Sabarimala Temple Case Supreme Court Verdict, सबरीमाला मंदिर सुप्रीम कोर्ट फैसला: केरल के जाने-माने सबरीमाला मंदिर को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (28 सितंबर) को बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट में पांच जजों वाली संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से 53 साल पुरानी परंपरा को असंवैधानिक करार दे दिया। पीठ ने स्पष्ट किया कि मंदिर में हर उम्र की महिला को प्रवेश मिलेगा। मंदिर प्रबंधन उन्हें अंदर जाने से नहीं रोक सकता। समाज में वे बराबर की हिस्सेदार हैं। पुरानी मान्यताएं और पितृसत्तात्मक सोच आड़े नहीं आनी चाहिए। समाज को अपनी सोच बदलनी चाहिए।
आपको बता दें कि इससे पहले तक सबरीमाला मंदिर 10 से 50 साल के बीच की महिलाओं की एंट्री पर पाबंदी थी। कारण- इस आयुवर्ग में महिलाओं को पीरियड्स होते हैं, जबकि हिंदू मान्यता में पीरियड्स के दौरान महिलाओं को अपवित्र माना जाता है, लिहाजा मंदिर में उनके प्रवेश पर रोक थी। साल 2006 में लैंगिक समानता को आधार बनाकर कई महिला वकीलों ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका डाली थी।
आगे चलकर इस संबंध में कई और याचिकाएं डाली गईं, जिन पर कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। गौरतलब है कि सबरीमाला मुख्य रूप से भगवान अयप्पा का मंदिर है, जिन्हें अनंत ब्रह्मचारी माना जाता है। सबरीमाला मंदिर राज्य का सबसे मशहूर मंदिर है, जिसका कामकाज त्रावणकोर देवसम बोर्ड (टीडीबी) संभालता है।
Highlights
महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाल मामले पर कमाल का फैसला दिया है।
पांच महिला वकीलों के समूह ने केरल हिंदू प्लेसेस ऑफ पब्लिक वर्शिप रूल्स, 1965 के नियम 3(बी) को चुनौती दी थी। इस नियम में महिलाओं को पीरियड्स वाले आयुवर्ग के दौरान मंदिर में प्रवेश से रोके जाने का प्रावधान था। ऐसे में महिला वकीलों ने केरल हाईकोर्ट के बाद न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहीं वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि ये प्रतिबंध संविधान के आर्टिकल 14, 15 और 17 के खिलाफ है। उनका तर्क था कि सालों पुरानी परंपरा महिलाओं संग किए जाने वाले भेदभाव जैसी थी।
केरल स्थित सबरीमाला मंदिर में त्रावणकोर देवसम बोर्ड (टीडीबी) के अध्यक्ष ए.पद्मकुमार ने कहा है, "कुछ और पुजारियों और धार्मिक जानकारों से समर्थन मिलने के बाद हम पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे।"
पांच जजों वाली संविधान पीठ में से चार ने मंदिर में महिलाओं की एंट्री पर लगे बैन को हटाने के पक्ष में फैसला दिया। सीजेआई दीपक मिश्रा, जस्टिस खानवल्कर, नरीमन और चंद्रचूड़ ने इस प्रथा को भेदभाव करने वाला बताते हुए असंवैधानिक करार दिया। वहीं, जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने सीजेआई की राय से असहमति जताई।
सीजेआई बोले- पितृसत्तात्मक सोच बदलनी चाहिए। धर्म के रास्ते में इसे रोड़ा नहीं बनना चाहिए।
जस्टिस नरीमन ने कहा- 10 से 50 साल की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश न देना उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाना है।
जस्टिस चंद्रचूड़ का कहना था- धर्म को महिलाओं के पूजा करने के अधिकार छिपाने या दबाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। यह मानवीय गरिमा के खिलाफ है।
राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) की प्रमुख रेखा शर्मा ने कोर्ट के इस फैसले पर खुशी जताई है। उन्होंने कहा, "मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करती हूं। अब महिलाएं चुनेंगी कि उन्हें मंदिर में जाना है या नहीं। पहले धर्म के नाम पर उन्हें मंदिर में जाने नहीं दिया जाता था। जब बराबरी और धर्म का अधिकार हो, तो बराबरी के अधिकार को जीतना चाहिए।"
वरिष्ठ अधिवक्ता और मंदिर में महिलाओं की एंट्री पर लगे प्रतिबंध को हटवाने के लिए पूर्व में याचिका देने वाली इंदिरा जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा है, "मैं जस्टिस इंदू मल्होत्रा से असहमत हूं। मुझे दुख है कि सबरीमाला केस में एक महिला जज की ओर से फैसले में असहमति जताई गई।" बता दें कि कोर्ट की पांच जजों वाली संविधान पीठ ने 4:1 से 5इ3 साल पुरानी परंपरा खत्म कर दी।
केरल स्थित सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। अदालत ने शुक्रवार को कहा कि सभी उम्र की महिलाएं मंदिर में प्रवेश कर सकती हैं। उच्चतम न्यायालय ने 4:1 की बहुमत से सुनाए इस फैसले में कहा कि महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर...पढ़ें पूरी खबर।
सबरीमाला मंदिर के प्रमुख पुजारी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा है कि वह बेहद निराश हैं। पर वह कोर्ट के फैसले को मानेंगे।
पांच जजों वाली संविधान पीठ में महिला जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने सीजेआई के फैसले से असहमति जताई। उन्होंने कहा- कोर्ट को धार्मिक आस्था के मामले में दखल नहीं देनी चाहिए, क्योंकि इसका प्रभाव व्यापक स्तर पर पड़ेगा। अगर किसी व्यक्ति का किसी खास देवता में विश्वास है, तो उसका सम्मान किया जाना चाहिए। धार्मिक परंपराएं संविधान के अंतर्गत सुरक्षित हैं। कोर्ट उन्हें खत्म करने को लेकर फैसला नहीं ले सकता।
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री के मामले पर पांच जजों की पीठ फैसला पढ़ रही है। पीठ की अध्यक्षता चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) दीपक मिश्रा कर रहे हैं। उनके अलावा इसमें जस्टिस आरएफ नरीमन, एएम खानवल्कर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदू मल्होत्रा शामिल हैं। पीठ ने इससे पहले दो अगस्त को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था।
मंदिर में प्रवेश के मसले के बीच कई महिला श्रद्धालुओं ने 'रेडी टू वेट' नाम की मुहिम भी चलाई और मंदिर में महिलाओं की एंट्री की मांग करने वाली याचिकाओं का विरोध किया। उनका यह अभियान 'राइट टू प्रे' वाले अभियान के जवाब में शुरू किया गया था। रेडी टू वेट मुहिम के अंतर्गत उन्होंने तर्क दिया था- एक खास आयुवर्ग की महिलाओं को मंदिर में एंट्री नहीं मिलती। यह एक तरह से अच्छा भी है। आप 50 वर्ष की उम्र को पार कीजिए और उसके बाद पवित्र धर्म स्थल में प्रवेश कर दर्शन कीजिए।
सबरीमाला मंदिर प्रबंधन नहीं चाहता है कि मंदिर में सभी महिलाएं प्रवेश करें। उनका कहना है कि मंदिर में महिलाओं को एंट्री न देने से भेदभाव नहीं होता, क्योंकि परंपरा में यह माना जाता है कि देवता (अयप्पा) पूर्ण रूप से ब्रह्मचारी हैं।