Section 377 IPC Updates: भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार (11 जुलाई) को भी सुनवाई जारी रहेगी। मंगलवार (10 जुलाई) को सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दत्तर ने याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखते हुए कहा कि समलैंगिक संबंध को अपराध के तौर पर नहीं देखा जा सकता है।
लंच ब्रेक से पहले पूर्व अटॉर्नी जनरल ने बताया था कि समाज के साथ उसके मूल्य भी बदलते हैं। ऐसे में जरूरी नहीं कि 160 साल पुरानी चीजें, आज भी नैतिक हों। उन्होंने इसके अलावा यह भी कहा कि यह धारा मानवाधिकार का उल्लंघन करती है। रोहातगी ने कोर्ट में इसके अलावा महाभारत काल के शिखंडी का जिक्र भी किया था।

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कोर्ट ने इससे पहले सोमवार (नौ जुलाई) को केंद्र सरकार की उस याचिका को खारिज किया था, जिसमें चार हफ्तों के लिए इस मामले पर सुनवाई टालने का आग्रह किया गया था। मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) दीपक मिश्रा ने कहा कि सुनवाई को टाला नहीं जाएगा। कोर्ट ने इससे पहले वर्ष 2013 में दिल्ली हाईकोर्ट के 2009 के फैसले को पलटते हुए दो वयस्कों में आपसी मंजूरी से बनाए गए रिश्तों को अपराध करार दिया गया था।
आपको बता दें कि मंगलवार (10 जुलाई) सुबह समलैंगिक रिश्तों को अपराध मानने वाली इस धारा पर पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की थी, जिसमें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) दीपक मिश्रा के अलावा न्यायाधीश आर.एफ नरीमन, ए.एम खनवल्कर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा शामिल रहे।
याचिकाकर्ता अरविंद दत्तर ने बताया कि अगर किसी शख्स की सेक्सुअल पसंद अलग है, तो उसे अपराध के तौर पर नहीं देखा जा सकता। उन्होंने इससे पहले कहा कि अगर यह धारा आज बनाई जाती तो यह संविधान की परीक्षा का सामना न कर पाती। कोर्ट ने इस पर कहा कि आपको इस बात पर कोर्ट को मनाना होगा कि इस तरह का कानून अगर आज बनता, तो वह ज्यादा दिन तक चल न पाता।
रोहातगी ने इससे पहले कहा था, "आईपीसी की धारा 377 यौन नैतिकता को अनुचित ढंग से बतलाती है। 1680 के ब्रिटिश काल की नैतिकता कोई कसौटी नहीं है। प्राचीन भारत में इसे लेकर दृष्टिकोण अलग था।" सुनवाई के बीच उन्होंने इसके अलावा महाभारत में शिखंडी का जिक्र भी छेड़ा।
लंच ब्रेक के बाद याचिकाकर्ता अरविंद दत्तर ने बताया कि अगर किसी शख्स की सेक्सुअल पसंद अलग है, तो उसे अपराध के तौर पर नहीं देखा जा सकता। उन्होंने इससे पहले कहा कि अगर यह धारा आज बनाई जाती तो यह संविधान की परीक्षा का सामना न कर पाती। कोर्ट ने इस पर कहा कि आपको इस बात पर कोर्ट को मनाना होगा कि इस तरह का कानून अगर आज बनता, तो वह ज्यादा दिन तक चल न पाता।
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में पत्रकार सुनील मेहरा, शेफ रितु डालमिया, होटेलियर अमन नाथ और बिजनेस एक्जिक्यूटिव आयशा कपूर की याचिका पर सुनवाई कर रहा है। पूर्व अटॉर्नी जनरल आज सुबह डांसर नवतेज जौहर का पक्ष रख रहे थे। वह नाज फाउंडेशन नाम की गैर सरकारी संस्था का भी प्रतिनिधित्व करती हैं, जिसने साल 2001 में इस मामले पर दिल्ली हाईकोर्ट में पहली याचिका दी थी।
भारत में भले ही समलैंगिक संबंधों को लेकर हो-हल्ला हो रहा हो, मगर दुनिया के 20 देशों में होमोसेक्सुएलिटी को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। अमेरिका, इंग्लैड, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और फ्रांस का नाम ऐसे देशों की सूची में शुमार है।
