भारत में क्रिकेट और राजनीति का रिश्ता काफी पुराना है। कई बार ऐसा होता है कि क्रिकेट के मैदान पर शानदार प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी राजनीति के मैदान पर भी अच्छा प्रदर्शन करते हैं, कई बार ऐसा भी होता है कि क्रिकेट के मैदान पर भले ही बहुत सफलता नहीं मिली हो लेकिन राजनीति के मैदान पर जमकर खेलते हैं। लेकिन कई बार क्रिकेट के महानतम खिलाड़ी भी राजनीति के मैदान में फिसड्डी साबित होते हैं। ऐसे ही क्रिकेट खिलाड़ी हैं सचिन तेंदुलकर, जिनको क्रिकेट ने दुनिया में पहचान दिलाई। क्रिकेट में उनके कद और भारत में उनकी लोकप्रियता के कारण ही उन्हें भारतीय संसद के उच्च सदन यानी राज्यसभा में भेजने के लिए संविधान में संशोधन कर दिया गया।
हालांकि, राज्यसभा के मनोनीत सदस्य सचिन तेंदुलकर सदन में मुद्दे उठाने और चर्चाओं में हिस्सा लेने से ज्यादा अपनी अनुपस्थिति के कारण चर्चा में रहे। उन्होंने पिछले साल इंफॉर्मेशन टेक्नॉल्जी पर स्टैंडिंग कमिटी की हुई 12 बैठकों में से एक में भी हिस्सा नहीं लिया। इसके बावजुद उन्हें दोबारा इस कमिटी के सदस्य के तौर पर नामांकित किया गया है। खबरों की माने तो सचिन तेंदुलकर पुर्नगठित की गई स्टैंडिंग कमिटी की पहली बैठक में भी शामिल नहीं हो रहे।
क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर राजनीति के मैदान पर काफी सेफ खेलते हुए नज़र आते हैं। वह 2013 से राज्यसभा के सांसद हैं। लेकिन वह खुद को सक्रिय राजनीति से दूर रखते हैं। साल 2014 में कांग्रेस उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ाना चाहती थी लेकिन उन्होंने साफ इनकार कर दिया था। टेस्ट और एकदिवसीय क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन करने वाले सचिन राज्यसभा के अंदर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए हैं। पिछले चार साल राज्यसभा में सचिन का अटेंडेंस सात प्रतिशत के करीब रहा। गौरतलब है कि संसद के हाल ही में समाप्त हुए मानसून सत्र में सचिन मात्र दो बार उच्च सदन में आये। राज्यसभा के सदस्यों ने तेंदुलकर का नाम लिये बगैर कुछ सदस्यों के सदन से अनुपस्थित रहने पर आपत्ति भी जतायी थी।
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