वैज्ञानिकों ने अब तक का सबसे बड़ा जीवाणु (बैक्टीरिया) खोजा है। कैरेबिया के दलदली जंगलों में वैज्ञानिकों को बैक्टीरिया मिला है, जिसे जीवाणुओं का माउंट एवरेस्ट कहा जा रहा है। इसका आकार आंख की पलक के बाल जितना है। इसे नंगी आंख से देखा जा सकता है, जो इसे अद्भुत बनाता है और वैज्ञानिक उम्मीद कर रहे हैं कि पृथ्वी की सबसे प्राचीन जीवित चीज के बारे में इंसानी समझ को नई दिशा मिल सकती है।

इस जीवाणु का वैज्ञानिक नाम थियोमार्गारीटा मैग्नीफीसा है। इसकी विशेष बात सिर्फ इसका आकार नहीं है, बल्कि इसका अंदरूनी ढांचा भी अन्य जीवाणुओं से अलग है। आमतौर पर जीवाणुओं में डीएनए कोशिकाओं के अंदर तैर रहा होता है, लेकिन थियो के डीएनए में छोटी-छोटी झिल्लियां हैं। वोलांद कहते हैं कि अब तक ऐसे मात्र दो जीवाणुओं का पता था, जिनका डीएनए एक झिल्ली के भीतर रहता है। शोध के मुताबिक, थियोमार्गारीटा मैग्नीफीसा ने समय के साथ साथ कुछ जीन खोए भी हैं, जो कि कोशिकाओं के विभाजन के लिए जरूरी होते हैं।

इस जीवाणु की 2009 से खोज जारी है। अमेरिकी ऊर्जा विभाग के जीनोम इंस्टीट्यूट और लैबोरेट्री आफ रिसर्च इन काम्पलेक्स सिस्टम्स ने संयुक्त रूप से यह शोध किया है। समुद्री-जीव विज्ञानी ज्या-मारी वोलांद बताते हैं कि थियो एक आम जीवाणु से एक हजार गुना बड़ा है। यह शोध प्रतिष्ठित पत्रिका साइंस में प्रकाशित हुआ है। शोध के मुताबिक, बैक्टीरिया कैरेबियन सागर में कई स्थानों पर मिला है। सबसे पहले इसे फ्रांसीसी द्वीप ग्वादेलूपे में एक फ्रांसीसी माइक्रोबायोलाजिस्ट ओलिवर ग्रोस ने देखा था।

एंटील्स यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले ग्रोस बताते हैं, ‘मुझे दलदल में डूबे एक मैंग्रोव पत्ते से लिपटा सफेद फिलामेंट मिला। मुझे यह फिलामेंट बड़ा दिलचस्प लगा तो मैं उसे लैब में ले आया। ग्वादेलूपे के मैंग्रोव में इतना विशाल बैक्टीरिया देखना मेरे लिए बड़ा अचंभा था।’एक आम जीवाणु एक से पांच माइक्रोमीटर लंबा होता है, जबकि यह बैक्टीरिया 10,000 माइक्रोमीटर लंबा है। कुछ थियोमार्गारीटा तो इससे दोगुने लंबे भी हैं। वोलांद कहती हैं, ‘बैक्टीरिया की अधिकतम लंबाई के बारे में हमारे अनुमानों से यह बहुत, बहुत ज्यादा लंबा है। ये उतने ही लंबे हैं, जितने कि आंख की पलक के बाल होते हैं।’ थियो से पहले अब तक का सबसे लंबा ज्ञात बैक्टीरिया 750 माइक्रोमीटर लंबा था।

इनका जीवन अद्भुत है। जीवाणु ऐसे जीवित एक कोशिकीय आर्गनिज्म हैं, जो पृथ्वी पर हर जगह मौजूद हैं। ये पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं और इन्हें पृथ्वी पर सबसे पहली जीवित चीज माना जाता है।अरबों साल से ये बेहद साधारण ढांचे के साथ ही मौजूद रहे हैं। मनुष्य का शरीर अक्सर बैक्टीरिया के साथ मिलकर काम करता है। कुछ ही जीवाणु ऐसे हैं, जो शरीर को बीमार कर सकते हैं। वैसे, थियोमार्गारीटा से ज्यादा लंबा एक कोशिकीय जीव भी वैज्ञानिक खोज चुके हैं।

एक समुद्री शैवाल कालेर्पा टैक्सीफोलिया है, जो 15-30 सेंटीमीटर तक लंबा होता है। वोलांद कहते हैं कि इस बैक्टीरिया की खोज बताती है कि पृथ्वी पर मौजूद जीवन में कैसे अद्भुत और दिलचस्प रहस्य छिपे हुए हैं और खोजे जाने का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘जीवन अद्भुत है। बहुत विविध और बहुत जटिल। बहुत जरूरी है कि हम उत्सुक रहें और दिमाग खुले रखें।’ अध्ययन के अनुसार, जीवाणु में विशेष रूप से प्राचीन सतह होती है, जो पौधों और जीवित जानवरों की सतह पर रहने वाले बैक्टीरिया से रहित होती है। पहले यह सोचा गया था कि बैक्टीरिया नग्न आंखों को दिखाई देने वाले आकार में नहीं बढ़ सकते, लेकिन खोजे गए जीवाणु में झिल्लियों का एक विस्तारित नेटवर्क है जो ऊर्जा का उत्पादन कर सकता है ताकि यह अपनी कोशिका के माध्यम से पोषक तत्वों को अवशोषित करने के लिए केवल जीवाणु की सतह पर निर्भर न हो।