रूस-यूक्रेन के बीच लगभग तीन सालों से जारी युद्ध के बीच पिछले कुछ महीनों से केरल के दो लड़के भारत वापस लौटने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं। ये दोनों उन कई भारतीय युवाओं में से हैं जो अप्रैल में रूस की यात्रा पर गए थे ताकि उन्हें देश की सैन्य सहायता सेवा में इलेक्ट्रीशियन, रसोइया, प्लंबर और ड्राइवर के रूप में नौकरी मिल सके।

केरल के त्रिशूर के वडक्कनचेरी के मूल निवासी 32 वर्षीय बिनिल टीबी और उनके चचेरे भाई जैन टीके (27) घर वापस आने की बेताबी से कोशिश कर रहे हैं। ये दोनों अप्रैल में रूस नौकरी की तलाश में गए थे। इसके बजाय, उन्हें अपना भारतीय पासपोर्ट त्यागने, स्थायी निवास लेने, रूसी सेना में भर्ती होने और चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध में काम करने के लिए मजबूर किया गया।

बिनिल ने इंडियन एक्सप्रेस को भेजे गए एक वॉइस मैसेज में कहा कि दोनों सितंबर से ही घर वापस आने के प्रयास में मास्को स्थित इंडियन एंबेसी के दरवाजे खटखटा रहे हैं लेकिन वे इसमें असफल रहे हैं।

मानसिक और शारीरिक रूप से थक चुके हैं रूस-यूक्रेन युद्ध में फंसे भारतीय

अपने देश में इलेक्ट्रीशियन के तौर पर काम करने वाले बिनिल ने अपने संदेश में कहा, “मानसिक और शारीरिक रूप से हम थक चुके हैं।” “हम अब रूस के कब्जे वाले यूक्रेन के क्षेत्र में मुश्किल इलाके में हैं। हमारे कमांडर का कहना है कि कॉन्टरैक्ट एक साल के लिए था। हम अपनी रिहाई के लिए स्थानीय कमांडरों से गुहार लगा रहे हैं। भारतीय दूतावास का मानना ​​है कि जब तक रूसी सेना हमें रिहा नहीं करती, वे मदद नहीं कर सकते। एंबेसी का कहना है कि हमें वापस रूसी क्षेत्र में ले जाया जाना चाहिए।”

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गरीब परिवारों को ज्यादा सैलरी के लालच में फुसलाया गया

बिनिल और जैन उन 100 से ज़्यादा भारतीयों में शामिल हैं जिन्हें कथित तौर पर युद्ध में लड़ने के लिए धोखा दिया गया था। इनमें से ज़्यादातर बेख़बर भारतीय ग़रीब परिवारों से थे, जिन्हें बेहतर वेतन (2.5 लाख रुपये प्रति महीने) तक का वादा करके फुसलाया गया था। जानकारी के मुताबिक, इन दोनों के अलावा पिछले कुछ महीनों में दूतावास से संपर्क करने वाले लगभग 10 अन्य भारतीय नागरिक हैं। सूत्रों का कहना है कि भारतीय अधिकारी शेष सभी भारतीय नागरिकों की रिहाई के संबंध में रूसी अधिकारियों के संपर्क में हैं।

जुलाई में रूस ने अपनी सेना में लड़ रहे सभी भारतीयों को जल्द रिहा करने का वादा किया था

जुलाई में रूस ने अपनी सेना में लड़ रहे सभी भारतीयों को जल्द रिहा करने का वादा किया था। यह घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मॉस्को यात्रा के बाद हुई, जिसके दौरान उन्होंने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ इस मुद्दे को उठाया था। अब तक करीब 45 भारतीयों को छुट्टी मिल चुकी है। कुछ वापस आ चुके हैं जबकि अन्य पेपर वर्क का इंतजार कर रहे हैं।

बिनिल के अनुसार, उन्हें और जैन को शुरू में 2 लाख रुपये प्रति माह देने का वादा किया गया था लेकिन पैसा कभी नहीं मिला। उन्होंने कहा, “हम युद्ध की पहली पंक्ति से ज़्यादा दूर नहीं स्थित शिविरों में रह रहे हैं। हमें सेना के लिए 8-10 किलोमीटर तक खाद्य पदार्थ और थर्मल जैकेट सहित अन्य सामान ले जाना पड़ता है। सामान का वजन लगभग 15 किलोग्राम होता है, लेकिन हवाई हमलों के खतरे के कारण हमें तेज़ी से आगे बढ़ना पड़ता है। वे हमें किसी भी समय युद्ध की पहली पंक्ति में भेज सकते हैं।”

