सुप्रीम कोर्ट ने बगैर किसी व्यवधान के संसद का कामकाज सुनिश्चित करने को दिशानिर्देश बनाने के लिए दायर एक जनहित याचिका खारिज कर दी है। अदालत ने गुरुवार को कहा कि न्यायपालिका विधायिका के कामकाज की निगरानी नहीं कर सकती क्योंकि यह अध्यक्ष के हाथों में है और ऐसा करने के किसी भी प्रयास का मतलब ‘लक्ष्मण रेखा’ लांघना होगा। प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाले पीठ ने इस तरह के मसले सामने लाए जाने पर आपत्ति करते हुए इस याचिका पर बहस कर रहे वकील से कहा, क्या आपने अपना घर (अदालत) साफ-सुथरा रखा है।
प्रधान न्यायाधीश ने मद्रास हाईकोर्ट की हाल की घटनाओं के संदर्भ में कहा- शायद आपको मालूम नहीं है। प्रधान न्यायाधीश के रूप में मुझे पता है। कितने घरों को (अदालतों) आपने साफ-सुथरा रखा है। इस घटना में वकीलों ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ नारे लगाते हुए अदालत की कार्यवाही में बाधा डाली थी।
इस वकील ने जब प्रधान न्यायाधीश को यह कहते हुए संतुष्ट करने का प्रयास किया कि देश की सर्वोच्च अदालत साफ-सुथरी है तो न्यायमूर्ति दत्तू ने उसे टोका और कहा कि संसद की कार्यवाही के मामलों में शीर्ष अदालत के दखल देने का मतलब अपनी सीमा लांघना होगा। प्रधान न्यायाधीश ने कहा- हम संसद की निगरानी नहीं कर सकते। सदन के अध्यक्ष को पता है कि सदन के कामकाज का प्रबंधन कैसे करना है। हमें अपनी लक्ष्मण रेखा की जानकारी होनी चाहिए। हमें कभी भी यह कहने के लिए अपनी सीमा से बाहर नहीं जाना चाहिए कि संसद की कार्यवाही का संचालन इस तरह से हो और इस तरह से नहीं हो। नहीं, हम ऐसा नहीं कह सकते।
यही नहीं, पीठ ने गैर सरकारी संगठन फाउंडेशन फार रिस्टोरेशन ऑफ नेशनल वैल्यूज की जनहित याचिका खारिज करते हुए कहा कि लोकतंत्र में सांसदों को पता है कि कैसे काम करना है। हम उन्हें शिक्षित करने के लिए यहां नहीं बैठे हैं। वे बेहतर तरीके से जानते हैं। अदालत ने कहा- हम संसद को सलाह देने का काम नहीं कर सकते क्योंकि वे जानते हैं कि उन्हें क्या करना है। वे अनुभवी लोग हैं। वे सब कुछ जानते हैं और अपनी जिम्मेदारी भी समझते हैं।
इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि निर्वाचित सदस्यों द्वारा निरंतर संसद के काम में व्यवधान और विरोध की वजह से राजस्व का नुकसान हो रहा है। पीठ ने सुझाव दिया कि कानून में खामियों के बारे में अध्यक्ष को प्रतिवेदन भेजना चाहिए ताकि इस पर गौर किया जा सके। वकील रवि प्रकाश मेहरोत्रा ने जब संसद में व्यवधान और कोई कामकाज नहीं होने के संबंध में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के भाषण की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित किया तो पीठ ने कहा कि देश के प्रथम नागरिक पहले ही उन्हें सलाह दे चुके हैं और निश्चित ही वे उनकी सलाह को गंभीरता से लेंगे। याचिका में कहा गया था कि संसद के पिछले छह सत्रों के दौरान करीब 2,162 काम के घंटों का नुकसान हुआ था।