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में संविधान पीठ को बताया कि सरकार आज ही इस पर अपना जवाब दाखिल करेगी। वह इस मामले पर लगातार चर्चा कर रहे हैं, क्योंकि यह कानून का सवाल है।
एक याचिकाकर्ता की ओर से पक्ष रखते हुए रोहातगी ने कहा, "धारा 377 मानव अधिकार का उल्लंघन करती है। यौन अभिविन्यास से सिर्फ इसका लेना देना है, जबकि लिंग के साथ इसका कोई जुड़ाव नहीं है।"
पूर्व अटॉनी जनरल मुकुल रोहातगी ने कहा, "लिंग और यौन अभिविन्यास, ये दो अलग-अलग चीजें हैं। इन दोनों मामलों के बीच घाल-मेल नहीं किया जाना चाहिए। यह संवैधानिक नैतिकता बनाम अन्य का मामला है। यह मामला बड़े स्तर पर फैला हुआ है।"
एलजीबीटी कार्यकर्ता जया ने इस बारे में एएनआई से कहा कि उन्हें उम्मीद है कि कोर्ट इस बार सही फैसला लेगा। हर किसी के लिए जब कानून एक है, तो फिर यह सिर्फ हमारे लिए अलग क्यों?
धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई को लेकर वरिष्ठ टेलीविजन पत्रकार बरखा दत्त ने ट्वीट कर कहा, "प्रिय सुप्रीम कोर्ट। जो हमारे राजनेता करने में असफल रहे, वह काम आप पूरा करें। सही फैसला लें।"
धारा 377 पर सुनवाई के मामले पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा है कि यह सामान्य चीज नहीं है। हम इस पर जश्न नहीं मना सकते। यह हिंदुत्व के खिलाफ है। हमें मेडिकल शोध में निवेश करना चाहिए, ताकि इन सब चीजों का इलाज कराया जा सके। सरकार को इस मामले पर सुनवाई के लिए सात ने नौ जजों वाली बेंच का सुझाव देना चाहिए।
धारा 377 के तहत होने वाले अपराध गैर-जमानती माने जाते हैं। पुलिस गुप्त सूचना या फिर संदेह के आधार पर इस प्रकार के मामलों में किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है।
आईपीसी की धारा 377 के अंतर्गत अगर कोई महिला-पुरुष आपसी सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाते हैं, तो उन्हें 10 साल की सजा काटने के साथ जुर्माना भरना पड़ेगा। वहीं, किसी पशु के साथ संबंध बनाने पर इस धारा के तहत उम्रकैद या 10 साल की सजा के साथ जुर्माने का प्रावधान है। खास बात है कि इन मामलों में गिरफ्तारी के लिए कोई वारंट नहीं चाहिए होता।
साल 1862 में अंग्रेजों ने इस धारा को लागू किया था, जिसके अंतर्गत अप्राकृतिक यौन रिश्ते गैर-कानूनी बताए गए थे। जिस ब्रिटिश शासन ने इसे लागू किया, उसी ने इसे 1967 में अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। सहमति से दो पुरुषों या औरतों के बीच शारीरिक रिश्ते भी इस धारा के दायरे में आते हैं।
उधर, एलजीबीटीक्यू समुदाय कहता है कि समलैंगिक रिश्ते किसी प्रकार से भी अप्राकृतिक नहीं है। यह कई जानवरों जैसे इंसानों में भी आम स्वभाव है।
समलैंगिकों को एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) भी कहा जाता है, जिसमें- लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर्स और क्वीर शामिल हैं। धारा 377 अप्राकृतिक यौन संबंधों को गैर-कानूनी बताती है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने साल 2009 अपने फैसले में कहा था कि आपसी मंजूरी से समलैंगिकों के बीच बने यौन संबंध अपराध की श्रेणी में नहीं माने जाएंगे। फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले से किनारा करते हुए समलैंगिकों में बनने वाले संबंधों को अवैध बताया था।