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बंकरनुमा स्थानों में छोटे-छोटे समूहों में रखे जाते थे लोग

उनके कामों में मृतकों और घायलों को युद्ध के मैदान से वापस शिविर तक ले जाना भी शामिल था। बिनिल ने कहा, “हम मृतकों की बॉडी बैग में डालते हैं, जिन्हें उस स्थान पर ले जाया जाता है, जहां पहचान जैसी बाकी प्रक्रिया पूरी की जाती है। हालांकि, सोने का समय नहीं मिलता, क्योंकि भोजन से भरे ट्रक सुबह-सुबह ही शिविर में पहुंच जाते हैं।”

दोनों रूसी सेना में पहले से ही कार्यरत एक अन्य रिश्तेदार की मदद से निजी वीज़ा पर रूस गए थे। लेकिन वह रिश्तेदार अंततः उन कई भारतीयों में शामिल हो गया जिन्हें इस साल की शुरुआत में भारत सरकार के हस्तक्षेप के बाद मास्को ने रिहा कर दिया था। बिनिल ने बताया कि उन्हें और अन्य रंगरूटों को सुरक्षा कारणों से पूरे क्षेत्र में फैले बंकरनुमा स्थानों में छोटे-छोटे समूहों में रखा गया था। उन्होंने कहा कि शिविर में रूसियों से बातचीत से हमें पता चला कि यह यूक्रेन है।

जून में, शिविर बदलते समय उन्होंने अपने दस्तावेज़ और मोबाइल फ़ोन खो दिए। बिनिल ने कहा, “एक रात, हमें एक शिविर से जल्दी से बाहर निकलने के लिए कहा गया। कमांडर ने कहा जाओ-जाओ। शिविर के बाहर रखे हमारे सामान को छोड़ना पड़ा। इसलिए हम लगभग दो महीने तक केरल में अपने परिवारों से संपर्क नहीं कर सके।”

केरल सरकार ने विदेश मंत्रालय से मांगी मदद

बिनिल के अनुसार, अगस्त के आखिरी हफ़्ते में वे दोनों आखिरकार एक कैंप में फ़ोन और वाईफ़ाई का इस्तेमाल करने में कामयाब हो गए, जहाँ उन्हें खाना इकट्ठा करने के लिए भेजा गया था। त्रिशूर के मूल निवासी संदीप की भी युद्ध क्षेत्र में भोजन की आपूर्ति करते समय ड्रोन हमले में मृत्यु हो गई थी। उनकी मृत्यु के बाद केरल सरकार ने केंद्रीय विदेश मंत्रालय से हस्तक्षेप करने और युद्ध के मोर्चे पर फंसे अन्य केरलवासियों को वापस लाने की मांग की।

बिनिल की पत्नी जोइसी, अपने पति और रिश्तेदार की रूसी युद्ध क्षेत्र से शीघ्र रिहाई सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार, केंद्रीय मंत्री और त्रिशूर के सांसद सुरेश गोपी और मॉस्को स्थित भारतीय दूतावास से बार-बार संपर्क किया है। इस बीच, राज्य पुलिस ने कहा कि उन्हें रूसी सेना में केरल के युवकों की भर्ती के बारे में जानकारी है।

एक अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “ये युवा मॉस्को में बसे केरलवासियों की मदद से निजी वीजा पर रूस गए हैं। इसलिए, इस मामले में धोखाधड़ी टोनही है। हमने चालाकुडी में उस व्यक्ति की भूमिका की जांच की है जिसने युवाओं की मॉस्को तक की यात्रा में मदद की थी। हमने अभी तक कोई मामला नहीं दर्ज किया है, लेकिन इस मुद्दे पर कानूनी राय मांगी है।” पढ़ें- रूस के साथ सीजफायर के लिए तैयार यूक्रेन, राष्ट्रपति जेलेंस्की ने नाटो के सामने रखी ये शर्त