सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 30 साल से गंगा नदी की सफाई का अभियान चलने के बावजूद इसकी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होने पर बुधवार को चिंता जताई। अदालत ने केंद्र सरकार से जानना चाहा कि वह इस कार्यकाल में ही कुछ करेगी या फिर यह अगले कार्यकाल के लिए छोडेगी। शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में स्थापित होने वाले 70 मलशोधन संयंत्रों के बारे में छह हफ्ते के भीतर ताजा जानकारी मांगी है। अदालत ने इससे पहले केंद्र सरकार से गंगा नदी को चरणबद्ध तरीके से साफ करने की योजना मांगी थी।

न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाले खंडपीठ ने कहा – अब मुद्दा यह है कि यह तीस साल से चल रहा है। आप (केंद्र) हमें सत्यापन योग्य प्रगति के बारे में बताइए। अदालत ने यह बात उस समय कही जब केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि इस दिशा में काफी कुछ हो रहा है। महान्यायवादी रंजीत कुमार ने कहा कि इस सरकार ने 118 और नगरों की पहचान की है। अब काम शुरू हो गया है। उन्हें (नगर पालिकाओं और दूसरे प्राधिकारियों) जाग जाने के लिए कहा गया है।

अदालत ने इससे पहले केंद्र सरकार से गंगानदी की सफाई के चरणबद्ध कार्यक्रम की जानकारी मांगी थी। अदालत ने अब केंद्र से गंगा के तट पर बसे पांच राज्यों में स्थापित होने वाले 70 मलशोधन संयंत्रों के बारे में अतिरिक्त जानकारी मांगी है। जजों ने कहा-अगर आपको वित्तीय समस्या है तो हम इसे हल नहीं कर सकते। अभी तो आपसे यही अपेक्षा है कि आप परियोजना पर आगे बढेÞं और अगर किसी प्रकार की समस्या आती है तो हमारे पास आएं। आप इसे विरोधी मुकदमे की तरह नहीं लें। क्या आप कहना चाहते हैं कि यह इस सरकार के कार्यकाल के दौरान करना होगा या अगली सरकार के कार्यकाल के दौरान।

इस पर रंजीत कुमार ने जवाब दिया – हम 2018 तक यह काम संपन्न करना चाहते हैं। अदालत ने अपने आदेश में सरकार को निर्देश दिया कि उन 15 मलशोधन संयंत्रों की ताजा स्थिति से अवगत कराया जाए जिनकी नीलामी की प्रक्रिया पूरी हो जानी थी और अगर इसमें किसी प्रकार का विलंब हुआ है तो इसकी वजह बताई जाए। अदालत ने कहा कि गंगा नदी तट प्रबंधन के बारे में आइआइटी के संघ की जो रिपोर्ट जनवरी के अंत तक दाखिल होनी है वह उसे भी दी जाए।

अदालत ने महान्यायवादी के इस कथन का संज्ञान लिया कि सात आइआइटी का समूह गोमुख से उत्तरकाशी तक के पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील सौ किलोमीटर लंबे क्षेत्र का अध्ययन कर रहा है। अदालत ने इसके साथ ही जनहित याचिका छह हफ्ते बाद फिर सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। इससे पहले अदालत ने गंगा नदी की सफाई की केंद्र सरकार की रूपरेखा पर संतोष व्यक्त किया था, लेकिन साथ ही जानना चाहा था कि इस महत्त्वाकांक्षी योजना को लागू कैसे किया जाएगा।

नरेंद्र मोदी सरकार ने इससे पहले गंगा की पवित्रता बहाल करने के लिए हजारों करोड़ रुपए के निवेश से इसकी सफाई के लिए अल्पकालीन, मध्यम कालीन और दीर्घकालीन उपायों की रूपरेखा पेश की थी। केंद्र का कहना था कि उसने प्रथम चरण में जल शोधन और ठोस कचरा शोधन सहित पूर्ण स्वच्छता का लक्ष्य हासिल करने के लिए गंगा नदी के किनारे बसे 118 नगरों की पहचान की है।