समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। केंद्र समलैंगिक कपल्स को सामाजिक लाभ देने पर विचार करने के लिए केंद्रीय समिति बनाने को तैयार हो गया है। केंद्रीय कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में इस समिति का गठन किया जाएगा। समिति इस पर विचार करेगी कि अगर समलैंगिक जोड़ों की शादी को कानूनी मान्यता ना मिले तो उन्हें कौन-कौन से सामाजिक लाभ उपलब्ध कराए जा सकते हैं। केंद्र की तरफ से इस मामले में सेम-सेक्स कपल्स की शादी को कानूनी मान्यता के विरोध में दो बार अर्जी दाखिल की जा चुकी है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया, “सरकार इस संबंध में प्रशासनिक उपाय तलाशने को लेकर सकारात्मक है। हमने यह फैसला किया है कि इसके लिए एक से अधिक मंत्रालयों के बीच समन्वय की जरूरत होगी इसलिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली एक समिति का गठन किया जाएगा।” उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता अपने सुझाव या उनके सामने आने वाली समस्याओं को प्रस्तुत कर सकते हैं और समिति उन पर विचार करेगी।
पीठ समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इसमें न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति एस आर भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा भी शामिल हैं। एसजी ने पीठ से कहा कि प्रशासनिक उपाय तलाशने के लिए एक से ज्यादा मंत्रालयों के बीच समन्वय की जरूरत पड़ेगी।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि याचिकाकर्ता इस मुद्दे पर अपने सुझाव दे सकते हैं कि समलैंगिक जोड़ों की कुछ चिंताओं को दूर करने के लिए क्या प्रशासनिक उपाय किए जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 27 अप्रैल को मामले में सुनवाई करते हुए केंद्र से पूछा था कि क्या समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता दिए बिना ऐसे जोड़ों को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिया जा सकता है। न्यायालय ने यह कहते हुए यह सवाल किया था कि केंद्र द्वारा समलैंगिक यौन साझेदारों के सहवास के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार करने से उस पर इसके सामाजिक परिणामों को पहचानने का ‘संबंधित दायित्व’ बनता है।
