नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों की गुमशुदगी की बढ़ती तादाद और उनका पता नहीं लगने पर गहरी चिंता जताई है। अदालत ने गुरुवार को कहा कि सभी राज्यों से इस बारे में एक-एक करके सफाई मांगी जाएगी। अदालत ने बिहार व छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को पेश होकर इस मसले में की गई कार्रवाई के बारे में जानकारी देने का निर्देश दिया है।
प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाले खंडपीठ ने सभी राज्यों को सख्त चेतावनी देते हुए कहा कि इस मसले को तमाशा नहीं बनाया जाए और ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कठोर कदम उठाए जाएं। अदालत ने कर्नाटक और त्रिपुरा के मुख्य सचिवों को सुनवाई की अगली तारीख पर व्यक्तिगत रूप से हाजिर होकर प्रस्तावित कार्ययोजना की जानकारी देने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि सभी राज्यों से एक-एक कर इस बारे में जानकारी हासिल की जाएगी।
न्यायमूर्ति दत्तू ने कहा कि बुधवार को एक महिला अपने गुमशुदा बच्चे की शिकायत लेकर उनके निवास पर आई थी। अखबारों में बच्चों की गुमशुदगी बारे में पढ़कर तकलीफ होती है। अदालत ने कहा कि इस तक की घटनाएं होती रहीं तो वह राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों को तलब करने में संकोच नहीं करेगी। अदालत ने कहा कि वह इस मामले की सुनवाई कर रही है लेकिन इसके बावजूद इस तरह की घटनाएं होती जा रही हैं।
अदालत ने कहा कि यह दुखद है कि कई न्यायिक आदेशों के बावजूद इस तरह की घटनाएं बदस्तूर जारी हैं। अदालत ने गैर सरकारी संगठन ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की ओर से वरिष्ठ वकील एचएस फुलका की दलीलें सुनने के बाद इस संबंध में आदेश दिया। फुलका का कहना था कि अभी भी कई राज्यों ने इस बारे में आंकड़े मुहैया नहीं कराए हैं और उन्होंने शीर्ष अदालत के पहले के आदेश पर अमल की रिपोर्ट भी नहीं दी है।
शीर्ष अदालत ने 2008 से 2010 के दौरान देश में एक लाख 70 हजार से भी अधिक बच्चों के कथित रूप से लापता होने के मामले में दायर जनहित याचिका पर कई निर्देश दिए थे। ऐसी आशंका है कि इनमें बड़ी संख्या में बच्चों को देह व्यापार और बाल मजदूरी के पेशे में धकेल दिया जाता है। अदालत ने पुलिस को बच्चे के लापता होने के बारे में सूचना मिलते ही प्राथमिकी दर्ज करने और ऐसे बच्चे की फोटो ‘चाइल्ड ट्रैक वेबसाइट’ पर डालने का निर्देश दिया था। अदालत ने देश के हर थाने में किशोर कल्याण अधिकारी नियुक्त करने का भी निर्देश दिया था।