राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने ईसाई मिशनरियों का नाम लिये बिना उन पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि उनकी चैरिटी (परमार्थ कार्य) में निहितार्थ जुड़े रहते हैं तथा सेवा भाव नहीं होने पर वह व्यापार बन कर रह जाती है। साथ ही उसने कहा कि यदि विदेशी मिशनरी अपने स्वार्थ के लिए हमारे समाज को तोड़ते हैं तो यह ठीक नहीं है।
संघ के सहसरकार्यवाह कृष्ण गोपाल ने शनिवार को यहां पांच साल के अंतराल पर आयोजित किए गए संघ के ‘राष्ट्रीय सेवा संगम‘ में यह बात कही। कृष्ण गोपाल ने कहा, ‘‘भारत के बाहर की धरती से जो चैरिटी आती है उसमें निहितार्थ जुड़े होते हैं और जब चैरिटी में निहितार्थ छिपे होते हैं तो सेवाभाव नहीं रह जाता है, सेवा भाव के अभाव में वह व्यापार बन जाता है, जबकि इसके उलट भारत में नि:स्वार्थ सेवा का दर्शन है।’’
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कहा कि उसे विदेशी मिशनरियों के भारत आकर सेवा करने पर आपत्ति नहीं है लेकिन अगर वे अपने स्वार्थ के लिए हमारे समाज को तोड़ते हैं तो यह ठीक नहीं है। कृष्ण गोपाल ने दावा किया कि आरएसएस की स्थापना हिन्दू समाज के स्वास्थ्य को बदलने के लिए हुई है।
उन्होंने आजादी से पहले एक हजार साल के विदेशी शासनों की ओर इशारा करते हुए कहा कि एक हजार साल का कठिन दौर सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक बदहाली का दौर था और ऐसा लग रहा था कि हिंदू समाज तितर बितर हो गया है, बहुत कुछ टूट गया है और छूट गया है। उन्होंने कहा कि हजार वर्ष की यह यात्रा लंबी और संघर्षपूर्ण रही और आरएसएस की स्थापना हिंदू समाज के स्वास्थ्य को बदलने के लिए हुई।
कृष्ण गोपाल ने कहा, ‘‘हमारे समक्ष एक हजार साल का बैकलॉग है, जिसे अब पूरा करना है। अब हिंदू समाज अपनी स्वाभाविक शक्ति, मेधा और स्वाभिमान से खड़ा है। हम (संघ) हिंदू समाज के साथ देश और दुनिया के सभी लोगों की चिंता करेंगे।’’
कार्यक्रम से इतर संघ के अखिल भारतीय सह सेवा प्रमुख अजीत प्रसाद महापात्र ने पीटीआई भाषा से बातचीत में कहा, ‘‘जो व्यक्ति या संस्था भारत आते हैं (सेवा करने) लेकिन (वे) भारत के लिए नहीं बल्कि अपने देश के लिये काम करते हैं, उन पर आपत्ति है।’’
विदेशी मिशनरियों के भारत में काम करने का आरएसएस द्वारा विरोध करने के बारे में एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘‘आप मेरे बंधु हैं लेकिन अपने स्वार्थ के लिए मेरे परिवार, समाज को तोड़ोगे तो यह ठीक नहीं है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘विदेशी मिशनरी जो सेवा भाव से कुछ न कुछ करने आते हैं, उनका स्वागत है।’’
ईसाई मिशनरियों द्वारा देश में बड़े पैमाने पर स्कूल और अस्पताल खोले जाने के बारे में एक सवाल के जवाब में महापात्र ने कहा, ‘‘वे इंग्लिश मीडियम स्कूल खोलते हैं। किसी को कोई भाषा सीखने की मनाही नहीं है। यह अच्छा ही है। लेकिन भाषा सिखाते सिखाते, अगर संस्कृति से भटकाने का प्रयास होगा तब यह ठीक नहीं है।’’
मिशनरियों द्वारा किये गए कथित धर्म परिवर्तन के जवाब में अब संघ परिवार की ओर से चलाये जा रहे ‘घर वापसी’ के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘हम धर्म परिवर्तन या घर वापसी की चिंता नहीं करते। हम छोटी रेखा के सामने बड़ी रेखा खींचने में विश्वास करते हैं। हम किसी को ‘टारगेट’ नहीं करते। हमारा लक्ष्य बड़ा है। हम देश में अच्छा माहौल तैयार करने के भाव से चल रहे हैं।’’
उन्होंने कहा कि आने वाले समय में हमें अपने कार्यकर्ताओं के परिवार का और विस्तार करने की जरूरत है। हमें प्रतिभावान कार्यकर्ताओं को जोड़ना होगा। महापात्र ने देश के लोगों का आह्वान किया कि वह छोटे छोटे ट्रस्ट और संस्थाएं बनाकर राष्ट्र सेवा भारती से जुड़ें।
राष्ट्रीय सेवा संगम में वितरित किये गए ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण’ नामक पुस्तिका में ‘ईसाइयत और राष्ट्रीय एकता’ नामक अध्याय में कहा गया है, ‘‘विदेशी मिशनरी कृपया आप वापस चले जाएं, अब समय आ गया है कि वे अपने घर वापस लौट जायें। उन्हें ठीक समय रहते लौट जाना चाहिए।’’
इस कार्यक्रम का आयोजन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के ‘राष्ट्र सेवा भारती’ ने किया है, जिसके अंतर्गत संघ के देशभर के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत 800 संगठन आते हैं। आज यहां ऐसे ही संगठनों के 4000 प्रतिनिधियों का एक सम्मेलन उत्तर पश्चिम दिल्ली के अलीपुर क्षेत्र में आयोजित किया गया।
इस संगम का उद्घाटन माता अमृतानंदमयी ‘अम्मा’ ने किया। उन्होंने कहा कि राजा के लिए राजधर्म सर्वोपरि होता है और वह किसी से विभेद नहीं करता तथा हमें अपने शब्दों, वचनों को सोच समझकर प्रयोग करना चाहिए।
मां अमृतानंदमयी ने कहा कि हमें शब्दों और वचनों का सोच समझकर प्रयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि असावधानी से बोला गया एक भी शब्द बड़ा कारण खड़ा कर सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि हमें बदलते समय के अनुसार उचित नये विचारों को अपनाने और अप्रासंगिक हो चुके पुराने विचारों को छोड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए।