सेम सेक्स मैरिज के मामले पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रही है। हालांकि, केंद्र सरकार का कहना है कि इस मसले को संसद पर छोड़ देना चाहिए। इस बीच कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने बुधवार को समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सेम सेक्स मैरिज को लेकर कहा कि अदालतें ऐसे मुद्दों को निपटाने का मंच नहीं हैं।

लोगों के ऊपर चीजों को थोपा नहीं जा सकता- किरेन रिजिजू

किरेन रिजिजू की ये टिप्पणी तब आई जब बुधवार (26 अप्रैल) को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह करते हुए कहा कि ये मुद्दा संसद पर छोड़ दिया जाए। रिपब्लिक समिट में समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर शीर्ष कोर्ट की संविधान पीठ का जिक्र करते हुए कानून मंत्री ने कहा, “अगर पांच बुद्धिमान लोग कुछ तय करते हैं जो उनके अनुसार सही है तो मैं उनके खिलाफ किसी भी तरह की टिप्पणी नहीं कर सकता। हालांकि, अगर लोग ऐसा नहीं चाहते हैं तो उनके ऊपर चीजों को थोपा नहीं जा सकता।”

विवाह जैसे मामले देश की जनता को तय करने हैं- कानून मंत्री

कानून मंत्री ने आगे कहा कि विवाह संस्था जैसे संवेदनशील और महत्वपूर्ण मामले देश की जनता को तय करने हैं। सर्वोच्च न्यायालय के पास कुछ निर्देश जारी करने की शक्ति है। अनुच्छेद 142 के तहत यह कानून भी बना सकता है। उन्होंने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि कुछ खालीपन भरना है तो वह कुछ प्रावधानों के साथ ऐसा कर सकता है। पर जब ऐसे मामले की बात आती है जो देश के प्रत्येक नागरिक को प्रभावित करता है तो सुप्रीम कोर्ट को देश के लोगों की ओर से फैसले लेने का मंच नहीं है।

सरकार बनाम न्यायपालिका का मुद्दा नहीं बनाना चाहते- किरेन रिजिजू

किरेन रिजिजू ने स्पष्ट किया कि वह इस मामले को सरकार बनाम न्यायपालिका का मुद्दा नहीं बनाना चाहते। उन्होंने कहा, “संसद और विधानसाभाओं में लोगों के चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं। वहीं इसके बारे में चर्चा करवाई जा सकती है। सदस्य अपने इलाके के लोगों के विचारों को रख सकते हैं।”

कानून मंत्री ने कहा कि संविधान जजों को चुने जाने की बात नहीं कहता लेकिन हम सभी लोगों की इच्छा का सम्मान करते हैं। जजों को बदलने का भी कोई सिस्टम नहीं है और ना ही किसी जज की जिम्मेदारी तय करने का कोई सिस्टम है। उन्होंने कहा कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच में एक लक्ष्मणरेखा है। मोदी सरकार कभी उसको पार नहीं करती।