बिहार में इस साल एक्यूट इंफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) जिसे स्थानीय भाषा में ‘चमकी बुखार’ भी कहते हैं, से 150 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई है। बच्चों की मौत और बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर एक टीवी डिबेट में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने चरमराई हालात को बयां किया। उन्होंने कहा, “पिछले तीन साल में बिहार का स्वास्थ्य बजट घटा है। पूरे देश में ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स (HDI) के क्षेत्र में बिहार और उत्तर प्रदेश नीचे गिरा हुआ है। बिहार में कुल मिलाकर 1 डॉक्टर पर 28,391 मरीज हैं, जबकि देश की बात की जाए तो 11,082 का है। जिस तरह से केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु के नेता स्वास्थ्य और शिक्षा बजट के लिए लड़ते हैं, वैसे में हिंदी पट्टी के राज्य के नेता क्यों नहीं लड़ते हैं। पूरे देश की बात करें तो 2018-19 का स्वास्थ्य बजट 54,600 करोड़ का था। वहीं, बताया जाता है कि 56 हजार करोड़ रुपये का राफेल डील ही हुआ है। जिस देश में सेहत से ज्यादा फाइटर प्लेन की खरीद से भी कम है।”
बता दें कि जिस तरह से इस बार इंसेफेलाइटिस की वजह से बिहार में बच्चों की मौत हो रही है, उसी तरह वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और उसके आसपास के जिलों में सैंकड़ों बच्चों की मौत हो गई थी। इसके बाद इस इलाके में बड़े स्तर पर टीकाकरण अभियान चला और एक हद तक रोग को नियंत्रित करने में सफलता मिली। अब बिहार में यह रोग महामारी का रूप धारण कर चुका है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान पत्रिका में प्रकाशित 2017 के अध्ययन में कहा गया कि 2008 से 2014 के बीच इस रोग के 44 हजार से अधिक मामले सामने आए और इससे करीब छह हजार मौतें हुईं। उसके बाद भी मौत का सिलसिला जारी है।
लगातार कम हो रहा बिहार का स्वास्थ्य बजट: एक तरफ बिहार में बच्चों की मौत का सिलसिला जारी है। राज्य के सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का घोर अभाव है। दूसरी ओर, नीतीश सरकार स्वास्थ्य बजट लगातार कम कर रही है। पॉलिसी रिसर्च स्टडीज के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि वर्ष 2016-17 में बिहार का स्वास्थ्य बजट 8,234 करोड़ रुपये था। अगले साल 2017-18 में इसमें 1200 करोड़ रुपये की कटौती कर दी गई और यह 7,002 करोड़ पर पहुंच गया। वहीं, 2018-19 में इसमें पिछली बार की तुलना में 3 फीसद वृद्धि करते हुए 7,794 रुपये कर दिया गया। इसमें एसकेएमसीएच में 150 करोड़ रुपये की लागत से कैंसर अस्पताल खोलने की योजना थी। अगले साल 2019-20 में स्वास्थ्य के लिए 9622 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया लेकिन इसमें अस्पताल बनाने और मेडिकल कॉलेज बनाने का भी खर्च शामिल है।
