दिग्‍गज स्क्रिप्‍टराइटर सलीम खान ने सोमवार को मुसलमानों में तीन तलाक के रिवाज की आलोचना की। उन्‍होंने कहा कि यह रिवाज कुरान के सिद्धांतों के खिलाफ है। सलमान खान के पिता ने सोशल नेटवर्किंग साइट टि्वटर के जरिए यह राय जाहिर की। गौरतलब है कि वर्तमान में तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। तीन तलाक को समाप्‍त करने के लिए कई मुस्लिम महिलाओं ने याचिका दायर की है। सलीम खान ने इस बारे में तीन ट्वीट किए। उन्‍होंने लिखा, ”तीन तलाक कुरान के सिद्धांतों के खिलाफ मनमाने ढंग से चल रहा रिवाज है। यूनिफॉर्म सिविल कोड का कुछ मौलवी विरोध कर रहे हैं और कुछ मुसलमानों ने भी इसे गलत मान लिया है। लेकिन यह इस्‍लाम में बिलकुल दखल नहीं देता। जिन देशों में कोई निजी या इस्‍लामिक कानून नहीं है उनमें 33 प्रतिशत मुसलमान अल्‍पसंख्‍यकों की तरह रहते हैं। फिर भी वे शांति से जी रहे हैं। बड़ा सवाल यह है कि क्‍या मुसलमान वाकई इस्‍लाम का अनुसरण कर रहे हैं? यदि आप उन्‍हें रास्‍ता नहीं दिखा सकते तो उन्‍हें भटकाओ तो मत।”

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गौरतलब है कि कानून आयोग ने हाल ही में तीन तलाक को खत्‍म करने पर फीडबैक मांगा था। साथ ही यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने पर भी राय मांगी गई थी। इस पर मुस्लिम संगठनों ने आपत्ति जताई है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग की चर्चा का भी बहिष्कार किया। वहीं कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि जब एक दर्जन से अधिक इस्लामी देश कानून बनाकर इस चलन को हटा सकते हैं तो भारत जैसे ‘धर्मनिरपेक्ष’ देश के लिए इसे किस प्रकार गलत माना जा सकता है।

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प्रसाद ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘पाकिस्तान, ट्यूनीशिया, मोरक्को, ईरान और मिस्र जैसे एक दर्जन से ज्यादा इस्लामी देशों ने एक साथ तीन तलाक का विनियमन किया है। अगर इस्लामी देश कानून बनाकर चलन का विनियमन कर सकते हैं, और इसे शरिया के खिलाफ नहीं पाया गया है, तो यह भारत में कैसे गलत हो सकता है, जो धर्मनिरपेक्ष देश है।’

इससे पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड(एआईएमपीएलबी) ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि निजी कानूनों को चुनौती नहीं दी जा सकती क्‍योंकि ऐसा करना संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्‍लंघन होगा। एआईएमपीएलबी ने शुक्रवार को कोर्ट में यह जवाब दिया। बोर्ड ने कहा कि निजी कानून प्रत्‍येक धर्म की परंपराओं और धर्मग्रंथों पर आधारित होते हैं इन्‍हें समाज के सुधार के नाम पर दोबारा नहीं लिखा जा सकता। साथ ही अदालतें इनमें दखल भी नहीं दे सकतीं। पति को तीन बार तलाक कहने की इस्‍लाम में अनुमति है, क्‍योंकि वे निर्णय लेने की बेहतर स्थिति में होते हैं और जल्‍दबाजी में ऐसा नहीं करते। एक धर्म में अधिकारों की वैधता पर कोर्ट सवाल नहीं उठा सकता। कुरान के अनुसार तलाक से बचना चाहिए लेकिन जरुरत होने पर इसकी अनुमति है।