Aditya L1 Mission: चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के बाद भारत का अगला कदम ‘आदित्य-एल1’ है। ‘आदित्य-एल1’ मिशन को शनिवार सुबह 11.50 बजे श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया। भारत के शीर्ष वैज्ञानक और भारतीय ताराभौतिकी संस्थान (IIA) के प्रोफेसर एवं प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. आर रमेश ने कहा है कि जिस तरह पृथ्वी पर भूकंप आते हैं, उसी तरह सूर्य की सतह पर सौर भूकंप भी आते हैं। इन्हें ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ (CME) कहा जाता है।

उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में लाखों-करोड़ों टन सौर सामग्री अंतरग्रहीय अंतरिक्ष में बिखर जाती है। सूर्य मिशन की रवानगी से पहले उन्होंने कहा है कि पृथ्वी के भू-चुंबकीय क्षेत्रों को प्रभावित करने वाले सौर भूकंपों का अध्ययन करने के लिए 24 घंटे के आधार पर सूर्य की निगरानी बहुत जरूरी है।

लगभग 3,000 किमी प्रति सेकंड होती है ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ (CME) की रफ्तार

उन्होंने कहा कि इन ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ (CME) की रफ्तार लगभग 3,000 किमी प्रति सेकंड होती है। डॉ. रमेश ने बताया, “कुछ सीएमई पृथ्वी की ओर भी आ सकते हैं। सबसे तेज़ सीएमई लगभग 15 घंटे में पृथ्वी के निकट पहुंच सकता है।”

उन्होंने कहा, “हालांकि यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और नासा (नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) ने अतीत में इसी तरह के मिशन प्रक्षेपित किए हैं, लेकिन ‘आदित्य एल1’ मिशन दो मुख्य पहलुओं में सबसे अलग होगा। क्योंकि हम सूर्य के परिमंडल का निरीक्षण उस स्थान से कर पाएंगे, जहां से यह लगभग शुरू होता है। इसके अलावा हम सौर वायुमंडल में चुंबकीय क्षेत्र में होने वाले बदलावों का भी निरीक्षण कर पाएंगे, जो ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ या सौर भूकंप का कारण हैं।”

उन्होंने कहा कि कभी-कभी ये सीएमई उपग्रहों को नष्ट कर देते हैं और सीएमई से निकले कण प्रवाह के कारण उपग्रहों पर मौजूद सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खराब हो सकते हैं। डॉ. रमेश ने कहा कि ये सीएमई पृथ्वी तक आते हैं। उदाहरण के लिए 1989 में जब सौर वायुमंडल में भारी हलचल हुई तो कनाडा में क्यूबेक क्षेत्र लगभग 72 घंटों तक बिजली के बिना रहा था। वहीं 2017 में सीएमई की वजह से स्विट्जरलैंड का ज्यूरिख हवाई अड्डा करीब 14 से 15 घंटे तक प्रभावित रहा था।