Indresh Kumar Waqf Amendment Bill: वक्फ़ संशोधन बिल को लेकर इन दिनों देश में अच्छी-खासी बहस चल रही है। ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी की बैठक में तो इस बिल को लेकर टीएमसी के सांसद कल्याण बनर्जी और बीजेपी के सांसद अभिजीत गंगोपाध्याय के बीच जमकर बहस भी हो चुकी है। इस बिल को अगस्त में लोकसभा में पेश किया गया था लेकिन उस दौरान तमाम विपक्षी दलों ने इसका पुरजोर विरोध किया था। विपक्षी दलों का कहना है कि यह बिल बंटवारा करने वाला है और संविधान पर हमला है।

देश भर में कई मुस्लिम संगठनों ने भी इस बिल का खुलकर विरोध किया है। मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि इस बिल के जरिए केंद्र सरकार मुस्लिम वक्फ़ संपत्तियों पर कब्जा करना चाहती है।

न सिर्फ विपक्षी दलों बल्कि एनडीए में शामिल बीजेपी के सहयोगी दलों जैसे टीडीपी और जेडीयू ने भी इस बिल को लेकर चिंता जताई है और कहा है कि इस मामले में सभी पक्षों के साथ चर्चा की जानी चाहिए।

क्या है वक्फ़ संशोधन बिल में?

वक्फ़ संशोधन बिल में कई बदलावों का प्रस्ताव किया गया है। इसमें राज्य सरकारों को किसी गैर मुस्लिम को मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त करने और कम से कम दो गैर मुस्लिम सदस्यों को राज्यों के वक्फ़ बोर्ड में नियुक्त करने की बात कही गई है। इसमें यह भी प्रस्ताव किया गया है कि जिलाधिकारी के पास यह करने का अधिकार है कि कोई संपत्ति वक्फ़ की संपत्ति है या फिर सरकारी संपत्ति।

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बिल के समर्थन में है मुस्लिम राष्ट्रीय मंच

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने इस बिल का समर्थन किया है। मंच के संयोजक इंद्रेश कुमार ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “इस देश में जमीन के मामले में किसी भी विवाद का फैसला अदालतें करती हैं लेकिन जब बात वक्फ़ संपत्तियों को लेकर विवाद की आती है तो वक्फ़ बोर्ड ही ऐसे मामलों में फैसला करता है। अगर वक्फ़ बोर्ड आपके खिलाफ फैसला दे देता है तो उसे ही अंतिम फैसला माना जाता है और ऐसे में कई संपत्तियों पर गलत ढंग से कब्जा कर लिया जाता है।” इंद्रेश कुमार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राष्ट्रीय कार्यकारणी के भी सदस्य हैं।

इंद्रेश कुमार ने कहा कि मुस्लिम समुदाय में इस तरह की धारणा बढ़ रही है कि वक्फ़ बोर्ड माफिया की तरह काम कर रहा है और भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है।

वक्फ़ बोर्ड में हो अन्य धर्मों का भी प्रतिनिधित्व

इस सवाल के जवाब में कि वक्फ़ संशोधन बिल में ऐसे प्रस्ताव हैं कि गैर मुस्लिम भी वक्फ़ बोर्ड के सदस्य बन सकते हैं, इंद्रेश कुमार ने कहा कि न सिर्फ मुस्लिम बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी वक्फ़ बोर्ड को अपनी जमीन देते हैं तो ऐसे में वक्फ़ बोर्ड में अन्य धर्मों का प्रतिनिधित्व क्यों नहीं होना चाहिए?

इंद्रेश कुमार ने कहा कि इस बिल के मुख्य रूप से तीन उद्देश्य हैं। पहला- वक्फ़ बोर्ड की जिम्मेदारी तय करना और उसके कामकाज में पारदर्शिता लाना, दूसरा- यह सुनिश्चित करना कि वे समुदाय की बेहतरी के लिए काम कर रहे हैं और तीसरा- गैर मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति के जरिए सामाजिक सौहार्द्र को बढ़ावा देना।

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इंद्रेश कुमार ने कहा कि देश में ऐसे भी लोग हैं जो लोगों को किसी भी बिल के खिलाफ भड़काने की कोशिश करते हैं, ऐसे लोगों का पर्दाफाश किया जाना चाहिए की उन लोगों का मकसद आपको वोट बैंक की राजनीति का गुलाम बनाना है।

31 सदस्यों की बनाई गई थी कमेटी

बिल को लेकर हो रहे लगातार विवाद के बाद केंद्र सरकार ने इस मामले में 31 सदस्यों की संयुक्त संसदीय समिति (JPC) बनाई थी। इसमें 21 लोकसभा सांसद और 10 राज्यसभा सांसदों को शामिल किया गया था। लोकसभा सांसदों में- जगदंबिका पाल, निशिकांत दुबे, तेजस्वी सूर्या, अपराजिता सारंगी, संजय जायसवाल, दिलीप सैकिया, अभिजीत गांगुली, डीके अरुणा, गौरव गोगोई, इमरान मसूद, मोहम्मद जावेद, मौलाना मुहीबुल्लाह नदवी, कल्याण बनर्जी, ए राजा, लावू श्री कृष्ण देवरायालु, दिलेश्वर कामैत, अरविंद सावंत, सुरेश गोपीनाथ, नरेश गणपत म्हासके, अरुण भारती और असदुद्दीन ओवैसी शामिल हैं। 

राज्यसभा सांसदों में- बृज लाल, डॉ. मेधा विश्राम कुलकर्णी, गुलाम अली, डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल, सैयद नसीर हुसैन, मोहम्मद नदीम उल हक, वी. विजयसाई रेड्डी, एम. मोहम्मद अब्दुल्ला, संजय सिंह और डॉ. धर्मस्थला वीरेंद्र हेगड़े शामिल हैं।