समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटाने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी आशंकाओं और उम्मीदों के साथ मिली-जुली प्रतिक्रिया दी। स्वामी ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, बेशक, किसी की निजी जिंदगी में क्या होता उससे किसी किसी का कुछ भी लेना-देना नहीं होना चाहिए, न ही उन्हें दंड दिया जाना चाहिए। यह मूल रूप से एक अनुवांशिक विकार है, जिस प्रकार एक शख्स की 6 उंगलियां हों। इसे सुधारने के लिए चिकित्सा अनुसंधान किया जाना चाहिए।” स्वामी ने आगे कहा, ”यह अमेरिकी खेल है। गे बार खुलेंगे जहां समलैंगिक जा सकेंगे। एचआईवी फैलेगा। इसलिए इसके परिणाम देखने के बाद मुझे उम्मीद है कि अगली सरकार पांच जजों की पीठ के इस फैसले को 7 जजों की पीठ के हटवाएगी।” बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (6 सितंबर) को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए वयस्कों के बीच सहमति से समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया।
शीर्ष अदालत ने धारा 377 को ‘स्पष्ट रूप से मनमाना’ करार दिया। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन, न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की संवैधानिक पीठ ने अलग-अलग लेकिन एकमत फैसले में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को आंशिक रूप से असंवैधानिक करार दिया। पीठ ने कहा कि एलजीबीटीआईक्यू (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर/ट्रांससेक्सुअल, इंटरसेक्स और क्वीर/क्वेशचनिंग) समुदाय के दो लोगों के बीच निजी रूप से सहमति से सेक्स अब अपराध नहीं है। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति मिश्रा ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि दूसरे की पहचान को स्वीकार करने के लिए नजरिया और मानसिकता को बदलने की जरूरत है। जिस रूप में वे हैं, उन्हें उसी रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए, न कि इसे मुद्दा बनाना चाहिए कि उन्हें क्या होना चाहिए। अदालत ने कहा, “सामाजिक नैतिकता नहीं बल्कि संवैधानिकता को ही प्रभावी माना जाएगा।”
It is the American game. Soon there will be gay bars here where homosexuals can go. HIV will spread. So, after looking at the consequences I hope the next Govt will move a 7 judge bench to set aside this 5 judge bench order: Subramanian Swamy,BJP MP on #Section377 pic.twitter.com/htFxVXUlXz
— ANI (@ANI) September 6, 2018
अदालत ने कहा कि निजी जगहों पर वयस्कों के बीच सहमति से सेक्स, जोकि महिलाओं और बच्चों के लिए हानिकारक न हो, को मना नहीं किया जा सकता क्योंकि यह व्यक्तिगत पसंद का मामला है। समलैंगिक, हेट्रोसेक्सुअल, लेस्बियन के बीच सहमति से सेक्स पर धारा 377 लागू नहीं होगी। बिना सहमति के सेक्स और पशुओं के साथ सेक्स धारा 377 के अंतर्गत अपराध बना रहेगा। न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि समलैंगिकता ‘एक मानसिक विकार या बीमारी’ नहीं है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि एलजीबीटीआईक्यू समुदाय के लैंगिक रुझान से इनकार करना उनकी नागरिकता और उनकी निजता से इनकार करना होगा। न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा ने कहा कि समलैंगिक संबंध पर बहुमत की अज्ञानता के लिए जो कुछ भी एलजीबीटीआईक्यू समुदाय को भुगतना पड़ा है, इतिहास को उसके लिए समुदाय से माफी मांगनी होगी।