निचली अदालत ने भेजा आजीवन सलाखों के पीछे
स्थानीय अदालत ने एक किशोर से अप्राकृतिक यौनाचार की कोशिश के बाद उसकी गला घोट कर हत्या किए जाने के मामले में दो लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। अदालत ने बच्चों से यौन उत्पीड़न किए जाने की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि न्यायपालिका का रुख ऐसे अपराधों को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करने का है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिनी ला ने किशोर (14) से अप्राकृतिक यौनचार की कोशिश करने और उसकी हत्या करने के सिलसिले में दिल्ली निवासी सुनील (25) और फहीम (22) को उम्रकैद की सजा सुनाई।
न्यायाधीश ने कहा कि बच्चों के साथ गलत काम करने वाले जान लें कि भारत में न्याय प्रणाली इसके प्रति बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करने का रुख रखती है और पागलपन का सिर्फ एक लम्हा उन्हें आजीवन सलाखों के पीछे धकेल सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों के यौन उत्पीड़न के देर से दर्ज होने वाले मामले बढ़ रहे हैं, जिनमें अप्राकृतिक यौनाचार भी शामिल है। चाहे लड़का हो या लड़की, वे एक जैसी ही मानसिक पीड़ा का सामना करते हैं। अदालत ने दोनों दोषियों पर एक-एक लाख रुपए का जुर्माना लगाते हुए निर्देश दिया कि पीड़ित के पिता को मुआवजे के रू प में यह रकम अदा की जाए।
अदालत ने सुनील और फहीम को दोषी ठहराते हुए कहा कि दोषियों का मकसद किशोर से अप्राकृतिक यौनाचार करना था लेकिन उसके सख्त प्रतिरोध के कारण जब उनकी कोशिश नाकाम हो गई तो उन्होंने उसे मार डाला। न्यायाधीश ने इस बात का जिक्र किया कि ये दोनों लोग किशोर के मित्र थे।दुर्भाग्य से यह अपराध उन्होंने किया जो बच्चे के करीबी थे और उसके परिचित थे। किशोर जहांगीरपुरी इलाके का रहने वाला था और घटना सात नवंबर 2012 की है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपराधी की फांसी रखी बरकरार
सुप्रीम कोर्ट ने चार साल की बच्ची से बलात्कार के बाद पत्थर से उसकी हत्या करने वाले 53 साल के मुजरिम की मौत की सजा बरकरार रखते हुए बुधवार को कहा कि यह ‘समाज की आत्मा’ के खिलाफ अपराध है और ऐसा अपराध हमेशा ही समस्या बना रहेगा।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाले खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा-नाबालिग बच्ची से बलात्कार और कुछ नहीं बल्कि अंधेरे में पाश्विक हरकत से उसकी इज्जत को धूल धूसरित करना है। यह कन्या के समूचे शरीर और समाज की आत्मा के प्रति अपराध है और इसे करने के तरीके से यह अपराध अधिक गंभीर हो जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला विरले में भी विरलतम श्रेणी में आता है। इसके साथ ही अदालत ने 2008 के नागपुर के बलात्कार और हत्या के इस मामले में मुजरिम वसंत संपत दुपारे को मौत की सजा सुनाने के निचली अदालत और बंबई हाई कोर्ट का फैसला बरकरार रखा।
अदालत ने इस मामले के घटनाक्रम का जिक्र करते हुए कहा कि दोषी पड़ोसी था और वह बच्ची को प्रलोभन देकर ले गया। इसके बाद उसने बच्ची से बलात्कार के बाद दो भारी पत्थरों से उसकी हत्या कर दी। न्यायालय ने कहा कि मासूम बच्ची को जो चोट पहुंचाई गई उससे मानव चेतना भी सिहर गई। न्यायालय ने कहा कि यह अपराध किसी मानसिक दबाव या भावनात्मक परेशानी में नहीं किया गया था और यह सोचना गलत होगा कि उसका सुधार हो सकता है और वह फिर ऐसा अपराध नहीं करेगा।