फैसले की समीक्षा की मांग की है?”

सीजेआई बीआर गवई ने सुप्रीम कोर्ट के अन्य जजों की ताकत पर कही बड़ी बात

विशेषाधिकार कानून का किया जिक्र

एसजी तुषार मेहता ने कहा कि वह जैकब मैथ्यू मामले में लिए गए फैसले का विरोध नहीं कर रहे हैं। अदालत को सौंपे गए एक नोट में सॉलिसिटर जनरल ने कहा, “जो भी हो। यह स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया जाता है कि वकील-मुवक्किल विशेषाधिकार कानून का एक महत्वपूर्ण और सबसे पवित्र सिद्धांत है और इसे ऐसा ही रहना चाहिए।”

उन्होंने कहा, “वकील-मुवक्किल विशेषाधिकार का मुख्य उद्देश्य खुले और स्पष्ट संचार को बढ़ावा देना है। यह सुनिश्चित करते हुए कि वादी अपने वकीलों को सभी प्रासंगिक जानकारी बिना किसी भय के दे सके और स्पष्ट रूप से बता सके।” एसजी ने कहा कि यह निर्बाध आदान-प्रदान अधिवक्ता/वकीलों द्वारा उचित कानूनी सलाह प्रदान करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो बदले में कानून के अनुपालन को प्रोत्साहित करता है और प्रभावी कानूनी प्रतिनिधित्व को सुगम बनाता है।

तुषार मेहता ने यह भी कहा है कि वकील का अपने मुवक्किल के साथ अपने संवाद का खुलासा न करने का विशेषाधिकार भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (अब निरस्त) की धारा 126-129 के तहत एक मान्यता प्राप्त वैधानिक अधिकार है और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 132-134 के तहत भी ऐसा ही है।

‘आधार, पैन या वोटर आईडी रखने से कोई भारत का नागरिक नहीं बन जाता’