Supreme Court Imran Pratapgarhi FIR: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कांग्रेस के राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ दर्ज FIR के मामले में गुजरात पुलिस को फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि संविधान के बनने के 75 साल बाद भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पुलिस को समझना चाहिए। इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ इस साल की शुरुआत में गुजरात पुलिस ने इंस्टाग्राम पोस्ट को लेकर यह FIR दर्ज की थी। इमरान प्रतापगढ़ी कांग्रेस के सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे होने के साथ ही पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं।

मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस एएस ओका की अध्यक्षता वाली दो जजों की बेंच ने प्रतापगढ़ी की ओर से दायर याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया। लेकिन अदालत ने मामले की सुनवाई के दौरान कुछ बेहद अहम टिप्पणियां की।

इमरान प्रतापगढ़ी ने 17 जनवरी, 2025 को गुजरात हाई कोर्ट के द्वारा दिए गए आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने प्रतापगढ़ी के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने से इनकार कर दिया था।

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प्रतापगढ़ी पर क्या हैं आरोप?

अभियोजन पक्ष के अनुसार, जामनगर में एक शादी समारोह में शिरकत करने के बाद इमरान प्रतापगढ़ी ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो अपलोड किया था। वीडियो के बैकग्राउंड में “ऐ खून के प्यासे बात सुनो” कविता चल रही थी। कविता के इन शब्दों को आपत्तिजनक माना गया।

मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस ओका ने कहा, ‘यह कविता अहिंसा की बात करती है। इसका धर्म से या किसी राष्ट्र-विरोधी गतिविधि से कोई लेना-देना नहीं है। पुलिस ने संवेदनशीलता की कमी दिखाई है।’

गुजरात सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ऐसा हो सकता है कि लोगों ने इसका कुछ अलग मतलब समझा हो।

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…कोई भी क्रिएटिविटी का सम्मान नहीं करता- कोर्ट

इस पर जस्टिस ओका ने कहा, ‘यही परेशानी है। अब कोई भी क्रिएटिविटी का सम्मान नहीं करता। अगर आप इसे ढंग से पढ़ें तो कविता कहती है कि अगर आपको अन्याय सहना पड़े, तो उसे प्रेम से सहें… जो खून के प्यासे हैं, वे हमारी बात सुनें। अगर न्याय के लिए लड़ते हुए आपको अन्याय का सामना करना पड़े, तो हम अन्याय का जवाब भी प्रेम से देंगे।’

जस्टिस ओका ने कहा कि पुलिस को इस मामले में संवेदनशीलता दिखानी चाहिए थी। जस्टिस ओका ने कहा, ‘उन्हें कम से कम इसे पढ़कर समझना चाहिए।’

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