दहेज के लेन-देन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। अब शादी के बाद ससुराल वालों से किसी तरह की आर्थिक मदद मांगना भी दहेज की मांग में शामिल हो सकता है। दरअसल दहेज हत्या के मामले में एक अभियुक्त ने दलील दी थी कि उसने अपनी क्लिनिक के विस्तार के लिए सुसरालवालों से पैसे मांगे थे। उसने कहा कि ये पैसे आर्थिक मदद के तौर पर मांगे गए थे ना कि दहेज के रूप में।
अप्पासाहेब व एएनआर बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र (2007) 9 एससीसी 721 के फैसले की दलील देते हुए यह कहा गया था कि कुछ जरूरी घरेलू खर्चों और वित्तीय कारणों से मांगे गए पैसे की मांग को दहेज की मांग करार नहीं दिया जा सकता। इस केस में (जतिंदर कुमार बनाम हरियाणा राज्य) दोषियों को सजा सुनाकर अन्य को बरी कर दिया गया था।
जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने अप्पासाहेब केस की दलीलों को खारिज करते हुए कि दहेज निषेध अधिनियम की धारा 2 के मुताबिक, शादी से पहले या उसके बाद किसी भी वक्त किसी भी किस्म की आर्थिक मदद की मांग या पैसे को देहज की मांग के तौर पर ही देखा जाएगा।
यदि वह व्यक्ति विवाहिता की मृत्यु से जुड़ा हुआ है तो वह विवाह से संबंधित ही होगा जबतक की तत्थ मामले में किसी दूसरी ओर इशारा ना करें। कोर्ट ने यह भी कहा कि आईपीसी की धारा 304 बी में “जल्द ही” को “तत्काल” नहीं माना जा सकता।
