सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ट्रांसजेंडरों पर अपने 2014 के आदेश में संशोधन से इनकार कर दिया। उभयलिंगी चाहते थे कि अदालत उन्हें तीसरे लिंग के तौर पर मान्यता दे। मगर सर्वोच्च अदालत ने साफ कहा कि समलैंगिक महिला, पुरुष और उभयलिंगी लोग किन्नरों की तरह तीसरे लिंग नहीं हैं। न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति एनवी रमन ने कहा कि 15 अप्रैल 2014 के आदेश से यह पूरी तरह स्पष्ट है कि समलैंगिक महिला, पुरुष और उभयलिंगी लोग ट्रांसजेंडर नहीं हैं।
केंद्र की ओर से अतिरिक्त महान्यायवादी (एएसजी) मनिंदर सिंह ने सुनवाई के दौरान कहा कि पूर्व के आदेश से यह स्पष्ट नहीं है कि समलैंगिक महिला, पुरुष और उभयलिंगी लोग ट्रांसजेंडर हैं या नहीं। उन्होंने कहा कि इस संबंध में एक स्पष्टता की जरूरत है। जबकि कुछ ट्रांसजेंडर कार्यकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील आनंद ग्रोवर ने कहा कि केंद्र सुप्रीम कोर्ट के 2014 के आदेश को पिछले दो साल से यह कह कर लागू नहीं कर रहा है कि उसे ट्रांसजेंडरों के मुद्दे पर स्पष्टता की आवश्यकता है।
पीठ ने एएसजी से कहा- हमें आवेदन को शुल्क (कॉस्ट्स) के साथ क्यों नहीं खारिज कर देना चाहिए। किसी स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं है। आवेदन का (केंद्र के) निपटारा किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने 15 अप्रैल 2014 को एक ऐतिहासिक फैसले में ट्रांसजेंडरों को तीसरे लिंग की श्रेणी के रूप में कानूनी मान्यता प्रदान कर दी थी। साथ ही केंद्र व सभी राज्यों को निर्देश बाकी पेज 8 पर उङ्मल्ल३्र४ी ३ङ्म स्रँी 8 पर
दिया था कि वे उन्हें शैक्षिक संस्थानों में दाखिले और सार्वजनिक नियुक्तियों में आरक्षण उपलब्ध कराने के लिए उनको सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ी श्रेणियों के रूप में मानें।
ट्रांसजेंडरों को राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाने का मार्ग प्रशस्त करते हुए शीर्ष अदालत ने सरकारों को निर्देश दिया था कि वे इन लोगों के समक्ष आने वाली डर, शर्म, सामाजिक दबाव, अवसाद और सामाजिक कलंक जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए कदम उठाएं। अदालत ने यह भी कहा था कि इन लोगों के खिलाफ धारा 377 का पुलिस और अन्य अधिकारी दुरुपयोग कर रहे हंै व उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति संतोषजनक से परे है।
हालांकि केंद्र ने सितंबर 2014 में सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दायर कर यह कहते हुए ट्रांसजेंडरों की परिभाषा पर स्पष्टता मांगी थी कि समलैंगिक महिलाओं, समलैंगिक पुरुषों और उभयलिंगी लोगों को ट्रांसजेंडर की श्रेणी में नहीं माना जा सकता। दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में खुद ही स्पष्ट किया था कि समलैंगिक पुरुष, समलैंगिक महिलाएं और उभयलिंगी लोग ट्रांसजेंडर की श्रेणी में शामिल नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि व्याकरण के हिसाब से ट्रांसजेंडर का अर्थ लिंग से परे या पार है। हालांकि इसे ऐसा माना जाने लगा कि इसके दायरे में समलैंगिक पुरुष, समलैंगिक महिलाएं, उभयलिंगी और विपरीत लिंग के कपड़े पहनने वाले शामिल हैं। पर मौजूदा मुद्दे से निपटते समय ट्रांसजेंडरों के उक्त व्यापक मतलब से कोई लेना-देना नहीं है। केंद्र ने ट्रांसजेंडरों को अन्य पिछड़ा वर्ग का दर्जा देने के मुद्दे पर भी यह कहते हुए स्पष्टीकरण मांगा था कि इस तरह के सभी लोगों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल नहीं किया जा सकता। क्योंकि इनमें से कुछ जन्म से अनुसूचित जाति-जनजाति से संबंधित हैं।